Wednesday, November 30, 2016

आप ही के नाम पर पाई है हमने ज़िन्दगी,
खत्म होगा ये किस्सा आप ही के नाम पे ।

जो के जुनुन का आज मुझे मिल गया सिला,
अच्छा हुआ जो तुमने भी दिवाना कह दिया ।

अरे हम तो ऐसे बदनसीब है मेरे दोस्त,
बेचे अगर कफ़न तो लोग मरना छोड़ देँ...

Monday, November 28, 2016

कौनसा ज़ख्म था जो ताज़ा ना था
इतना गम मिलेगा अंदाज़ा ना था
आपकी झील सी आँखों का क्या कसूर
डूबने वाले को ही गहराई का अंदाज़ा ना था

आज तेरे प्यार में एक शमा जलाए है
तेरे आने की उम्मीद मे आँगन सजाया है
तेरा राह देखती है यह तरसती आँखें
तेरी मोहब्बत से मैने ख्वाबो का किला बनाया है

अब तो इस राह से वह शख्स गुजरता भी नहीँ।
अब किस उम्मीद पे दरवाजे से झाँके कोई॥

Friday, November 25, 2016

वो लिखते हैं हमारा नाम मिटटी में,और मिटा देते हैं ,

उनके लिए तो ये खेल होगा मगर,
हमें तो वो मिटटी में मिला देते हैं

नोटबंधी

हमें भी आ पड़ा है दोस्तों से काम कुछ यानी
हमारे दोस्तों के बेवफा होने का वक्त आया।

मैं समझता हूँ तेरी इशवागिरी को साकी,
काम करती है नजर, नाम पैमाने का है

Saturday, November 19, 2016

ए दोस्त तेरी दोस्ती पे नाज करते है
हर बकत मिलने की फरियाद करते है
हमें नही पता घरवाले बताते है
के हम नीदं में भी आपसे बात करते हैं

आसुओं के चलनेकी आवाज नहीं होती
दिल के टुटने की आहट नहीं होती
अगर होता खुदा को हर दर्द का अहसास
तो उसे दर्द की आदत ना होती

वो समझते हैं के हर शख्स बदल जाता है
उन्हें यह लगता है ज़माना उन के जैसा है

Thursday, November 17, 2016

दिल के हर ज़ख्म से आती है वफा की खुश्बु,
ज़ख्म छुप जाऐगे खुश्बु को छुपाऊ कैसे ।

देखा था उसने चाँद सा चेहरा ज़रा सी देर
बहुत देर तक आईने में बड़ी रोशनी रही


हाये ये वीरान आँखेँ, जर्द चेहरा, खुश्क होँट,
आज भी मैरे लिए हो इक गुल-ए-शादाब तुम|


Friday, November 11, 2016

अब मेरा सफ़र तनहा अब उस की जुदा मंजिले
पूछो ना पता उस का तुम मेरे ठिकाने से..

मुझे उस जगह से भी मोहबत हो जाती है..
जहाँ बैठ कर एक बार तुझे सोच लेता हूँ...

देख अपनी बदनसीबी दिल यूं धड़कता यारो
जैसे गुलाब पत्ती-पत्ती बिखरता यारो

Tuesday, November 8, 2016

कभी कभी तेरी यादों के दिलनशीं लम्हे...
कसम खुदा की बहुत बेक़रार करते हैं...

बचपन में हर बारिश में कूद-कूद कर कैसा अलमस्त नहाया हूँ!
चिल्ला-चिल्ला कर कितने-कितने गीतों के मुखड़े गाया हूँ!

जान -ए-सुकून आ भी जा तेरा ही इन्तज़ार है,
आँखों से अश्क है रवाँ जाँ भी बेक़रार है.

Monday, November 7, 2016

मिल भी जाते हैं तो कतरा के निकल जाते हैं
हाये मौसम की तरह दोस्त बदल जाते हैं

दुनिया हज़ार जुल्म करे उसका गम नही होता,
मारा जो तुमने फूल तो वो पत्थर से कम नही होता।

शमा ने इस वहम मे जान ली परवाने की,
कि सुबह कहीं आम न हो जाए, बात रात की ।

Saturday, November 5, 2016

जिस्म छूती है जब आ आ के पवन बारिश में
और बढ़ जाती है कुछ दिल की जलन बारिश में

उस ने छू कर मुझे पत्थर से फिर इंसान किया
मुद्दतो बाद मेरी आँख मैं आंसू आये है यारो....

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है?

Thursday, November 3, 2016

रात हम तो पिये थे मगर आपकी आँख भी शराबी थी,
फिर हमारे खराब होने मेँ आप ही कहिये क्या खराबी थी|

नरेश कुमार शाद
जाने तब क्यों सूरज की ख़्वाहिश करते हैं लोग,
जब बारिश में सब दीवारें गिरने लगती हैं |

-
सलीम कौसर
बारिश हुई तो फूलों के तन चाक हो गए,
मौसम के हाथ भीग के सफ्फाक हो गए |
-
परवीन शाकिर
चाक = फटना
सफ्फाक = निर्दयी
हर एक से कहते हैं क्या दाग़ बेवफ़ा निकला,
ये पूछे इन से कोई वो गुलाम किस का था.
-
दाग देहलवी

आप को भूल जाएं हम इतने तो बेवफ़ा नहीं,
आप से क्या गिला करें आप से कुछ गिला नहीं.
-
तस्लीम फ़ाज़ली

क़ासिद के आते आते ख़त इक और लिख रखूँ,
मैं जानता हूँ वो जो लिखेंगे जवाब में.

-
मिर्ज़ा ग़ालिब
दिल गवारा नहीं करता शिकस्ते-उम्मीद,
हर तगाफुल पै नवाजिश का गुमां होता है।
-'
रविश' सिद्दकी

तगाफुल - उपेक्षा,
नवाजिश - मेहरबानी,
वह आये बज्म में इतना तो 'मीर' ने देखा,
उसके बाद चरागों में रौशनी न रही।
-
मीरतकी 'मीर'

Wednesday, November 2, 2016

तमाम उम्र का सौदा है, एक पल का नहीं
बहुत ही सोच-समझ कर गले लगाओ हमें...

बरसों से कान पर है कलम इस उम्मीद पर
लिखवायेंगे वो ख़त मेरे ख़त के जवाब में

कोई समझाए ये क्या रंग है मैख़ाने का
आँख साकी की उठे नाम हो पैमाने का।