Thursday, October 27, 2016
ऐ खुदा मुझ को मेरी इबादत के बदले मोहब्बत दे दे
मैं तेरी किसी भी जन्नत का खरीदार नहीं....
हर बात पे कटती है तो कट जाए जुबा मेरी
इज़हार तो हो ही जाएगा जो बहेगा लहू मेरा...
उसे सोचना चाहिए था हर सितम से पहले
मैं सिर्फ माशूका ही नहीं इंसान भी थी
Friday, October 21, 2016
सदा जो दिल से निकल रही है
वो शेर-ओ-नग्मों में ढल रही है
कि दिल के आँगन में जैसे
कोई गजल की झाँझर झनक रही है
तू अश्क ही बन के मेरी आँखों में समा जा
मैं आईना देखूँ तो तेरा अक्स भी देखूँ.....
कितनी सदियाँ सोच में खोया रहा कुदरत का हाथ...
फिर तेरी आँखे बनाई फिर बनाई काएनात ..
Thursday, October 20, 2016
सितम हवा का अगर तेरे तन को रास नहीं
कहां से लाऊं वो झोंका जो मेरे पास नहीं
-
वजीर आगा
आज तो मेरा दिल कहता है तू इस वक़्त अकेला होगा।
मेरे चूमे हुए हाथों से औरों के ख़त लिखता होगा।
-
नासिर काजमी
तेरा वस्ल ऐ मेरी दिलरुबा नहीं मेरी किस्मत तो क्या हुआ
,
मेरी महजबीं यही कम है क्या तेरी हसरतों का तो साथ है
|
-
निदा फ़ाज़ली
किस्मत के नाम को तो सब जानते हैं लेकिन
,
किस्मत में क्या लिखा है
ईश्वर
जानता है
|
-
अख्तर शिरानी
ख़ुद अपने आप को परखा तो ये नदामत है
,
कि अब कभी उसे इल्ज़ाम-ए-बेवफ़ाई न दूँ.
-
अहमद फ़राज़
नदामत =
shame
ग़म तो ये है कि वो अहद-ए-वफ़ा टूट गया
,
बेवफ़ा कोई भी हो
,
तुम न सही हम ही सही
|
-
राही मासूम रज़ा
एक मुद्दत से न क़ासिद है
,
न ख़त है न पयाम
,
अपने वादे को तू कर याद मुझे याद न कर.
-
जलील मानिकपुरी
उभरेंगे एक बार अभी दिल के वलवले
,
गो दब गए हैं बारे-गमे-जिन्दगी से हम।
-'
साहिर
'
लुधियानवी
1.
वलवला - उम्मीद
उनकी ही बज्म सही पै कहाँ का है दस्तूर
,
इधर को देखना
,
देना उधर को पैमाने।
-
अमन लखनवी
कैफ-ए-ख़ुदी ने मौज को कश्ती बना दिया
,
होश-ए-ख़ुदा है अब न गम-ए-नाख़ुदा मुझे
|
-
सागर निज़ामी
Tuesday, October 18, 2016
ये मत पूछ के एहसास की शिद्दत क्या थी...
धुप ऎसी थी के साए को भी जलता देखा....
मेरा नाम तक जो ना ले सका
जो मुझे करार ना दे सका
जिसे इख्तियार तो था मगर
मुझे अपना प्यार ना दे सका
वोही शख्स मेरी तलाश है
वोही दर्द मेरी हयात है ...
जो चला गया मुझे छोड़ कर
वोही आज तक मेरे पास है .
आँख को जाम समझ बैठा था अनजाने में
साकिया होश कहाँ था तेरे दीवाने में
Sunday, October 16, 2016
मत ढूंढ़ ए दोस्त खूबियाँ मुझे में..
क्यूँ की तू भी शामिल है मेरी कमजोरियों में...
इस चाँद को कह दो मेरे आंगन में न उतरा करे
इसे देख के शिद्दत से किसी की याद आती है..
ये और बात थी की तकदीर लिपट कर रोई
,
वरना बाजू तो तुझे देख के फैलाई थी...
Saturday, October 15, 2016
चली है बात महफ़िल में तुम्हारी बेवफाई की
हमारी चश्म ए नम को तो छलकता जाम होना था
कहते हैं उम्मीद पै जीता है जमाना
,
क्या करे जिसकी कोई उम्मीद नहीं है
ऐ इन्तज़ार-ए-जानाँ हम जानतें हैं तुझे
,
काटी है रात हम ने करवट बदल बदल के
|
Friday, October 14, 2016
इस जवानी ने क्या सज़ा पाई
,
रेशमी सेज हाय तनहाई
,
शोख़ जज़्बात ले हैं अँगड़ाई
,
आँखें बोझल हैं नींद हरजाई
,
कोई आखों से मुलाकात कर लेता है
बिन बोले ही बयां कर जाता है
,
बड़ा मुश्किल होता है जब कोई
खामोश रहकर सवाल कर लेता है
कहीं मुझको धोका ना देतीं हो ये तरसी हुई निगाहें
तुम ही हो सामने या फिर वो ही तस्वीरे ख्वाब नज़र आई
Wednesday, October 12, 2016
ये न थी हमारी किस्मत कि विसाल-ए-यार होता
,
अगर और जीते रहते यही इन्तज़ार होता
|
-
मिर्ज़ा ग़ालिब
आ के अब तस्लीम कर लें तू नहीं तो मैं सही
,
कौन मानेगा के हम में बेवफ़ा कोई नहीं.
-
अहमद फ़राज़
मुहब्बत में बुरी नियत से कुछ सोचा नहीं जाता
कहा जाता है उसको बेवफा
,
समझा नहीं जाता
वसीम बरेलवी
नहीं शिकवा मुझे कुछ बेवफ़ाई का तेरी हरगिज़
,
गिला तब हो अगर तूने किसी से भी निभाई हो
|
-
ख्वाज़ा मीर दर्द
कोई नाम-ओ-निशाँ पूछे तो ए क़ासिद बता देना
,
तख़ल्लुस "दाग़ " है और आशिक़ों के दिल में रहते हैं.
-
दाग़ देहलवी
वफ़ा
' -
ए-बदनसीब को बख्शा है तूने दर्द जो
,
है कोई इस की भी दवा इतना ज़रा बताये जा.
-
रुस्तम सहगल वफ़ा
झूठी ही तसल्ली दो
,
उम्मीद तो बंध जाए
,
धुंधली
–
सी सही लेकिन इक श
माँ
तो जल जाए।
-'
फना
'
कानपुरी
क्योंकर संभालते हमें वो नाख़ुदा जो ख़ुद
,
साहिल की आफियत से भँवर देखते रहे
|
-
हाशिम रज़ा
Tuesday, October 11, 2016
ज़िदगी जाने कितने मोड़ लेती है
,
हर मोड़ पर नए सवाल देती है
;
तलाशते रहते हैं हम जवाब ज़िन्दगी भर
;
और जब जवाब मिल जाये तो
ज़िन्दगी सवाल बदल देती है!
तेरे चहरेकी शराफत मैँ खो गया है कोई
भूल गई उस दर्दको जिस पर रो गया है कोई..
हुस्न हो क्या खुदनुमा जब कोई
जल्वा
ही न हो
,
शमा को
जलने से क्या मतलब जो महफिल न हो।
Saturday, October 8, 2016
उसे मैं याद आता हूँ मगर फुर्सत के लम्हों में..
मगर ये भी हकीकत है उसे फुर्सत नही मिलती..
मैं अभी से किस तरह उनको बेवफा कहूँ
मंजिलों की बात है
,
रास्ते में क्या कहूँ।
नाखुदा मान के बैठे है जिनकी कश्ती में
,
वो हमें मौजों में ले आये है डुबाने के लिये।
Thursday, October 6, 2016
कोई आँसू तेरे दामन मे गिरकर मोती बनाना चाहता हूँ
,
थक गया हूँ तुझे याद करके अब तुझे मै याद आना चाहता हूँ
पी लेना छलकती आँखों से
बादल के भरोसे न रहना
कब साज़ सरकती सांसों का
रुक जाये
,
तरसते न रहना
आँखों के इंतज़ार का दे कर हुनर चला गया
,
चाहा था एक शख़्स को जाने किधर चला गया।
Wednesday, October 5, 2016
मिले तो हज़ारों लोग थे ज़िन्दगी में ...
वो सबसे अलग था जो किस्मत में नहीं था
वह हैं मासूम जिनसे अंजुमन का नज्म बरहम है
,
हमीं पै किस लिए आता है हर इल्जाम ऐ साकी।
आँखों में इंतज़ार के लम्हात सौंपकर
नींदे भी कोई ले गया अपने सफ़र के साथ
|
Monday, October 3, 2016
लोग कहते हैँ कि तू अब भी खफा है मुझ से
,
तेरी आँखो ने तो कुछ और कहा है मुझ से
|
एक वो जिन के लिए तूफाँ किनारे बन गए ...
एक हम जिन की किस्मत में कहीं साहिल न था
आप क्यू
अपनी बदनसीबी पर रो रहे
हो
हसीँ जिँदगी को अपने हाथोँ से खो रहे
हो
Sunday, October 2, 2016
यूँ न कहो कि ये किस्मत की बात है ....
मेरी तबाहियों में तुम्हारा भी हाथ है
तेरे खत का इंतजार करते करते बीत गया हर लम्हा
ना तेरा खत आया ना कम्बक्त कासिद आया।
तेरे आने की उम्मीद में एक पैगाम लिखा है
अश्कों की सियाही से तुझे सलाम लिखा है
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