Saturday, April 30, 2016

लाख रोशन हों, अंधेरों से गुज़रना भी तो है
चढ़ते सूरज को समंदर में उतरना भी तो है
तुम जो खुश हो मेरी राहों में बिछा के कांटे
इन्ही राहों से कभी तुमको गुज़रना भी तो है

फूल हाथोँ मेँ लिए खड़ा हूँ मैँ कइ रोज से
हाकिम गर रू-ब-रू आए तो बात बने।
काँटो का ताज बन गयी हाकिमी शायद
वो मुस्कराहटेँ वापस लाओ तो बात बने॥


कहो तो दो लफ्ज़, मानो तो बंदगी 
सोचो तो गहरा सागर, डूबो तो ज़िन्दगी
करो तो आसान, निभाओ तो मुश्किल
बिखरे तो सारा ज़माना, सिमटे तो सिर्फ तुम


Thursday, April 28, 2016

भड़कते हुए शोलों को हवाएं नहीं देते
जाते हुए लम्हों को सदायें नहीं देते
गर फूल नहीं देते तो कांटे भी मत दो
मुस्कान नहीं देनी तो आहें नहीं देते

दास्तान अपनी मुहब्बतोँ की सुनाने वालोँ
फूल सहरा मे खिलाओ तो बात बनेँ
गुले ख़ुशबू कि तमन्ना तो करे हर कोई
कभी काँटोँ से भी निभाओ तो बात बने


तेरी राह मेँ फूल जिसने भी सजाऐ होँगे
उन हाथोँ ने गुलिस्ता जरूर उजाड़े होँगे
हाथ तो उसके भी हुये होँगे जरूर जख्मी
काँटे जिसने मेरी राह मैँ बिछाये हौँगे



Wednesday, April 27, 2016

दोस्ती करते हैं सभी, बस फर्क बस इतना है
कुछ लोग निभाते हैं, कुछ लोग आजमाते हैं

खुशियों पर फ़िजाओ का पहरा है
नजाने किस उम्मीद पे दिल ठहरा है
तेरी आँखों से झलकते दर्द की क़सम
यह दोस्ती का रिश्ता प्यार से गहरा है

मेरी दोस्ती का अंदाज़ा न लगा पाओगे ,
खुद को भूल जाओगे मगर हम को न भूल पाओगे ,
एक बार हम से जुदा हो कर तो देखो ,
क़सम तुम्हरी हमारे बगैर जीना भूल जाओगे

Monday, April 25, 2016

आप की निगाह अगर मेहरबान हो जाए
मैं जिस ज़मीन पे हूँ वो आसमान हो जाए
है अब भी आप को शक मेरी दोस्ती पर
तो फिर एक बार मेरा इम्तिहान हो जाए

दिलसे दिलकी बात नहीं छुपती
तन्हाई में आंसुओ की बरसात नहीं रूकती
लम्हा हो इंतजार का तो मायूस ना होना ,
सच्ची हो दोस्ती तो आंख नहीं झुकती

लोग कहते है की इतनी दोस्ती मत करो 
की दोस्त दिल पर सवार हो जाए.
हम कहते हैं दोस्ती इतनी करो 
की दुश्मन को भी तुमसे प्यार हो जाए....

Saturday, April 23, 2016

मय में वह बात कहाँ जो तेरे दीदार में है,
जो गिरा फिर न उसे कभी संभलते देखा ।


दोस्ती के बिना ये जिंदगी बेकार है ,
पर दोस्ती के अपने भी उसूल है ,
कहते है दुरिया कितनी भी हो दोस्ती में ,
पर दोस्त हो आप जैसा तो सब कबुल है . .

दोस्ती नज़रो से हो तो उसे कुदरत कहते है ,
सितारों से हो तो उसे ज़न्नत कहते है ,
हुस्न से हो तो उसे मोहब्बत कहते है ,
और दोस्ती आपसे हो तो उसे किस्मत कहते है

Thursday, April 21, 2016

सौदा हमारा कभी बाज़ार तक नहीं पहुँचा
इश्क था जो कभी इज़हार तक नहीं पहुँचा
गहराई दोस्ती में मैं नापती भी तो कैसे
रिश्ता हमारा कभी तकरार तक नहीं पहुँचा

और कितने दिए जलाओगे,
घर को तुमने मज़ार कर डाला
फिर हवाओं से दोस्ती कर ली,


फिर से दिल दागदार कर डाला

तन्हाईयों का एक एक लम्हा
हंगामों से क़र्ज़ लूँ कहाँ तक
सुख से भी तो दोस्ती कभी हो
दुःख से ही गले मिलूँ कहाँ तक

Tuesday, April 19, 2016

छोड़ दे दोस्ती, करते हैं सभी नाटक यहाँ
ज़माने की उल्फत में भी आखिर रखा क्या है
दुआ है खुदा से, अब कभी ना देखूं तुझको
तेरी दीद के शौक में भी आखिर रखा क्या है

हर एक शख्स को अपना बना के देख लिया
मिलेंगे अब ना किसी से, ये दिल में ठानी है
ना दोस्ती है सहर से, ना दुश्मनी शब् से है
यूं ही ये ज़िन्दगी अब तो, रस्म निभानी है

गुज़रे दिनों की याद, बरसती घटा लगे
गुजरूँ जो उस गली से, ठंडी हवा लगे
वो ख़त दोस्ती का पढ़ा है कि इन दिनों
जो मुस्कुरा के बात करे, आशना लगे

Sunday, April 17, 2016

यह सफ़र दोस्ती का कभी ख़त्म ना होगा ,
दोस्तों से प्यार कभी कम ना होगा ,
दूर रह कर भी जब रहेगी महक इसकी ,
हमें कभी बिछड़ने का गम ना होगा

हाल अपने घर का कुछ ऐसा है दोस्त,
छत है नीची और सिर ऊँचा है दोस्त
-
अज़ीज़ अंसारी
याद आने लगा एक दोस्त का बरताव मुझे
टूट कर गिर पड़ा जब शाख़ से पत्ता कोई
बेसबब आँखों में आँसू नहीं आया करते
आपसे होगा यक़ीनन मेरा रिश्ता कोई

दोस्ती कि तड़प को दिखाया नहीं जाता ,
दिल में लगी आग को बुझाया नहीं जाता ,
कितनी भी दुरी हो दोस्ती में ,
आप जैसे दोस्त को भुलाया नहीं जाता

भूल शायद बहुत बड़ी कर ली,
दिल ने दुनिया से दोस्ती कर ली.

-
बशीर बद्र

Friday, April 15, 2016

हर शख्स की अजब कहानी है
चुप रहना भी दोस्ती की निशानी है
फिर भी दर्द का एक अहसास है ….
लगता है आप यही कही आस पास है

ऐ चाँद मेरे दोस्त को एक तोहफा देना ,
तारो की महफ़िल संग रौशनी करना ,
छुपा लेना अँधेरे को ,
हर रात के बाद एक खुबसूरत सवेरा देना

लफ्ज़ दो ही पढ़े मैँने, इक आरजू इक इंतजार।
इंतजार ताउम्र मैँने किया, पर आरजू न मिली॥


Wednesday, April 13, 2016

तुझे खुशबू की है आरज़ू, तुझे रोशनी की है जुस्तजू
मैं हवा नहीं, मैं दिया नहीं, मेरे हमसफ़र अभी सोच ले

तसव्वुर, आरज़ू, यादें, तमन्ना, शौक-ए-बेताबी
ये सब चीजें तुम्हारी हैं, तुम आकर छीन लो मुझसे

तुझे देखना मेरी आरज़ू, तुझे सोचना मेरी जुस्तजू
मेरे हाथ में तू हाथ दे, दे उमर भर मेरा साथ तू

Saturday, April 9, 2016

आरज़ू कर ना सकी, तर्क-ए-ताल्लुक को कबूल
तुम से बिछड़े तो, तुम्हारी याद के हो बैठे

एक आरज़ू है, पूरी परवरदिगार करे
मैं दैर से जाऊँ, वो मेरा इन्तिज़ार करे
अपने हाथों से सँवारू जुल्फें उसकी
वो शरमा कर मुहब्बत का इकरार करे

न दवा मिले, ना दुआ मिले,
तेरे दिल में दर्द उठा करे
तू जितनी मौत की आरज़ू करे
तेरी उमर उतनी बढ़ा करे

Friday, April 8, 2016

कैद था दिल में, तेरा ही दर्द ता-उम्र के लिए
मर रही थी हर आरज़ू, दर्द के इस सफ़र में !!

Thursday, April 7, 2016

इश्क है तर्ज़-ओ-तौर इश्क के तईं
कहीं बन्दा तो कहीं खुदा है इश्क
कौन मकसद को इश्क बिन पहुंचा
आरज़ू इश्क है और मुद्दा है इश्क

मैं तुम्हारे अक्स की आरज़ू में, बस आईना ही बनी रही
कभी तुम ना सामने आ सके, कभी मुझ पे गर्द पडी रही

Wednesday, April 6, 2016

ना तख़्त -ओं -ताज की है आरज़ू
ना बज़्म -इ -शाह की है जुस्तुजू
जो नज़र से दिल को बदल सके
मुझे उस निगाह की है आरजू 

मुद्दत से आरजू थी जिनके दीदार की....
आये वो मेरे ख्वाब में तो पर्दा किये हुए.

मैं आईना हूं तू पत्थर है,तू मेरा अहले मुकद्दर है
मैं जीऊँगा या मर जाउंगा,ये फ़ैसला तेरे ऊपर है

रही न ताकते-गुफ्तार और अगर हो भी,
तो किस उम्मीद पै कहिए कि आरजू क्या है?
-
मिर्जा 'गालिब'

हम तुझ से किस हवस की फलक जुस्तजू करें,
दिल ही नहीं रहा है जो कुछ आरज़ू करें.
-
ख़्वाजा मीर दर्द
ये आरज़ू ही रही कोई आरज़ू करते,
ख़ुद अपनी आग में जलते जिगर लहू करते.
-
हिमायत अली शायर
अब मैं हूँ और मातम-ए-यक शहर-ए-आरज़ू,
तोड़ा जो तू ने आईना तिमसाल दार था.
-
मिर्ज़ा ग़ालिब
इक वो कि आरज़ूओं पे जीते हैं उम्र भर,
इक हम कि हैं अभी से पशेमान-ए-आरज़ू,
आँखों से जू-ए- खूँ है रवाँ दिल है दाग़ दाग़,
देखे कोई बहार-ए-गुलिस्तान-ए-आरज़ू.
-
अख्तर शिरानी

Tuesday, April 5, 2016

एक पुराना मौसम लौटा याद भरी पुरवाई भी
ऐसा तो कम ही होता है वो भी हों तनहाई भी

यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं
कितनी सौंधी लगती है तब मांझी की रुसवाई भी

दो दो शक्लें दिखती हैं इस बहके से आइने में
मेरे साथ चला आया है आपका इक सौदाई भी

खामोशी का हासिल भी इक लंबी खामोशी है
उनकी बात सुनी भी हमने अपनी बात सुनाई भी
-
गुलजार
अज़ -मेहर- ता -ब -ज़र्रा दिल -ओ -दिल है आइना
तूती को शश -जिहत से मुक़ाबिल है आइना
~
मिर्ज़ा ग़ालिब

ये ग़ालिब का बहोत बेहतरीन शेर है। ग़ालिब कहते है ईश्वर सर्वव्यापी है । सूरज के किरणों से लेकर कण कण में हर जगह उसके ह्रदय की प्रतिमा है । छः दिशाओं में उसका प्रतिबिम्ब दिखता है जो मनुष्य को उसके होने की हमेशा याद दिलाता है ।
अज़ -मेहर- ता -ब -ज़र्रा= सूर्य से लेकर कण तक ;शश -जिहत = छः दिशाएँ
जिसमे तुम्हारा अक्स-ए-हसीं देखती थी मैं
तुमने तो रख दिया वो ही आईना तोड़ के
ठोकर लगी तो अपने मुकद्दर से जा गिरा
फिर यूं हुआ की आईना, पत्थर से जा गिरा
मैं अगर टूट भी जाऊँ, तो आईना हूँ
तुम मेरे बाद भी, हर रोज़ सँवरते रहना.
धूल आँखो मे मुझ बदनसीब कि, इस कदर जम गयी है
आईना कितना भी साफ करूं,उम्मीद कोई दिखती नहीँ है


खुशनसीब है तू दौस्त,आने वाले तुझे बहलाते तो है
तेरी आँखो मेँ उम्मीद का, एक आईना चमकाते तो है


तुम हकीकत नहीं हो, हसरत हो
जो मिले ख्वाब में वो दौलत हो
किसलिए देखती हो आईना तुम
खुद से भी ज्यादा खूबसूरत हो

Sunday, April 3, 2016

मुझको कहने दे,कि मैँ आज भी जी सकता हूं।
मेरी आरजू नाकाम सही,जिन्दगी नाकाम नहीँ।


तेरी आरजू में उठाना तेरी जुस्तजू में चलना
तुझे बार बार सोचना और छुपा छुपा के रखना
तुझे फूल फूल कहना तेरे पास पास रहना
तुझे साथ साथ रखना ये ही आदतें थीं मेरी

उखडा है रंग और चौखट चटक गयी मस्ती से फिर भी देखिये ज़िंदा है आईना

Saturday, April 2, 2016

इस घर में अपने आप को कैसे छिपायें हम
हर एक ईंट पर यहाँ, चिपका है आईना

हर नज़र होती है खुद अपने ही दिल का आईना
जिसने देखा, जिस नज़र से, उस तरह जाना मुझे

कभी दीवार, कभी दर की तरफ जाते हैं
रास्ते सारे तेरे घर की तरफ जाते हैं
एक ही चोट हो जायेंगे, रेज़ा रेज़ा
आईने किस लिए पत्थर की तरफ जाते हैं

हर शम्आ बुझी रफ्ता रफ्ता हर ख्वाब लुटा धीरे - धीरे
आइना न सही पत्थर भी न था दिल टूट गया धीरे - धीरे
-
कैसर उल जाफरी

Friday, April 1, 2016

अभी इस तरफ न निगाह कर
मैं ग़ज़ल की पलके संवार लूं
मेरा लफ्ज़ लफ्ज़ है आइना
तुझे आईने में में उतार लूं

तेरी तरह मलाल मुझे भी नहीं रहा
जा, अब तेरा ख्याल मुझे भी नहीं रहा
तोड़ा तूने जब से मेरे दिल का आईना
अंदाजा-ए-ज़माल मुझे भी नहीं रहा