Friday, April 28, 2017

तुमने मुड़कर भी नहीं देखा मुझे जाते जाते
एक तकल्लुफ़ ही सही जिसको निभाते जाते
क्या ख़ता थी के टूट गये हैं सब रिश्ते
ये तो जाते हुए तुम मुझको बताते जाते
ना इख़लास कोई ना ही शिकायत कोई
कोई एहसान सही वो ही जताते जाते
संभलना कैसे है मुझको तेरे जाने के बाद
कम से कम ये ही हुनर मुझको सिखाते जाते
बड़ा हैरां सा परेशां सा भटकता हूं अब
कोई राह नई मुझको दिखाते जाते
अब भी उम्मीद है कभी मिल जाओगे तुम
किसी राह पर मुझको कहीं आते जाते

ड़ूबनेवाले को इक ही तिनके का सहारा काफ़ी है
समझदार को कहते हैं बस एक इशारा काफ़ी है
यूँ ही नहीं कहता हूँ मै के इश्क़ मोहब्बत धोखा है
राह-ए-मोहब्बत पर मैने भी वक़्त गुज़ारा काफ़ी है
क्या ग़म है जो मिला नहीं वो तुमने जिस को चाहा था
दरिया-ए-ज़िंदगी में तो बस यादों का किनारा काफ़ी है
सच ही है के कोई नहीं है साथ सदा देने वाला
हमने भी इक दौर था जब सब ही को पुकारा काफ़ी है
ऐ ख़ुदा तू नाज़ ना कर अपनी क़ायनात पे यूँ
सच्चाई दिखलाने को इक दर्द का मारा काफ़ी है
कब हमने मांगी थीं दुनिया की सारी खुशियां
तारीक रात में हम को तो बस एक सितारा काफ़ी है

जब से मैने वो हँसी सा पैकर देखा है
झूमता गाता हुआ हर मंज़र देखा है
राह में मिलनेवालों से लेते हैं अपनी ही खबर
भूले अपना घर जब से उसका घर देखा है
फूलों में भी अब देखो इक नई सी रंगत आई है
बागों ने भी शायद रूप-समंदर देखा है
इश्क़ में चैन जो पाया हमने और कहीं नहीं पाया
वरना हमने भी मस्जिद और मंदर देखा है
सच ही कहती है दुनिया के इश्क़ में नींद नहीं आती
हमने भी वो रातजगे का मंज़र देखा है
जिनकी बात सुना करते थे हम हर इक अफ़साने में
हमने भी उन एहसासों को छूकर देखा है

Thursday, April 20, 2017

सफ़र में मुश्किलें आयें, तो जुर्रत और बढती है ,
कोई जब रास्ता रोके , तो हिम्मत और बढती है....

पत्ती-पत्ती गुलाब क्या होगी,
हर कली महज ख्वाब क्या होगी !
जिसने लाखों हसीं देखे हो,
उसकी नियत ख़राब क्या होगी !!

Wednesday, April 19, 2017

जब मेरे इश्क की इन्तेहा होगी,
न कोई दूरी दरमियाँ होगी!
तुम ही तुम होगी धड़कन मैं,
तुम ही तुम बसोगी इन दिल-ओ-जान मैं!!

Wednesday, April 12, 2017

जूनून ए इश्क़ था… तो कट जाती थी रात बातों मै !! शिकस्त ए इश्क़ है… तो इक लम्हा भी सदियों जैसा है !!

ऐ वक़्त तुझपे भी कुछ उधार सा बाकी है मेरा, देख तुझे गुजारने के लिए उसने मेरा इस्तेमाल किया है…

पैसा कमाने की होड़ में.. इंसां ने ज़िंदगी को ठुकरा दिया.. वक़्त आया जब ज़िंदगी जीने का.. ज़िंदगी ने इंसां को ठुकरा दिया..

Monday, April 10, 2017

दिल के टुकड़े मजबूर करते है कलम चलाने को वरना...
हक़ीक़त में कोई भी खुद का दर्द लिखकर खुश नही होता

ना जाने दिल क्यूँ खिँचा जाता है, तुम्हारी तरफ़.....
कहीँ तुमने मुझे पाने कि दुआ तो नहीं माँग ली...

सूख गए फूल पर बहार वही है, दुर रहेकर भी हमारा प्यार वही है...!! जानते है हम मिलेंगे नही फिर भी, आंखो मे हमारी इंतजार वही है...!!

Saturday, April 8, 2017

माना कि दूरियाँ कुछ बढ़ सी गयीं हैं, पर कल्पनाओं मे तो बस सी गयी है, बेचैन हो जाता है मन,तड़प उठता है, उसके हिस्से का वक़्त तनहा गुजरता है।

मै अपनी इबादत खुद ही कर लूं तो क्या बुरा है, किसी फ़कीर से सुना था मुझ मे भी ख़ुदा रहता है !

संभाल के खर्च करती हूँ खुद को दिनभर, हर शाम एक आईना मुझसे हिसाब मांगता है !!

Friday, April 7, 2017

वक़्त भी चलता रहा ,ज़िन्दगी भी सिमटती गयी दोस्त बढ़ते गए लेकिन ; दोस्ती घटती गयी ।

मैंने कब कहा कि मेरी खबर पूछो दोस्तों,, खुद किस हाल में हो बस इतना बता दिया करो..!

उसकी आँखों में लगा है सुरमा ऐसे जैसे चाकू पर लगायी हो तेज धार किसी ने

Thursday, April 6, 2017

हमारे चले जाने के बाद,
ये समुंदर भी पूछेगा तुमसे,
कहा चल गई वो लड़की
जो तन्हाई मे आ कर,
बस तुम्हारा ही नाम
लिखा करती थी

Wednesday, April 5, 2017

इजाजत तो हमने भी ना दी थी उससे मोहब्बत की
बस वो नजरों से मुस्कराते गए और हम दिल से…

जिंदगी अजनबी मोड़ पर ले आई है.
तुम चुप हो मुझ से और मैँ चुप हूँ सबसे

दिल में आप हो और कोई खास कैसे होगा यादों में आपके सिवा कोई पास कैसे होगा हिचकियॉं कहती आप याद करते हो पर बोलोगे नहीं तो मुझे एहसास कैसे होगा


आज लिखने को लफ्ज़ नहीं वो भावना ,एहसास नहीं ग़ुम हुए थे अतीत में मिल नहीं रहे वर्तमान में...

Tuesday, April 4, 2017

रूठा हुआ है मुझसे इस बात पर जमाना फ़ितरत नहीँ है मेरी,किसी के आगे सर झुकाना

रात नही अनगिनत तारे भी है सब साथ जागे हमारे भी है चाँद की तम्मना सबको सही एक तारा हमारा भी है रात अँधेरी सही कल उजाले हमारे भी है🍁

रह गई है कुछ "कमी " तो "शिकायत " क्या है....
इस जहाँ में सब "अधुरे " हैं "मुकम्मल " कौन है....!!

रोटी का कोई धर्म नहीं होता पानी की कोई जात नहीं होती। जहाँ इंसानियत जिन्दा है वहाँ मजहब की बात नहीं होती

Monday, April 3, 2017

ये रात जब भी आती हैं तेरा इंतज़ार लाती हैं चांदनी शोख़ निगाहों में सपनो की चुभन देती हैं चन्दा से बाते होती हैं दोनों जागते हैं तन्हा🍁रात भर

परिभाषा से परे, स्वयं तुम, अपनी परिभाषा लगती हो। अगर कहो तो आज बता दूँ, सत्य कहूँ, संक्षिप्त कहूँ तो, मुझको तुम अच्छी लगती हो।

सर पर जो हाथ फेरे तो हिम्मत मिल जाये 😇 माँ एक बार मुस्कुरा दे तो जन्नत मिल जाये 😚