ख्वाबो के नगर मे
सपनों के शहर मे
हा जाना है इक
ख्वाब ये पुराना है
शायद ये पूरा न हो पाये
सांसों का भी कहा ठिकाना है
जीत जाऊँगा हर हालात से
हौसला ना अब डिगाना है
मजबूती से जो थामकर खङे
हर हालात से अब ऊबर जाना है
वक्त फिर लौट आएगा समां
फिर गुनगुनाएगा
बस यही इरादा बनाना है
---- सुनिल शांडिल्य