नकाबे-रूख उलटने तक तो मुझको होश था लेकिन, भरी महफिल में उसके बाद क्या गुजरी खुदा जाने।
कहीं धब्बा न लग जाये तेरी बंदानवाजी पर, मुझे भी देख मुद्दत से तेरी महफिल में रहते है।
एक मासूम दिल है और सितम
है कितने इस महोब्बत के सिवा भी है गम कितने
Monday, August 29, 2016
लो आज हम ने तोड़ दिया रिश्ता-ए–उम्मीद, लो अब कभी गिला न करेंगे किसी से हम.
- साहिर लुधियानवी
रिश्ता = relationship गिला= complaint
सवाल उनका,जवाब उनका, सुकूत उनका, इताब उनका, हम उनकी अंजुमन में सर न खम करते तो क्या करते।
-मजरूह सुल्तानपुरी
1.सुकूत - खामोशी, 2. इताब - गुस्सा,
3.खम - झुकाव
मुद्दत हुई है यार को मेहमां किये हुए, जोशे-कदह से बज्मे-चरागाँ किये हुए।
-मिर्जा गालिब
1.कदह - शराब पीने का जाम,
2.बज्मे-चरागाँ - महफिल को चरागों से रौशन करना
क्यूँ गर्दिश-ए-मुदाम से
घबरा न जाए दिल, इन्सान हूँ पियाला-ओ-साग़र नहीं हूँ मैं |
- मिर्ज़ा ग़ालिब
वो शमा बन के ख़ुद ही अकेले जला किया, परवाने कल की रात परेशान से गए |
- सईद राही
आज हम अपनी परेशानी-ए-खातिर उन से, कहने जाते तो हैं, पर देखिये क्या कहते हैं.
- मिर्ज़ा ग़ालिब
आने वाले किसी तूफ़ान का रोना रोकर, नाख़ुदा ने मुझे साहिल पे डुबोना चाहा |
- हफीज जलंधरी
साहिल = किनारा
उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से, तुम्हें ख़ुदा ने हमारे लिए बनाया है |
- बशीर बद्र
Saturday, August 27, 2016
ना उम्मीदी के अंधेरों से घबरा मत ऐ दिल, उम्मीदों की हवाएं भी चिराग बुझा देती हैं।
तुम्हारी बज्म में हम संभल जाते यह मुश्किल था, तुम्ही बेताब करते थे, तुम्हीं फिर थाम लेते थे।
मिलो ना मिलो हमसेमिलने का गम
नहीं तुम बस याद कर लो हमेंये मिलने से कम नहीं ...
Wednesday, August 24, 2016
तुमने चुप रह के सितम और भी ढाया मुझ पे तुमसे अच्छे हैं मेरे हाल पे हँसने वाले
बहुत हसीं सही सोहबतें गुलों की मगर, जिन्दगी वो है जो कांटों के दरमियां गुजरे ।
तूफ़ान की दुश्मनी से ना बचते तो खैर थी साहिल से दोस्ती के भरम ने डुबो दिया
Monday, August 22, 2016
क्यों हिज्र के शिकवे करता है, क्यों दर्द के रोने रोता है
अब इश्क किया तो सब्र भी कर, इसमें तो यही कुछ होता है
आगाज-ए-मुसीबत होता है अपने ही दिल की शरारत से
आँखों में फूल खिलाता है, तलवों में कांटे बोता है
आशिकों की किस्मत में जुदा होना ही लिखा होता है, सच्चा प्यार होता है तो दिल को खोना ही लिखा
होता है, सब जानते हुए भी में भी प्यार उससे कर बैठा, भूल गया के मोहब्बत में सिर्फ रोना ही लिखा
होता है |
Sunday, August 21, 2016
यह दस्तूरे-जबाबंदी है कैसी, तेरी महफिल में, यहाँ तो बात करने को तरसती है जबाँ मेरी।
-मोहम्मद 'इकबाल'
1.जबाबंदी - बोलने की मनाही
उठ कर तो आ गए हैं तेरी बज़्म से मगर, कुछ दिल ही जानता है किस दिल से आये हैं |
- फैज़
इंसानियत की बात तो इतनी है शैख़ जी, बदकिस्मती से आप भी इन्सान बन गए.
- अब्दुल हमीद अदम
उस ने पूछा था कई बार मगर क्या कहिये, हम मिज़ाजन ही परेशान रहा करते थे |
- शाज़ तम्कनत |
मिज़ाजन= by nature,आदत से
इस तरह सताया है परेशान किया है, गोया की मुहब्बत नहीं एहसान किया है |
- अफज़ल फिरदौस
तमाम उम्र तेरा इन्तज़ार हम ने किया, इस इन्तज़ार में किस किस से प्यार हम ने किया |
- हाफिज़ होशियारपुरी
नाख़ुदा डूबने वालों की तरफ मुड़ के न देख, न करेंगे, न किनारों की
तमन्ना की है |
- सालिक लखनवी
Tuesday, August 16, 2016
कैसे अजीब दौर में जीना पड़ता है मुझे शीशे के हैं इंसान और पत्थर का आदमी
झोंका नसीम-ए-सुबह का आया तो था मगर, गुलशन की हर कली को परेशान कर गया. |
ये इंतज़ार के लम्हे अजीब होते हैं बजाय सीने के आँखों में दिल धड़कता है |
Saturday, August 13, 2016
हर कदम पर मुझसे टकराते हैं पत्थर के सनम क्या भरी दुनिया में इंसान, ऐ खुदा! कोई नहीं
हजारो डूबते है नाखुदाओँ के भरोसे पर जो खुद चप्पू चलाते हैवो अक्सर पार होते है।
तेरे इश्क ने अता की मुझे
काईनात ऐ उल्फत मुझे सबसे दुश्मनी थी तेरी दोस्ती से पहले |
Thursday, August 11, 2016
वादा तो हमसे करते हैं मिलने किसी और से जाते हैं, कुछ हाजमा अपना भी अच्छा है धोखा रोज़ खाते
हैं.
हमने कल ही यह कसम खाई थी, अब न सहबा को मुंह लगायेंगे। काश ! पहले यह खबर होती, आज वह खुद हमें पिलायेंगे।
राह के काँटों से इशक घबराता नहीं , क्या क़यामत है दिल को करार आता नही.
Wednesday, August 10, 2016
दुनिया पे ऐसा वक़्त पड़ेगा
कि एक दिन, इन्सान की तलाश में इन्सान जाएगा |
- फ़ना निज़ामी कानपुरी
मुझे इंसानियत का दर्द भी बख़शा है कुदरत ने, मेरा मक़सद फ़क़त शोलानवाई हो नहीं सकता |
- साहिर लुधियानवी
फ़क़त = सिर्फ शोलानवाई = raining
मैं तो आवारा शायर हूँ मेरी क्या वक़ात, एक दो गीत परेशान से गा लेता हूँ. |
- अहमद फ़राज़
चार दिन की ये रफ़ाक़त जो
रफ़ाक़त भी नहीं, उम्र भर के लिए आज़ार हुई जाती है, ज़िन्दगी यूं तो हमेशा से परेशान-सी थी, अब तो हर साँस गिराँबार हुई जाती है |
- साहिर लुधियानवी
न रोना है तरीक़े का न हँसना है सलीक़े का, परेशानी में कोई काम जी से हो नहीं सकता.
- दाग़ देहलवी
Monday, August 8, 2016
शायद मुझे शेर आते नही दोस्त ऐसे मिले जो सुनाते नही अब मोकाए हालात कुछ ऐसे है कि शेर शर्मते है दोस्त शर्माते नहीं
वो दूसरों से हँस हँस के मिलते रहे मेरी ही बद-किस्मती अश्क बहाती रही हम वफ़ा जिनसे करते रहे उम्र भर हम पे उनकी जफ़ा मुस्कुराती रही
आज की रात निकलो न तारों ज़रा आज की रात तनहा गुजारो ज़रा मेरा किस्मत को तारीक तर छोड़ दो अपनी आँखों का काजल संवारों जरा