जाने क्यूँ पागल यहाँ बदनाम है
इश्क का शायद यही इक’आम है ।
सैकड़ों दर्द इक ख़ुशी को भूल कर
रोते रहना बस यही अन्जाम है ।
खो गयी है आदमी से इन्सानियत
बेवजह तो लगता नहीं इल्जाम है ।
एक घर में एक हम रहते नही
और कहते हैं के देश में एकता है ।
~~~~ सुनिल #शांडिल्य