Friday, March 10, 2017
सबने कहा चाँद पर दाग हैं मैं नही माना
इक तन्हा रात को मैं उससे पूछ बैठा की
"ऐ चाँद क्या तुझ पर दाग हैं"
वो बोला ये दाग नही माँ का टिका हैं
जो मुझेदुनिया की नज़र से बचाता हैं ,,,
इंसान ईस बात को समझना नही चाहता
उसे तो कमी निकालने की लत पड़ गयी हैं
मैं चुपचाप बैठा उसकी बाते सुन रहा था ,,
वो बोला क्या हुआ तुम इतने चुप क्यूँ हो गए
खाली है जिनका दामन वो हिसाब क्या देंगे
सब सवाल ही गलत हैं फिर जवाब क्या देंगे
हर तरफ़ हर जगह हर इक शरीक-ए-जुर्म है
जो ख़ुद हैं बेपरदा तुम्हे नक़ाब क्या देंगे
ख़ुद झूमते गिरते हुए जाते हैं महफ़िल से
साक़ी ही हों नशे में तो शराब क्या देंगे
जो आँख ही मिला नहीं पाते ज़माने से
पढ़ने को तुम्हे दिल की किताब क्या देंगे
दिल में रहते हैं मगर आँख से परदा करें
ऐसे शख़्स किसी को हंसीं ख़्वाब क्या देंगे
सब सवाल ही गलत हैं फिर जवाब क्या देंगे
हर तरफ़ हर जगह हर इक शरीक-ए-जुर्म है
जो ख़ुद हैं बेपरदा तुम्हे नक़ाब क्या देंगे
ख़ुद झूमते गिरते हुए जाते हैं महफ़िल से
साक़ी ही हों नशे में तो शराब क्या देंगे
जो आँख ही मिला नहीं पाते ज़माने से
पढ़ने को तुम्हे दिल की किताब क्या देंगे
दिल में रहते हैं मगर आँख से परदा करें
ऐसे शख़्स किसी को हंसीं ख़्वाब क्या देंगे
मुझसे भी रकीबों की तरह
बात ना करो
मेरी ही बाज़ी में मुझे तुम मात ना करो
इक बार तो कह दो मुझे तुम अपना हालेदिल
मुझे क़त्ल इन्तेज़ार में दिन रात ना करो
ये खुल के शरमाना भी भला कैसी अदा है
ज़ुल्मोसितम पर ही गुज़र-औकात ना करो
आँखों में तेरा अक्स है ख़वाबों में तेरा रू
दिन को भी सितम और सितम रात ना करो
हमको जो मिला है वो तुम्ही से तो मिला है
अब तुम ही हमें भूलने की बात ना करो
हम कुछ नहीं कहते तो फिर ऐसा तो नहीं है
तुम भी कभी हम से कोई भी बात ना करो
मजबूर हैं हम और मोहब्बत भी बहुत है
अब और बुरे तुम मेरे हालात ना करो
मेरी ही बाज़ी में मुझे तुम मात ना करो
इक बार तो कह दो मुझे तुम अपना हालेदिल
मुझे क़त्ल इन्तेज़ार में दिन रात ना करो
ये खुल के शरमाना भी भला कैसी अदा है
ज़ुल्मोसितम पर ही गुज़र-औकात ना करो
आँखों में तेरा अक्स है ख़वाबों में तेरा रू
दिन को भी सितम और सितम रात ना करो
हमको जो मिला है वो तुम्ही से तो मिला है
अब तुम ही हमें भूलने की बात ना करो
हम कुछ नहीं कहते तो फिर ऐसा तो नहीं है
तुम भी कभी हम से कोई भी बात ना करो
मजबूर हैं हम और मोहब्बत भी बहुत है
अब और बुरे तुम मेरे हालात ना करो
Wednesday, March 8, 2017
कोशिश की बहुत की काम मैं डूब जाऊ,
किसी तरह से इस दिल को बहलाऊँ,
ये भी मेरा साथ नही देता हैं,
हर पर तुम्हे ही याद करता हैं,
बहलाने के लिए इसको ,
मेरी हर तरकीब बेकार हो जाती हैं
देखता हूँ तुम्हे मुस्कुराते हुए,
मेरे चेहरे पर भी मुस्कराहट छाती हैं।!
तुम्हारी तस्वीर देखता रहता हूँ,
जब भी याद तुम्हारी आती हैं,
किसी तरह से इस दिल को बहलाऊँ,
ये भी मेरा साथ नही देता हैं,
हर पर तुम्हे ही याद करता हैं,
बहलाने के लिए इसको ,
मेरी हर तरकीब बेकार हो जाती हैं
देखता हूँ तुम्हे मुस्कुराते हुए,
मेरे चेहरे पर भी मुस्कराहट छाती हैं।!
तुम्हारी तस्वीर देखता रहता हूँ,
जब भी याद तुम्हारी आती हैं,
Saturday, March 4, 2017
मेरी ज़िन्दगी
में भीड़ बहुत थी लोग बहुत थे…
भीड़ बहुत थी दूर तलक चादर थी धूप की
न शज़र न दरख़्त दूर तक कोई साया न था
जिसकी ख़्वाहिश थी मुझे एक वही न था
साँस जैसे हलक़ से नीचे उतरती न थी
दिल जैसे धड़कता न था
सूखी हुई आँखों में रेत का दरया था
तस्वीरें बनाता था मैं आँधियाँ जिनको मिटाती थी
था जिनसे मैं वाबस्ता मगर वो मुझसे न थीं
मेरी ज़िन्दगी में भीड़ बहुत थी लोग बहुत थे…
न शज़र न दरख़्त दूर तक कोई साया न था
जिसकी ख़्वाहिश थी मुझे एक वही न था
साँस जैसे हलक़ से नीचे उतरती न थी
दिल जैसे धड़कता न था
सूखी हुई आँखों में रेत का दरया था
तस्वीरें बनाता था मैं आँधियाँ जिनको मिटाती थी
था जिनसे मैं वाबस्ता मगर वो मुझसे न थीं
मेरी ज़िन्दगी में भीड़ बहुत थी लोग बहुत थे…
दिल ये सोचता है किसी पल होगा
वो बेवफ़ा भी मेरे लिये बेकल होगा
ग़र मेरी आँखों में बरसातें हैं
उसके दिल में भी कोई बादल होगा
हमने सोचा था इश्क़ एक बार है
किसे खबर थी ये ग़म मुसलसल होगा
आज तो हमने रोक ली है क़ज़ा
अब जो भी होगा वो कल होगा
हवा छू गई जो मेरे चेहरे को
सोचता हूँ उसका आँचल होगा
इश्क़ में जलनेवाले से कह दो
अब वो फ़ना पल पल होगा
इश्क़ कर लो फ़िर मज़े देखो
लब्ज़ हर इक अब ग़ज़ल होगा
वो बेवफ़ा भी मेरे लिये बेकल होगा
ग़र मेरी आँखों में बरसातें हैं
उसके दिल में भी कोई बादल होगा
हमने सोचा था इश्क़ एक बार है
किसे खबर थी ये ग़म मुसलसल होगा
आज तो हमने रोक ली है क़ज़ा
अब जो भी होगा वो कल होगा
हवा छू गई जो मेरे चेहरे को
सोचता हूँ उसका आँचल होगा
इश्क़ में जलनेवाले से कह दो
अब वो फ़ना पल पल होगा
इश्क़ कर लो फ़िर मज़े देखो
लब्ज़ हर इक अब ग़ज़ल होगा
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