Tuesday, February 28, 2017
वक्त की हवाओं का यारों असर देख लो,
बिख़रे हुए पत्तों का ये मंज़र देख लो।
शौक से छुप जाओ बेवफाई के जंगल में,
पहले मेरी आंखों में वफ़ा का खंज़र देख लो।
अश्कों से उभर आये हैं हथेली पर छालें,
है इंतज़ार में तपिश किस कदर देख लो।
पल-पल में हुस्नें रंगत उड़ती नजर आयेगी,
आईने में शक्ल गौर से अगर देख लो।
ठोकरों में आये, तो मंदिरों में सज गए,
रास्तों के पत्थरों के भी मुकद्दर देख लो।
‘आस' यूं तो रहते हैं घरों में रिश्ते लेकिन,
दिलों के दरमियां है कितना अंतर देख लो।
बिख़रे हुए पत्तों का ये मंज़र देख लो।
शौक से छुप जाओ बेवफाई के जंगल में,
पहले मेरी आंखों में वफ़ा का खंज़र देख लो।
अश्कों से उभर आये हैं हथेली पर छालें,
है इंतज़ार में तपिश किस कदर देख लो।
पल-पल में हुस्नें रंगत उड़ती नजर आयेगी,
आईने में शक्ल गौर से अगर देख लो।
ठोकरों में आये, तो मंदिरों में सज गए,
रास्तों के पत्थरों के भी मुकद्दर देख लो।
‘आस' यूं तो रहते हैं घरों में रिश्ते लेकिन,
दिलों के दरमियां है कितना अंतर देख लो।
Monday, February 27, 2017
मेरी ज़िंदगी में सहारा नहीं है
किस किस को मैने पुकारा नहीं है
निकलता हूँ घर से तो ये सोचता हूँ
वो क्या कर्ज़ है जो उतारा नहीं है
हर इक अपने साहिल पे पहुँचा हुआ है
कश्ती को मेरी ही किनारा नहीं है
सभी खुश हैं लेकिन मुझे बोलते हैं
तू ही इस जहां में बेचारा नहीं है
मोहब्बत में मेरी कमी होगी शायद
कोई दोष शायद तुम्हारा नहीं है
किस दर पे जाऊं कहाँ सर झुकाऊं
किस किस ख़ुदा को उतारा नहीं है
जो मरते हैं पल पल ज़रा उनसे पूछो
मौत कहते हैं यूँ तो दोबारा नहीं है
किस किस को मैने पुकारा नहीं है
निकलता हूँ घर से तो ये सोचता हूँ
वो क्या कर्ज़ है जो उतारा नहीं है
हर इक अपने साहिल पे पहुँचा हुआ है
कश्ती को मेरी ही किनारा नहीं है
सभी खुश हैं लेकिन मुझे बोलते हैं
तू ही इस जहां में बेचारा नहीं है
मोहब्बत में मेरी कमी होगी शायद
कोई दोष शायद तुम्हारा नहीं है
किस दर पे जाऊं कहाँ सर झुकाऊं
किस किस ख़ुदा को उतारा नहीं है
जो मरते हैं पल पल ज़रा उनसे पूछो
मौत कहते हैं यूँ तो दोबारा नहीं है
Friday, February 24, 2017
मुझे इकरार करना
है,
कि अब तुम मेरे ख़्वाबों में,
कि अब तुम मेरे ख़्वाबों में,
ख़्यालों में
नहीं आते
मेरी तन्हाइयों में,दर्द मैं ज़ख़्मों में,
छालों में नहीं आते
मगर इतना तो है कि तुम…
मुझे हर सुबह,कभी शबनम,
कभी गुंचा,कभी ख़ुशबू,कभी चिडिया…
हर एक शय में,हर एक एहसास में,
छूकर गुज़रते हो,
मेरा हर दिन तुम्हारा नाम लेकर ही
सफ़र आगाज़ करता है…
मेरी तन्हाइयों में,दर्द मैं ज़ख़्मों में,
छालों में नहीं आते
मगर इतना तो है कि तुम…
मुझे हर सुबह,कभी शबनम,
कभी गुंचा,कभी ख़ुशबू,कभी चिडिया…
हर एक शय में,हर एक एहसास में,
छूकर गुज़रते हो,
मेरा हर दिन तुम्हारा नाम लेकर ही
सफ़र आगाज़ करता है…
Wednesday, February 22, 2017
मै सजदे में उनके कुछ यूँ
झुका था
वो शरम कर के बोले सर को उठा लो
हैं आँखों का काजल घटाओं सा फ़ैला
कहीं हो ना बारिश ये नज़रें झुका लो
ग़म मुझको देकर वो मुस्का के बोले
तुम्हारी अमानत है तुम ही संभालो
वो नीची नज़र की क़यामत तो देखी
ये जलवा भी देखें निगाहें मिला लो
ज़माने की नज़रें बड़ी बेरहम हैं
ज़रा अपनी चिलमन को फिर से लगा लो
ये धड़कन रुकी है तो फ़र्क़ क्या है
मोहब्बत रुकी हो तो मय्यत उठा लो
वो शरम कर के बोले सर को उठा लो
हैं आँखों का काजल घटाओं सा फ़ैला
कहीं हो ना बारिश ये नज़रें झुका लो
ग़म मुझको देकर वो मुस्का के बोले
तुम्हारी अमानत है तुम ही संभालो
वो नीची नज़र की क़यामत तो देखी
ये जलवा भी देखें निगाहें मिला लो
ज़माने की नज़रें बड़ी बेरहम हैं
ज़रा अपनी चिलमन को फिर से लगा लो
ये धड़कन रुकी है तो फ़र्क़ क्या है
मोहब्बत रुकी हो तो मय्यत उठा लो
ज़िंदगी सियाह है ज़रा तुम नूर थाम लो
भरी तन्हाई में मुझे कुछ दूर थाम लो
तुम्हारे नाम से मुझको ज़माना जाने है
हो न जाऊं कहीं मै मग़रूर थाम लो
जो दिलों को दिलों से करता है अलग
तुम ज़माने का वो इक दस्तूर थाम लो
मै तो गुमराह हूं तुम भी खो जाओगे
कोई राह तुम तो मशहूर थाम लो
मै तन्हा ही रहा कहता हूं इसलिये
हमसफ़र मेरे हमदम ज़रूर थाम लो
जो है हासिल नहीं उस की क्यों आरज़ू
चोट खाओगे ये अपना फ़ितूर थाम लो
भरी तन्हाई में मुझे कुछ दूर थाम लो
तुम्हारे नाम से मुझको ज़माना जाने है
हो न जाऊं कहीं मै मग़रूर थाम लो
जो दिलों को दिलों से करता है अलग
तुम ज़माने का वो इक दस्तूर थाम लो
मै तो गुमराह हूं तुम भी खो जाओगे
कोई राह तुम तो मशहूर थाम लो
मै तन्हा ही रहा कहता हूं इसलिये
हमसफ़र मेरे हमदम ज़रूर थाम लो
जो है हासिल नहीं उस की क्यों आरज़ू
चोट खाओगे ये अपना फ़ितूर थाम लो
Wednesday, February 15, 2017
समझता हूँ में जज़्बात तेरे मेरी बात भी तू समझ ज़रा
नाम उसका तू बार बार न ले
कही यह दिल उससे बेवफी न दे दे
चिलमन में आग लगी,है कोई मुझे पानी देदे
गुलिस्ता झुलज़ रहा है,
कोई मुझे दो पल की रवानी देदे
गगन चुंबति यह लपते भस्म कर देंगी मुझे
दिल मैं दफ़न है कई राज़
कोई इस तन्हा दिल तो पनहा देदे
दिल की आच में तो मैं पहेले से ही झुलज़ रहा हूँ
कोरी सदी सुखी है साँसे
Subscribe to:
Posts (Atom)