तोड़ दो तुम हर लक्ष्मण रेखा
चुन लो अपना जो सपना देखा
तोड़ दो जाति-धर्म की रेखाएं
गर किसी मे अहसास रूहे देखा
तोड़नी पड़ती है बेड़ियों की रेखा
यू नही मिलता प्यार रूह का देखा
प्यार ने कब उम्र रेखाओ को देखा
हो गया किसी से फिर क्यूँ मन रोका
---- सुनिल #शांडिल्य