मेघ बरसे धरा हो गई पावनी
बदले परिधान अपने जो परिवेश ने
आई पावस सुहानी ये मन भावनी
करके श्रृंगार बसुधा हुई मदभरी
सज संवरकर दुल्हन बन गई पांखुरी
पत्ते पत्ते नये हो गये शाख के
सरिता यौवन भरी लग रही कामनी
मोर मतवाले नर्तक हुए शान से
मेघ बजने लगे हैं मधुर तान से
झूले पेड़ो की डालों पे हिलने लगे
गीत बालायें गातीं मधुर श्रावनी
गीत दादुर ये गाते मधुर कंठ से
आओ प्रियतम हमारे कहाँ हो छिपे
आज मिलकर प्रणय गीत गायेंगे हम
नभ में चमकेगी पावस की जब दामनी
~~~~ सुनिल #शांडिल्य