पन्नों पर
लिखकर पूरा ना हो
इक अधूरा
किताब हूँ मैं
मुकम्मल नही
अधूरा ख्वाब हूं मैं
कभी चरागों की
जरूरत नहीं रखता
वो रात का स्याह
अंधेरा हूं मैं
ऊंचाइयों को डुबो दूँ
वो सैलाब हूँ मैं
तन्हा राहों का
तन्हा मुसाफिर हूं मैं
दिल से
बेनकाब हूँ
इसलिए शायद
बहुत बुरा हूं मैं
---- सुनिल #शांडिल्य