Friday, June 30, 2023

ओढ़ चूनर घटा की कलाधर चला 
मेघ बरसे धरा हो गई पावनी 
बदले परिधान अपने जो परिवेश ने
आई पावस सुहानी ये मन भावनी

करके श्रृंगार बसुधा हुई मदभरी 
सज संवरकर दुल्हन बन गई पांखुरी
पत्ते पत्ते नये हो गये शाख के 
सरिता यौवन भरी लग रही कामनी

मोर मतवाले नर्तक हुए शान से
मेघ बजने लगे हैं मधुर तान से
झूले पेड़ो की डालों पे हिलने लगे 
गीत बालायें गातीं मधुर श्रावनी

गीत दादुर ये गाते मधुर कंठ से
आओ प्रियतम हमारे कहाँ हो छिपे 
आज मिलकर प्रणय गीत गायेंगे हम
नभ में चमकेगी पावस की जब दामनी

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Thursday, June 29, 2023

इक अश्क सवाल हज़ार लिए होता है
कभी खुशी तो कभी गम लिए होता है

देने वाले को पहले से सब पता होता है
फिर भी क्यो वो बना अनजान रहता है

छुपा गम हो तो मरहम वो खुद होता है
फिर भी दूरिया बना के नश्तर चुबोता है

छपी गर खुशी हो ढिंढोरा वही करता है
सुख में सब साथ दुख में कोई न होता है

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Wednesday, June 28, 2023

प्यार की भीनी भीनी खुशबू को चंदन में बांध लिया,
रास का मौसम अपने मन के वृंदावन में बांध लिया,
एक फूल पर बिखरी शबनम चख ली प्यासे अधरों ने
और चांद को हमने अपने आलिंगन में बांध लिया।

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Monday, June 26, 2023

तुम बारिश कि बूंदो सी, 
मै तपती दुपहरी सा लगता हूँ,

तुम नदियां छोटी सी, 
मै सागर समाने बाला लगता हूँ,

तुम मंदिर की मुरत सी, 
मैं चोखट मे बैठा दिखाता हूँ,

तुम रानी महलो सी, 
मैं राजा रंक सा लगता हूँ,

तुम फूलो कि महक सी, 
मैं मुरझाया सा लगता हूँ,

तुम सूरज की किरण हो पहली सी, 
मैं रात की कालिमा सा लगता हूँ,

तुम रंग-बिरंगी तितली सी, 
मैं भोरा आवारा सा लगता हूँ,

बस भूल ना जाना मुझे,
मैं तुझ मे समाया सा कहीं तुझ सा दिखता हूँ...

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Saturday, June 24, 2023

तुम्हारी बात से निकलेगी  कोई बात लिख दूँगा
जरा नज़रें मिलाना तो मैं हर ज़ज्बात लिख दूँगा

तुम्हारी मुस्कराहट के यूँ ही बिखरे रहें जुगनू
मुझे फिर क्या डराएगी ये काली रात लिख दूँगा

मैं लिख दूँगा बहाने रोज जीने के निगाहों से
मैं हँसते-हँसते मिटने के नए अंदाज़ लिख दूँगा!

#$h@πd!£y@

Friday, June 23, 2023

हो अँधेरा दूर मेरा, बस वही प्रभु कीजिए
जप सकूँ शुभ नाम हरि का,ज्ञान ऐसा दीजिए
झूँठ के हर दंभसे प्रभु,दूर हमको कीजिए
जप सकूँ शुभ नाम हरि का,ज्ञान ऐसा दीजिए
छा रहा है जो तिमिर इस,मोह रूपी ज्ञान का
ले रहा है रूप देखो,बस वही अभिमान का
दूर हो अभिमान मेरा,तुम इसे हर लीजिए
जप सकूँ शुभ नाम हरि का,ज्ञान ऐसा दीजिए।
दंभ छल पाखण्ड फैला,देखिए चहुँओर है
हर गली में आज देखो,नाचता इक मोर है
हो रहा भ्रम जो यहाँ पर,दूर प्रभु जी कीजिए
गिर गया हूँ राह में कब,याद ये आता नहीं
झूँठ से है जो दिखावा,मोह भी जाता नहीं
हूँ अगर बेहोश तो प्रभु,होश का कुछ कीजिए

#$h@πd!£y@

Wednesday, June 21, 2023

कौन कहता है मर्द को दर्द नहीं होता है,
वो पंछी है जो पंख फैला सकता है उड़ नहीं सकता है। 

सीने में लिए दर्द घुट-घुट कर मरता है,
होंटो पर रख मुस्कान मंद-मंद मुस्कुराता है।

मर्द होने की कीमत चुकाना पड़ता है,
भविष्य में परिवार को चलाना होता है।

इसकी चिंता होश सम्भालते रखना होता है,
हर की पूर्ति को पूर्ति करना होता है।

गर हुई पत्नि-माँ में अन बन,
दोनो को लेकर बीच पिस जाना है।

कोई कानून समाज हक में नहीं होता है,
कदम कदम पर मर्द को ही गलत ठहराया जाता है।

पुरुष संतान पैदा करने का दर्द नहीं सहता है,
लेकिन अच्छी परवरिश देने का दर्द जानता है।

अपने परिवार से दूर रहना क्या होता है,
दूर रह कर कमाने का दर्द मर्द ही जानता है।

कौन कहता है मर्द को दर्द नहीं होता है
वो पंछी है जो पंख फैला सकता है उड़ नहीं सकता है।

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Tuesday, June 20, 2023

तुम मुझ मे हो ऐसे जैसे ,
हवा का होना बादलों के संग 

रजनी का हो भोर से मिलन 
हो रूठो मे अपनों सा मान 

नदी का लहरों से संगम 
सावन मे हरियाली का रंग 

जीवन का मृत्यु से बंधन 
ऐसे ही कुछ मुझ मे है प्रिये तू 

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Monday, June 19, 2023

हर आहट पर चौंक जाती है नज़र
देख सामने तुझे आश्वस्त होता है मन
फिर भी क्यों न मिला पाते नयन
हंसता रहता हूं हरदम तेरे सामने
क्या समझ पाओगी इसका मायने
मेरी अधीर आंखें हरपल यह देखती है
आपकी मासूम आंखें
कुछ खोजती सी रहती है
पर हर बात कही नहीं जाती
कुछ बातें अनकही ही रह जाती है

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Saturday, June 17, 2023

कभी बात तो करो न उससे
हो सकता है की बात बन जाए

कुछ उसकी बात भी तो सुन लो
हो सकता है की बात समझ आए

कभी समझो वो अनकही_बात  
हो सकता है वो खुश हो जाए

किसी बात पर उसकी "ना" हो
तो उस "ना" पर "हाँ" भी कह दो

बात तो बस कुछ इतनी सी है
उसे अपनों से अपनी बात कहने दो

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Friday, June 16, 2023

चाहता हूँ सूरज की किरण बन 
आलोकित कर दूँ तुम्हारी सुबह को,

चाँद सितारे बनकर रौशन कर दूँ तुम्हारी रात को, 
इन्द्रधनुष के रंग बन बिखर जाऊँ तुम्हारे जीवन में 

ठंडी हवा का झोंका बन लिपट जाऊँ तुम्हारे दामन से,
बादल बन बरसूँ तुम्हारे आँगन में,

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Thursday, June 15, 2023

सदा शीतल हृदय में ही खुशी का साज बजता है
नयन के नीर से ही मेघ निज संसार रचता है
कि मोती बूँद बन झरता सलिल जब व्योम के घट से
उमंगित हो धरा के तन हरित परिधान सजता है
मिटाकर द्वेष के क्षण को मधुर मुस्कान धरते है
बिछा कर फूल राहों में सदा सम्मान करते है

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Wednesday, June 14, 2023

ll गीता सार ll

हे पार्थ,

तुम पिछली प्रमोशन का पश्चाताप मत करो 
तुम अगली प्रमोशन की चिंता मत करो 
बस अपनी चालू पोस्टिंग से ही प्रसन्न रहो 

तुम जब नही थे तब भी ये कचहरी चल रहा था 
तुम जब नही होंगे तब भी ये चलता रहेगा 

जो काम आज तुम्हारा है 
कल किसी और का था 
परसो किसी और का होगा तुम इसे 
अपना समझ कर मगन हो रहे हो 
यही तुम्हारे समस्त दुखों का कारण है 

इंसेंटिव, प्रमोशन, इंक्रीमेंट 
ये शब्द अपने मन से निकाल दो 
फिर तुम इस कचहरी के हो 
और ये कचहरी तुम्हारी है 

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Tuesday, June 13, 2023

सारे वादों को भुला सकता हु, लेकिन रहेने दो।
में तुम्हें छोड़ के जा सकता हूं, लेकिन रहेने दो।

तुम जो हर मोड़ पे कह देते हो खुदा हाफ़िज़ 
फैसला में भी सुना सकता हु लेकिन रहने दो।

तुमने जो बात की दिल को दूखाने वाली
उस पर मैं मुस्कुरा भी सकता हूं लेकिन रहने दो।

शर्म आएगी तुम्हे वरना हमारे वादे
मैं तुम्हे याद दिला सकता हूं लेकिन रहने दो।

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Monday, June 12, 2023

माखन मिश्री अधर कपोल 
शब्द प्रेमी हृदय से बोल
वाकपटुता नयन इशारा 
सेज सजायी छत चौबारा

चाँद चाँदनी झाँक रहे हैं 
चकवा चकवी ताक रहे हैं।
शीतल समीर बहे सुहानी 
तन में सिहरन दौड़ाए,

लपट झपट कर प्रियतमा 
प्रिय उर से लग-लग जाए
प्रियतम के बाहुपाश में सिमटे, 
लजाए सकुचाए।।

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Sunday, June 11, 2023

मृगनयनी से नयन तुम्हारे, हिरनी सी इठलाती हो
मेघ से कोर भरे आंखों के पलकें यूं झपकाती हो
अधरों पर जैसे रस हो फूलों का,पंखुरी सा मुस्काती हो
मरे-मिटे हैं लाखों दिल, हुस्न-ए-मल्लिका कहलाती हो।

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Saturday, June 10, 2023

चलते चलते कल प्रिये तुम्हारे नयनों में
देखा था जो नैराश्य उसी से चिंतित हूं

नत नयन भंगिमा संग प्रिये चंद्रानन का
देखा अवसादित हास उसी से चिंतित हूं

साहस रखना अपने उर पर प्रस्तर रखकर
चाहे प्रतिमा हो जाना तुम उसमें दबकर

मानिनीं बनोगी ध्रुव है, पर प्रिय याद रहे
जग करे न कल उपहास उसी से चिंतित हूं

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Friday, June 9, 2023

पुरुष का रोना व्याकुल कर जाता है 
उस आसमान को जिसने अपना दर्द 
हंसते हंसते सौंप दिया था एक दिन बारिश को !

पुरुष का रोना हरबार ढूंढता है 
मां का आँचल प्रेमिका का काजल 
पत्नी का प्यार बहन का कांधा 
अपने तकिए का कोना!

पुरुष के रोते ही पुरुष हो जाती है 
वह स्त्री जो पोंछती है उसके आँसूं
और मर जाता है वह दर्द जो जीत कर 
मुस्कुरा रहा था उस पुरुष से !

पुरुष के रोने से टूट जाते हैं 
पितृसत्ता के पाषाण हृदय ताले
और खुल जाते हैं द्वार उन अहसासों के 
जो उसे उसके भी इंसान होने का अहसास दिलाते हैं !

पुरुष के रोते ही पृथ्वी आकाश से 
अपनी गति, स्थिति और कक्षा की मंत्रणा कर 
हिसाब लगाती है उस आँसू का 
जो गृहों की चाल के सारे गणित  
बिगाड़ कर रख देता हैं...!!

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Wednesday, June 7, 2023

सुनो, 
हृदय में तुम्हारे प्रदीप्त प्रेम के 
सारे रंग भरके 
लिखूंगा एक गीत और गाऊंगा 

पूरी तन्मयता से सात सुरों में 
समय के थपेडों को सहते हुए 
खुद को देखता रहूंगा 

तुम्हारे रेशमी दुपट्टे के दर्पण में 
तुम पढ़ना मन पांखी के डैने पर 
कील की तरह गडी हुई मेरी कविताएं

और तुम्हारे मन के समंदर में
हृदय के अतल अथाह में समाकर
शब्दों के मोती संजोए रखूंगा

जिसमें तुम्हारे स्नेह का अर्थ
गीत बनकर हर ज़ुबान पे तैरता रहेगा

तुम मेरे गीतों का प्रगति बिंदु हो
जिसकी धुरी पर परिक्रमा करते हुए
प्रेम और निष्ठा का मर्म मैं समझता रहूंगा।। 

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Tuesday, June 6, 2023

मन के भीतर बहुत कुछ है 
उजाले है अँधेरे हैं
कभी उजाले ने अँधेरे को तो 
कभी अँधेरे उजालों को घेरे हैं।

कहीं कल्पनाओं के समतल मैदान हैं
कहीं यथार्थ के रेगिस्तान हैं
कहीं आवश्यकताओं के जंगल हैं
कहीं विचारों के जड़ जंगम हैं
तो कहीं असफलताओं के वीरान हैं।

आकांक्षाओं के ऊँचे ऊँचे पहाड़ हैं शिखर हैं
कहीं संतुष्टि के पठार तो कहीं असंतुष्टि के गाढ़े हैं
कहीं दुःखों का अगाध सिंधु कहीं पीड़ा की नदियाँ हैं
इस मन में यादें आती हैं गुदगुदाती हैं हँसाती हैं
खुशी भर जाती हैं मन को खुजलाती हैं
और कभी कभी पुरानी व्रीणा की पीणा उकसाती हैं

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Monday, June 5, 2023

जब से कहा है तुमने मत लिखो 
मुझे तुम्हारी कविताओं में

तब से जिक्र होता है
सिर्फ दिल में तेरे होने का

तुम तो बह जाती हो
आंसु बनकर मुझमें से

बताओं ना ?
तुम कैसे समझाती हो तुम्हारी हॅंसी को
जब-जब भी होठों पर आती होगी!

वहीं तो है मेरा प्रेम
जो अब भी तुझमें है !

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Sunday, June 4, 2023

देह शैली,अब विषैली, आलस बढ़ा,व्याधि फैली।
निरोग तभी,मानव जाति, योगा करे, कपालभाति।

स्मरण शक्ति, बढ़ती बुद्धि, योग करता मन की शुद्धि।
रहती सदा, शुद्ध आत्मा, व्याधियों का,जड़ी खात्मा।

जन जो करे, कर्म योगी, मनवा चंगा, तन निरोगी।
तनाव मुक्त, मिले ऊर्जा, लगे न दाम, न ही खर्चा।

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Thursday, June 1, 2023

प्रतीक्षा से निरंतर थकित मन को
एक समय बीत जाने के बाद
कितना भी पुकारों शब्द अर्थहीन हो जाते है

कष्ट में सहारे के लिए
दिये गए हाथों को सहारा न दिया
तब एक समय बीत जाने के बाद
कितना भी  थामों अवलंबन अर्थहीन हो जाते है

फिर गालों तक बह गये अश्रु के लिए
डबडबायी आँखों को देख न पाये
तब एक समय बीत जाने के बाद
कितना भी अश्रु बहालो संवेदनाएं अर्थहीन हो जाते है

प्रेम में पुकारें स्वरों को अनसुना कर 
प्रति उत्तर न कर पाये
तब एक समय बीत जाने के बाद
कितना भी मनुहार करों भावनाएं अर्थहीन हो जाती हैं।

~~~~ सुनिल #शांडिल्य