Thursday, September 29, 2016
आँखें जब बंद किया करते हैं
,
सामने आप हुआ करते हैं
आप जैसा ही मुझे लगता है
,
ख्वाब में जिससे मिला करते हैं
हम बावफा थे इस लिए नज़रों से गिर गए
,
शायद तुम्हें तलाश किसी बेवफ़ा की थी.
हम अक्सर दोस्तों की बेवफ़ाई सह तो लेते हैं
,
मगर हम जानते हैं दिल हमारे टूट जाते हैं.
Thursday, September 22, 2016
क़यामत है ये कह कर उस ने लौटाया है क़ासिद को
,
कि उन का तो हर इक ख़त आख़िरी पैग़ाम होता है.
-
शेरी भोपाली
क़ासिद पयाम-ए-शौक़ को देना बहुत न तूल
,
कहना फ़क़त ये उन से कि आँखें तरस गईं.
-
जलील मानकपुरी
है ये मेरी बदनसीबी तेरा क्या क़सूर इस में
,
तेरे ग़म ने मार डाला मुझे ज़िंदगी से पहले.
-
फैय्याज़ हाश्मी
दिल नाउम्मीद तो नहीं नाकाम ही तो है
,
लंबी है गम की शाम
,
मगर शाम ही तो है।
-
फैज अहमद
'
फैज
'
तबिअत जब नई उम्मीद से मानूस होती है
,
तमन्नाओं में ताजा जिन्दगी महसूस होती है।
-
अब्दुल हमीद
'
अदम
'
1.
मानूस - आसक्त
,
किस-किस पै जान दीजिए
,
किस-किस को चाहिए
,
गुम हो गया हूँ
,
बज्मे - तमन्ना में आके मैं।
-
जिगर मुरादाबादी
क्या जाने क्या हुआ के परेशान हो गए
,
इक लहज़ा रुक गई थी सबा तेरे शहर में
|
-
ख़ातिर गज़नवी
किनारों से मुझे ऐ नाख़ुदा दूर ही रखना
,
वहाँ लेकर चलो तूफाँ जहाँ से उठने वाला है
|
-
अली अहमद जलीली
जब सफीना मौज से टकरा गया
,
नाख़ुदा को भी ख़ुदा याद आ गया
|
-
फ़नी निज़ामी कानपुरी
सफीना =
boat
मौज =
wave,
लहर
Monday, September 12, 2016
ना जाने क्यूँ दिल में उतर जाते हैं वो लोग ...
जिन लोगों से किस्मत के सितारे नहीं मिलते
यह न जाना था कि उस महफिल में दिल रह जायेगा
,
हम ये समझे थे चले आयेंगे दम भर देखकर।
नहीं ऐसा कि अब परवाज़ की ताकत नहीं बाकी
,
मेरी उम्मीद के पंछी को पर अच्छे नहीं लगते
Friday, September 9, 2016
काश
वो
अपने
ग़म
मुझे
दे
दें
तो
कुछ
सुकूँ
मिले
,
वो
कितना
बदनसीब
है
ग़म
ही
जिसे
मिला
नहीं
.
-
तस्लीम
फ़ाज़ली
दिल गवारा नहीं करता शिकस्ते-उम्मीद
,
हर तगाफुल पै नवाजिश का गुमां होता है।
-'
रविश
'
सिद्दकी
तगाफुल - उपेक्षा
,
नवाजिश - मेहरबानी
,
कहने को लफ्ज दो हैं
,
उम्मीद और हरसत
,
लेकिन निहां इसी में
,
दुनिया की दास्तां है।
-
नातिक लखनवी
निहां - गुप्त
,
छिपा हुआ
बस अब तो दामन-ए-दिल छोड़ दो बेकार उम्मीदों
,
बहुत दुःख सह लिए मैं ने
,
बहुत दिन जी लिया मैं ने.
--
साहिर लुधियानवी
किस-किस पै जान दीजिए
,
किस-किस को चाहिए
,
गुम हो गया हूँ
,
बज्मे - तमन्ना में आके मैं।
-
जिगर मुरादाबादी
क्या जाने क्या हुआ के परेशान हो गए
,
इक लहज़ा रुक गई थी सबा तेरे शहर में
|
-
ख़ातिर गज़नवी
जब सफीना मौज से टकरा गया
,
नाख़ुदा को भी ख़ुदा याद आ गया
|
-
फ़नी निज़ामी कानपुरी
सफीना =
boat
मौज =
wave,
लहर
Wednesday, September 7, 2016
उम्मीद वक्त का सबसे बड़ा सहारा है
,
गर हौसला है तो हर मौज में किनारा है।
आब है
,
शराब है और उम्मीद है उनके आने की
क्या और चाहिए कोई वजह
,
जश्न मनाने की
दुनिया की महफिलों से उकता गया हूँ या
रब
,
क्या लुत्फ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो।
Thursday, September 1, 2016
सुना था तेरी महफिल में सुकूने-दिल भी मिलता है
,
मगर हम जब भी तेरी महफिल से आये
,
बेकरार आये।
मेरे सब्र की सब देते हैं मिसालें लेकिन
,
इसी शौक में इंसान से पत्थर हो ग
या
हूँ मैं
शाम ढली अब क्या जतन हर बार करे
,
दिल कमज़ोर है
,
कब तक इंतज़ार करे
|
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