मरते मरते रोज, अब इतना मर गए
तेरी यादों के सिवा, बाकी स्वाहा हो गए
बेरुखी तेरी और तन्हा हम हो गए
धस गई आँखे भीतर यू तुम्हे सोचते रह गए
तुम न समझे हाल-ए-दिल पत्थर हो गए
जबर्दस्ती नही प्यार में खामोश हम हो गए
---- सुनिल #शांडिल्य
बालों से बदरा लाती प्रेयसी
हर लम्हा दिल चुराती प्रेयसी
होंठों से गीत गुनगुनाती प्रेयसी
बच्चों सी खिलखिलाती प्रेयसी
चूड़ी पहन सावन लाती प्रेयसी
कमरबंद पहन इठलाती प्रेयसी
यौवन पर इतराती,मेरी प्रेयसी
बाहों में अक्सर सो जाती प्रेयसी
है लाखों में एक..वो मेरी प्रेयसी ..
भूल कर तुम्हे खुद को कहा रखेगे
तू जगह दे, न दे तुझे दिल मे रखेगे
बनाया जो रिश्ता हक, हक रखेगे
तुम रखो न रखो हम ताउम्र रखेगे
बेवक़्त गुजरा, ताउम्र साथ रखेगे
बनाया रिश्ता उसकी लाज रखेगे
शामिल तेरे ज़मीर में जमीर रखेगे
वक़्त पर तुझे हर रिश्ते शामिल रखेगे
तेरे माथे पे लगी
वो छोटी काली बिंदी,
चाँद पर लगी किसी
जरूरी दाग की तरह है ।
तेरी आंखों में लगा
काला गाढ़ा काजल,
तेरी आंखों को 'हाय'
और गहरा कर रहा है ।
तेरी कानों के झुमके संग
स्याह जुल्फों की जुगलबंदी
तुझे मुझ शायर की इक
खुबसूरत नज्म बना रहा है ।।
तुम पास नही हो तो
आँखों में आँसू बन आती हो .. तुम ,
कभी लबों पर ..
मुस्कान बनकर आती हो .. तुम,..
कभी तिनका तिनका रुहानी
मोहब्बत का एहसास कराती हो .. तुम .
जब भी मेरे पास आती हो तो
अपना बना जाती हो ... तुम ..❤️
तुम.. हां तुम .. सिर्फ तुम ..❤️
तोड़ कर जंजीरें भी फिर वो चला जायेगा
जिसे अहसास नही वो रिश्ता क्या निभाएगा
जो मतलब से जुड़ा, मतलब से ही आयेगा
गर दिल से जो जुड़ा होगा कही नही जायेगा
बेपीर दिल की पीर कोई क्या समझ पायेगा
जो समझ गया वो रिश्ता दूर रह भी निभाएगा
मन की डोर, आकाश का छोर
उनसे गहरी है, समाधि की डोर
जिन्दगी पल, दो साँसों की डोर
अमृत बरसेगा संग प्यार की डोर
अहम जड़, का नही कोई छोर
सरस, विरल मन अमृत सी डोर
मिलन-मिलाप मधुर प्रेम की डोर
अहम क्या जाने स्नेह-प्रेम की डोर
विरह देकर मिले न स्नेह की डोर
भरोसा खरा, आनन्दमय की डोर
चाँद पूर्णिमा का आज उतरा गगन में
न जाने खोया कहा चाँद मेरा भीड़ में
रहता है वो ही मेरे रूह के जर्रे-जर्रे में
घनघोर अंधेरा छाया शरद पूर्णिमा में
रोज पूर्णिमा होती थी...उसके संग में
शीतल पूर्णिमा भी गर्म उसके बगैर में
न जाने कब आएगी संग वो पूर्णिमा में
कब छंटेगी तन्हाई मेरी...
सांस रुक जाए
मगर आंखें कभी बंद न हो
मौत आए भी तो
तुझे देखने की जिद खत्म न हो
तेरे लिए है ये दुआ मेरी
मेरे खातिर कोई भी जख्म न हो
जिन चिरागों को जलाने को आग नही
उन लाशों पर कभी जुगनुओं का जश्न न हो
जिंदगी तुमसे मेरा खून का रिश्ता
मगर ऐसे रिश्तो में कभी जन्म न हो ।।
लाल लाल शरारा पहन कर चली है
देखो आज प्रेयसी मेरी रानी सी सजी है
काला कजरा उसकी शोभा नयन की
सर से है पांव तक गहनों से लदी है
हाथों में मेहंदी मेरे प्यार की कहानी है
नयना झुकाये ना कुछ कहती जुबानी है
शर्म से नैन झुका करती वो इशारे है