किस जुर्म में छीनी गयी हम से हमारी हंसी हमने तो किसी का दिल दुखाया भी नहीं था
जिस को मिलना नहीं, फिर इससे
मुहब्बत कैसी सोचता जाऊँ, मगर दिल ही दिल में बसाए जाऊँ
Sunday, February 28, 2016
यूँ जलाते हो जैसे शबाब मिलता हो दिल है मेरा, चिराग-ए-मस्जिद तो नहीं
तलब ने कर दिया मशहूर इक जगह पर रियाज़ ये और बात है कि हम आदमी सफ़र के थे
बिखर गया है कुछ इस तरह आदमी का वजूद हर एक शख्स कोई सानेहा लगे है मुझे
Thursday, February 25, 2016
कह रहा था शारे - दरिया
से, समन्दर का सकूत, जिसमें जितना जर्फ है, उतना ही वह खामोश है।
-नातिक लखनवी
कम न थी ये आलमे –हस्ती किसी सूरत मगर, वुसअतें दिल की बढ़ीं इतनी कि ज़िन्दां हो गयीं।
-जिगर मुरादाबादी
ऐ मौत आ के हमको खामोश तो
कर गई तू, मगर सदियों दिलों के अंदर, हम गूंजते रहेंगे।
-फिराक गोरखपुरी
एक हमें आवारा कहना, कोई बड़ा इल्जाम नहीं, दुनिया वाले दिल वालों को और बहुत कुछ कहते हैं।
-हबीब जालिब
एक से लगते हैं सब ही कौन
अपना, कौन गैर, बेनकाब आये कोई तो, हम दरे–दिल वा करें।
-खलील
इन्ही में खींचकर
रूहे-मुहब्बत मैने भरे हैं, मेरा अश्यार देखेंगे मेरा दिल देखने वाले।
-जिगर मुरादाबादी
अच्छा है दिल के पास रहे, पासबाने -अक्ल, लेकिन कभी - कभी इसे तन्हा भी छोड़ दें।
-मो. इकबाल
दिल की हक़ीक़त अर्श की अज़मत सब कुछ है मालूम हमें, सैर रही है अक्सर अपनी इन पाकीज़ा मकानों में.
- मीर तक़ी मीर
दिल ही तो है न संग-ओ-खिश्त दर्द से भर न आये क्यों, रोयेंगे हम हज़ार बार कोई हमें सताए क्यों.
- मिर्ज़ा ग़ालिब
बिखर गया है कुछ इस तरह आदमी का वजूद, हर एक फर्द कोई सानेहा लगे है मुझे.
- जां निसार अख्तर
कुछ इश्क था कुछ मजबूरी थी सो मैं ने जीवन वार दिया, मैं कैसा ज़िंदा आदमी था इक शख्स ने मुझ को मार
दिया.
- ओबैदुल्लाह अलीम
नज़र हो ख्वाह कितनी ही
हक़ैक-आशना फिर भी. हुजूम-ए–कशमकश में आदमी घबरा ही जाता है.
- जोश मलीहाबादी
ढेर मिट्टी का हर आदमी है,बाद मरने के
होना यही है, या ज़मीनों में तुर्बत बनेंगे,या चिताओं पे जलना पडेगा.
- सुरेंदर मलिक गुमनाम
बस कि दुश्वार है हर काम का आसां होना, आदमी को भी मयस्सर नहीं इन्सां होना.
- मिर्ज़ा ग़ालिब
बिखरी किताबें, भीगी आँखें और
तन्हाई पसंद सा दिल इस मुहब्बत ने तो मेरी उम्र पे भी तरस नहीं
खाया
ना कर आज़ाद यूँ मुझको, तू अपने दिल की
दुनिया से कि रहना है सदा अब तो, तेरी ही कैद में मुझ को
जो ज़रा किसी ने छेड़ा, छलक जायेंगे
आंसू मुझसे कोई ना पूछो, मेरा दिल उदास क्यूं है
Wednesday, February 24, 2016
इन्हीं सिफात से होता है आदमी मशहूर, जो लुत्फ़ आप ही करते तो नाम किस का था.
- दाग़ देहलवी
भटकती रही यूँ ही हर बंदगी, मिली न कहीं से कोई रौशनी, छुपा था कहीं भीड़ में आदमी, हुआ मुझ में रौशन ख़ुदा देर से.
- निदा फ़ाज़ली
तमाम उम्र वफ़ा के गुनाहगार रहे, ये और बात कि हम आदमी तो अच्छे थे.
- अहमद नदीम क़ासिम
ख़ुदा को पा गया वाइज़ मगर है, ज़रूरत आदमी को आदमी की.
- फ़िराक़ गोरखपुरी
बात क्या आदमी की बन आई, आसमां से ज़मीन नपवाई.
- मीर तकी मीर
आदमी आदमी को क्या देगा, जो भी देगा वही ख़ुदा देगा.
- सुदर्शन फ़ाकिर
आदमी आदमी से मिलता है, दिल मगर कम किसी से मिलता है.
- जिगर मुरादाबादी
वक़्त रहता नहीं कहीं छुपकर, इस की आदत भी आदमी सी है.
- गुलज़ार
तुम्हारा हुस्न किसी आदमी का हुस्न नहीं, किसी बुज़ुर्ग की सच्ची दुआ सा लगता है.
- मंज़र भोपाली
घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे, बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला |
- बशीर बद्र
क्या मसलहतशनास था वो आदमी 'क़तील', मजबूरियों का जिस ने वफ़ा नाम रख दिया |
- क़तील शिफाई
आप ने तस्वीर भेजी मैं ने देखी गौर से, हर अदा अच्छी ख़ामोशी की अदा अच्छी नहीं |
- जलील मानिकपुरी
रहे हैं नक्श मेरे चश्म-ओ-दिल पर यूँ तेरी सूरत, मुसव्विर की नज़र में जिस तरह तस्वीर फिरती है |
- हसरत अजीमाबादी
उरूस-ए-माना की तस्वीर खींच आती है 'सौदा' को, कोई ख़ातिर में उस की मानी-ओ-बेहज़ाद आता है |
- मोहम्मद रफ़ी सौदा
सुनात के मुसव्विर ने सबाहत के सफ़े पर, तस्वीर बनाई है तेरे नूर को हल कर |
- वली दक्कनी
मानिंद-ए-अक्स देखा उसे और न मिल सके, किस रू से फिर कहेंगे कि रोज़-ए-विसाल था |
- मीर हसन
त़ाब-ए-नज़ारा नहीं आईना
क्या देखने दूँ, और बन जायेंगे तस्वीर जो हैराँ होंगे.
- मोमिन खान मोमिन
हमने दिखा दिखा तेरी तस्वीर जा-ब-जा, हर इक को अपनी जान का दुश्मन बना लिया.
- जगन्नाथ आज़ाद
चन्द तस्वीर-ए-बुताँ चन्द हसीनों के ख़तूत, बाद मरने के मेरे घर से ये सामाँ निकला |
- मिर्ज़ा ग़ालिब
दिल गया था तो ये आँखें भी कोई ले जाता, मैं फ़क़त एक ही तस्वीर कहाँ तक देखूँ |
- अहमद नदीम कासमी
नक्श फ़रियादी है किस की शोख़ी-ए-तहरीर का, कागज़ी है पैराहन हर पैकर-ए-तस्वीर का |
- मिर्ज़ा ग़ालिब
हादिसे और भी गुज़रे तेरी उल्फ़त के सिवा, हाँ मुझे देख मुझे अब मेरी तस्वीर न देख |
- मजरूह सुल्तानपुरी
हुस्ने-सीरत पर नजर कर, हुस्ने-सूरत को न देख, आदमी है नाम का गर, खू नहीं इन्सान की।
-आर्जू लखनवी
लज़्ज़त कभी थी अब तो
मुसीबत सी हो गई, मुझ को गुनाह करने की आदत सी हो गई.
- बेखुद देहलवी
उशाक़ के दिल नाज़ुक उस
शोख़ की ख़ू नाज़ुक, नाज़ुक इसी निसबत से है कार-ए-मुहब्बत भी.
- हसरत मोहानी
अजीब हालत होते हैं इस मुहब्बत में आदमी के उदास जब भी यार हो, कसूर अपना ही लगता है
आदमी और इंसान में अन्तर इतना है 'दोस्त' आदमी मर जाता है, इंसान कभी मरता नहीं।
लगता है कई रातों से जागा था चित्रकार
तस्वीर की आँखों से थकन झाँक रही है.
Tuesday, February 23, 2016
लज़्ज़त कभी थी अब तो मुसीबत सी हो गई, मुझ को गुनाह करने की आदत सी हो गई |
- बेखुद देहलवी
आदत सी बना ली है तुम ने तो "मुनीर" अपनी, जिस शहर में भी रहना घबराये हुए रहना|
- मुनीर नियाज़ी
होठों पे तबस्सुम है कि एक बरक़-ए-बला है, आँखों का इशारा है कि सैलाब-ए-फना है.
- असग़र गोंडवी
काले काले वो गेसू शिकन दर शिकन, वो तबस्सुम का आलम चमन दर चमन, खेंच ली उन की तस्वीर दिल ने मेरे, अब वो दामन बचा कर किधर जायेंगे.
- राज़ इलाहाबादी
लब पर तबस्सुम आँखों में आँसू, हम लिख रहें हैं अफ़साना-ए-दिल.
- तस्कीन कुरैशी
अज़ाब जिन का तबस्सुम सवाब जिन की निगाह, खिंची हुई हैं पस-ए-जानाँ सूरतें कैसी.
- ओबैदुल्लाह अलीम
देखनेवालों तबस्सुम को करम मत समझो, उन्हें तो देखनेवालों पे हँसी आती है.
- सुदर्शन फाकिर
दिल में फरेब लब पे
तबस्सुम नज़र में प्यार, लूटे गए 'शमीम' बड़े एहतिमाम से |
- शमीम जयपुरी
मेरे होंठों का तबस्सुम
दे गया धोखा मुझे, तूने मुझको बाग़ जाना देख ले सहरा हूँ मैं.
- अथर नफीस
तबस्सुम ज़ेर-ए-लब कहता है
'अमजद', कोई जज़्बा मचलना चाहता है.
- अमजद इस्लाम अमजद
इस राह-ए-मुहब्बत की तुम बात ना पूछो अनमोल जो आदमी थे, बे-मोल बिक गए
तू आबाद रहे जँहा रहे ये दुआ मांग रहा हूं
तेरी तस्वीर के सहारे जिन्दगी गुजार
रहा हूं
कभी गुस्से से लाल, कभी दुख से पीला
हो जाता है उसके बदलते मुखड़े की तस्वीर बनाना मुश्किल है।
Sunday, February 21, 2016
प्यार पर बस तो नहीं हमरा लेकिन फिर भी, तू बता दे कि तुझे प्यार करूँ या न करूँ, तूने ख़ुद अपने तबस्सुम से जगाया है जिन्हें, उन तमन्नाओं का इज़हार करूँ या न करूँ. - साहिर लुधियानवी
वही इक़रार में इन्कार के
लाखों पहलू, वही होंठों पे तबस्सुम वही अबरू पे शिकन.
- मुस्तफा ज़ैदी
वो अलमकशों का मिलना वो
निशात-ओ-ग़म के साए, कभी रो पड़ा तबस्सुम कभी अश्क मुस्कुराए.
- अंदलीब शादानी
अश्कों के तबस्सुम में
आहों के तरन्नुम में, मासूम मोहब्बत का मासूम फ़साना है |
- जिगर मुरादाबादी
फूलों की तरह जब होंठों पे इक शोख़ तबस्सुम बिखरेगा, धीरे से तुम्हारे कानों में इक बात पुरानी कह
देंगे.
मेरे चेहरे की हँसी रंग-ए-शिकस्ता मेरा, तेरे अश्कों में 'तबस्सुम' का है अन्दाज़
अभी |
- सूफी ग़ुलाम मुस्तफा
तेरे अन्दाज़-ए-तबस्सुम का
फ़ुसूँ, हादिसे पहलू बदल कर रह गए |
- सूफी ग़ुलाम मुस्तफा
सिर्फ अश्क-ओ-तबस्सुम में उलझे रहे, हमने देखा नहीं ज़िन्दगी की तरफ |
- एहसान दानिश
लबों पे नर्म तबस्सुम रचा के धुल जाएँ, ख़ुदा करे मेरे आँसू किसी के काम आएँ |
- अहमद नदीम क़ासमी |
मेरे होंठो के दिखावे की तब्बस्सुम पे ना जा ए दोस्त, ये तो पर्दा है गम-ए-दिल को छुपाने के लिए
मेरी रूह की हकीकत मेरे आँसुओं से पूछो मेरा मजलिसे तबस्सुम मेरा तर्जुमाँ नहीं है |
सबके होंटो पे तबस्सुम था मेरे क़त्ल के बाद जाने क्या सोच के रोता रहा क़ातिल तन्हा |
दूर है मन्ज़िल राहें
मुश्किल आलम है तन्हाई का, आज मुझे एहसास हुआ है अपनी शिकस्तापाई का |
- शकील बदायुनी
मेरी तन्हाईयाँ तुम्हीं लगा लो मुझको सीने से, कि मैं घबरा गया हूँ इस तरह रो-रो के जीने से |
- प्रेम वार्बर्तोनी
सोचती रहती हूँ तन्हाई में अंजामे-ए-ख़ुलूस फिर उसी जुर्म-ए-मोहब्बत को दुबारा करके
रात की जुल्फें भीगी भीगी और आलम तन्हाई का कितने दर्द जगा देता है इक झोंका पुरवाई का
किसने खींचा मेरी तन्हाई का नक्शा आसिम दश्त इस शहर के मंज़र में कहाँ से आयी
गूँज उठी हैं फिजायें क्यों मेरी आवाज़ पर कोई हंगामा-पस-दीवार-ए-तन्हाई न हो
लोग तन्हाई से डर कर सहरा में आ गए शहर की गलियों में अब सन्नाटे ही रह गए
हर वक्त का हँसना तुझे बर्बाद न कर दे तन्हाई के लम्हों में कभी रो भी लिया करो
ऐतिहातन देखता चल अपने साए की तरफ इस तरह शायद तुझे एहसास-ए-तन्हाई न हो
एक पुराना मौसम लौटा याद भरी पुरवाई भी, ऐसा तो कम ही होता है वो भी हो तन्हाई भी |
- गुलज़ार
न मिट सकेगी ये तन्हाई मगर ऐ दोस्त, जो तू भी हो तो तबियत ज़रा बहल जाए |
- मजरूह सुल्तानपुरी
इक आग ग़म-ए-तन्हाई की जो सारे बदन में फैल गई, जब जिस्म ही सारा जलता हो फिर दामन-ए-दिल को
बचाएँ क्या |
- अथर नफीस
वही वहशत, वही हैरत, वही तन्हाई है मोहसिन तेरी आँखें मेरे ख़्वाबों से कितनी मिलती जुलती हैं
उसे पाना, उसे खोना, उसी के हिज्र में रोना यही गर इश्क है मोहसिन, तो तन्हाई ही अच्छी है
मैं अपनी रातों का जागना किस से करूँ बयां बस एक तन्हाई है जो पूछती भी नहीं और गले लगा
लेती है
तुझसे अब कोई वास्ता तो नहीं रहा हैलेकिन.. तेरे हिस्से का वक़्त आज भी 'तनहा' गुज़रता है ...
ऐ मेरी तन्हाई, आ मुझे फिर से तनहा कर दे इस ग़मगीन तवील ज़िन्दगी को, एक लम्हा कर दे
जब तक़ाज़ा नींद का हो और तन्हाई न हो, उफ़ वो कैफ़ियत कि हो भी और तन्हाई न हो |
- असर लखनवी
लिपटना परनियाँ में शोला-ए-आतिश का आसाँ है, वले मुश्किल है हिकमत दिल में सोज़-ए-ग़म
छुपाने की |
- मिर्ज़ा ग़ालिब
आतिश-ए-इश्क भड़कती है हवा से पहले, होंठ जलते हैं मुहब्बत में दुआ से पहले |
- फिराक़ गोरखपुरी
दिल के ताईं आतिश-ए-हिज्राँ से बचाया न गया, घर जला सामने पर हम से बुझाया न गया |
- मीर तकी मीर
जैसे लहराए कोई शोला कमर की ये लचक, सर-ब-सर आतिश-ए-सय्याल बदन क्या कहना |
- फिराक़ गोरखपुरी
साया मेरा मुझसे मिसल-ए-दूर भागे है 'असद', पास मुझ आतिशबजाँ-जान के किस से ठहरा जाए है |
- मिर्ज़ा ग़ालिब
मेरा अज्म इतना बुलंद है कि पराये शोलों का डर नहीं, मुझे खौफ आतिश-ए-गुल से है,ये कहीं चमन को जला न दे |
- शकील बदायुनी
आतिश-ए-गुल को दामन से हवा देती है, दीदनी है रविश-ए-मौज-ए-बहार आज की रात |
- आबिद अली आबिद
रेंगती, मुड़ती, मचलती, तिल-मिलाती, हाँपती. अपने दिल की आतिश-ए-पिन्हाँ को भड़काती हुई.
- मजाज़ लखनवी
रिन्दों के दम से
आतिश-ए-मै के बग़ैर भी, है मैकदे में आग बराबर लगी हुई.
- फैज़ अहमद फैज़
दिल मेरा सोज़-ए-निहाँ से
बेमुहाबा जल गया, आतिश-ए-ख़ामोश के मानिंद गोया जल गया.
- मिर्ज़ा ग़ालिब
मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा
के माने ये तेरी सादा-दिली मार ना डाले मुझको।
जो देखते तेरी ज़ंजीर-ए-ज़ुल्फ़ का आलम, असीर होने के आज़ाद आरज़ू करते |
दुश्मनों के साथ मेरे दोस्त भी आज़ाद हैं, देखना है खेंचता है मुझ पे पहला तीर कौन |
सोज़-ए-ग़म देके मुझे उस ने ये इरशाद किया, जा तुझे कश-म-कश-ए-दहर से आज़ाद किया |
एक टूटी हुई ज़ंजीर की फ़रियाद हैं हम, और दुनिया ये समझती है कि आज़ाद हैं हम |
सैयाद तेरा घर मुझे जन्नत
सही मगर, जन्नत से भी सिवा, मुझे राहत चमन में थी।
माना कि फिक्रे- बर्को -
गमे – बागबाँ नहीं, फिर भी कफस, कफस ही तो है आशियाँ नहीं।
मजा यह है कि जब हम ताकते
- परवाज खो बैठै, कफस ने कहा चुपके से जा तुम्हें आजाद करता हूँ।
दिल असीरी में भी आज़ाद है
आज़ादों का, वलवलों के लिए मुमकिन नहीं ज़िंदा होना.
- ब्रिज नारायण चकबस्त
सब जिसको असीरी कहते हैं
वह है तो असीरी ही लेकिन, वह कौन-सी आजादी है यहाँ, जो आप खुद अपना दाम नहीं।
-जिगर मुरादाबादी
लाजिम है दिल के पास रहे
पासबाने-अक्ल, लेकिन कभी-कभी उसे तन्हा भी छोड़ दें।
-मोहम्मद इकबाल
फकत एहसासे-आजादी से
आजादी इबारत है, वही घर की दीवार है, वही दीवार, ज़िन्दां की।
-सीमाब अकबराबादी
Saturday, February 20, 2016
तुम कह ना सके, हम रो ना सके, दिल पहले जैसे हो न सके तुम खामोश हो, हम शर्मिन्दा है, रात भर दोनों सो न सके
मैं फूल चुनती रही और मुझे खबर ना हुयी वो शख्स आ के मेरे शहर से चला भी गया बहुत अज़ीज़ सही उसको मेरी दिल-दारी मगर ये है कि कभी दिल मेरा दुखा भी गया
चाँद के साथ कई दर्द पुराने निकले कितने गम थे जो तेरे गम के बहाने निकले दिल ने इक ईंट से तामीर किया ताजमहल तूने एक बात कही, लाख फ़साने निकले
Friday, February 19, 2016
मुहब्बत में ख़याल-ए-साहिल-ओ-मन्ज़िल है नादानी, जो इन राहों में लुट जाए वही तक़दीर वाला है. -अली अहमद जलीली
अब तो मन्ज़िल भी है ख़ुद गर्म-ए-सफ़र, हर क़दम संग-ए-निशाँ था पहले. -नासिर काज़मी
हर मन्ज़िल-ए-हयात से गुम कर गया मुझे, मुड़ मुड़ के राह में वो तेरा देखना मुझे | -सागर निज़ामी
तलाश-ए-मन्ज़िल-ए-सब्र-ओ-सुकूँ तो है दिल को, मिला है राह में लेकिन फ़क़त ग़ुबार मुझे. -राजीव चक्रवर्ती 'नादान'
अब न कोई मन्ज़िल है और न रहगुज़र कोई, जाने क़ाफिला भटके अब कहाँ कहाँ यारो. -हिमायत अली
ये क्या उठाये क़दम और आ गई मन्ज़िल, मज़ा तो जब है कि पैरों में कुछ थकन रहे. -राहत इन्दौरी
मुझे सहल हो गईं मंज़िलें वो हवा के रुख़ भी बदल गए, तेरा हाथ हाथ में आ गया कि चिराग़ राह में जल
गए. -मजरूह सुल्तानपुरी
सहल - सरल ,आसान
क्या हुआ हुस्न हमसफ़र है या नहीं, इश्क़ मन्ज़िल ही मन्ज़िल है रास्ता नहीं | -ख़ुमार बाराबंकवी
उल्फत की नई मंज़िल को चला, तू बाँहें डाल
के बाँहों में, दिल तोड़ने वाले देख के चल, हम भी तो पड़े हैं राहों में. -क़तील शिफाई
मन्ज़िल-ए-जानाँ को जब ये दिल रवाँ था दोस्तों, तुम को मैं कैसे बताऊँ क्या समाँ था दोस्तों. -जगन्नाथ आज़ाद
दूर है मन्ज़िल राहें मुश्किल आलम है तन्हाई का, आज मुझे एहसास हुआ है अपनी शिकस्तापाई का | -शकील बदायुनी
Thursday, February 18, 2016
दिल से पुकारूँ तुझेए मंज़िल तू है
कहाँ यह कदम अब थम से रहे हैए खुदा तू है कहाँ
ऐसे चुप हैं के ये मन्ज़िल भी कड़ी हो जैसे, तेरा मिलना भी जुदाई की घड़ी हो जैसे | -अहमद फ़राज़
मंजिल न दे, चराग न दे, हौंसला तो दे तिनके का ही सही तू मगर आसरा तो दे | -राणा सहरी आसरा = सहारा
हर मील के पत्थर पर लिख दो
यह इबारत, मंजिल नहीं मिलती, नाकाम इरादों से।
हजार नाकामियाँ हों 'नश्तर' हजार गुमराहियाँ हों लेकिन, तलाशे-मंजिल है अगर दिल से, तो एक दिन लाजिमी मिलेगी।
-हरगोविंद दयाल 'नश्तर'