Saturday, December 30, 2023

प्यार की हमराही हो तुम मेरी,ऐसा ही मैंने जाना है
तुम जैसा कोई और नहीं, दिल ने ये पहचाना है

दिल मेरा तू मेरी धड़कन है, मैं पानी तू चंदन है
आँखों मेंं रहने वाली तू,निंदिया रूपी अंजन है

रूपका तेरे जादू मुझ में,ऐसा ही मैंने जाना है
तुम जैसा कोई और नहीं, दिल ने ये पहचाना है

सपनों की मेरे प्रेम-परी तुम, सपनों में ही रहना चाहूँ।
कुछ भी मैं न माँगूं रब से, दिल में तेरे रहना चाहूँ।।

धड़कन तेरी मेरी गज़ल है, ऐसा ही मैंने जाना है।
तुम जैसा कोई और नहीं है, दिल ने ये पहचाना है।।

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Friday, December 29, 2023

मेरी हर धड़कन की आवाज हो तुम!
सात सुरों की साज हो तुम !
कैसे तुम बिन जीवन संगीत बने !
मेरे जीवन की सुरमई संगीत हो तुम !
मेरी हर धड़कन की आवाज हो तुम !
कोई लफ्ज़ नहीं लिखने को तेरे वास्ते,
मेरी हर एहसास की धार हो तुम!
बस यही जताना था कि मेरी,
हर धड़कन की आवाज हो तुम!

तेरे बिन सब अधूरा , 
तुझ संग सब परिपूर्ण है!
खुद को मैंने खो दिया, 
मगर तुम मुझमें संपूर्ण है!
नहीं कोई सफ़र तेरे बिन, 
ना कोई मंज़िल की दरकार है
तेरे बिन सब खुशियाँ अधूरी , 
हर खुशियों की धार हो तुम,
मेरी हर धड़कन की आवाज हो तुम!

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Wednesday, December 27, 2023

जिंदगी है
तो जीनी तो पड़ेगी
दुख और सुख
आयेगे और गुजर जायेंगे..
सफर जिंदगी का
हंसते रोते गुजर जायेंगे
सुबह बचपन
दोपहर जवानी
शाम बुढ़ापा
और रात आएगी
हम चांद के बगल का
तारा हो जायेंगे ..
रह जायेगी स्मृतियां
वो भी कुछ दिन बाद विलुप्त हो जाएगी ..
जिंदगी यूं ही जी जाएगी !

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Sunday, December 24, 2023

तेरी मोहब्बत में डूबना ही मेरी किस्मत है
ये वो दरिया है जो तैरकर हमसे पार ना होगा।

सांसें काबू दिल इख्तियार नहीं होगा
अब तेरे सिवा किसी और से हमें प्यार नहीं होगा।

इस जन्म में तुम मिलो ये उम्मीद भी नहीं 
और अगले जन्म तक हमसे इंतजार नहीं होगा।

ले आऊं जमाने भर के फूल भी अगर
तुम बिन जिंदगी में बाहर नहीं होगा।

तुम छोड़ जाओ या ले लो जान भी 
गुमनाम तुमसे कम कभी प्यार नहीं होगा

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Wednesday, December 20, 2023

धड़कनें देख-भाल कर रख दूँ
ला तेरा दिल सम्हालकर रख दूँ

तुझको मुझ पर यकीं न आये तो
मैं कलेजा निकाल कर रख दूँ

तेरे होंठो की प्यास की ख़ातिर
सारे दरिया उछाल कर रख दूँ

आँच है इस क़दर इरादों में
मैं समुन्दर उबालकर रख दूँ

आने वाली है रौनके-महफ़िल
मय पियाले में डालकर रख दूँ

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Monday, December 18, 2023

मैं ढूंढता हूँ तुम्हें..अर्थ भरे शब्द विचारों में 
ढूंढता हो बच्चा जैसे सीपियाँ, समंदर के किनारों में

तुम पथ हो मेरा..मैं राही उस पथ का 
सारथी हो ''तुम'' मेरे जीवन रथ का,

बिछे हुए हैं तुम्हारे स्नेह पुष्प..मेरी पथरीली राहों में
अगर कहीं गिर जाऊं तो,थाम लेना मुझे अपनी स्नेहिल बाँहों में
तुम अक्सर संग रहते हो,गंभीर होते विचारों में 
रोशन करते हो दीपक बन जीवन के अंधियारों में 

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Saturday, December 16, 2023

मैं शब्द भर तुम मेरी शब्दशक्ति !
मैं मूक कलम तुम मेरी अभिव्यक्ति !

मैं करुण-हास्य रस तुम मेरी सरस श्रृंगार !
मैं खंडित वाक्यांश तुम मेरी अलंकार !

मैं बूँद एक पत्थर पर तुम जल भरी सरिता !
मैं चंद छन्द ठहरा तुम मेरी पूरी कविता !

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Friday, December 15, 2023

ये शाम ढल चुकी है, अब तक तूं न आयी।
पता क्या है जिन्दगी का, खलती तेरी जुदायी।।

थक गया हूं चलते-चलते, आके मुझे सम्हालो।
दर्द देख दिल का, रजनी भी मुस्करायी।।

चंदा भी झांकता है, मद्धिम चाँदनी सहारे।
यह दशा देख मेरी, कुमुदिनी खिलखिलायी।। 

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Thursday, December 14, 2023

दुनिया में हर किसी को एक साथी की जरूरत है
चाहे वह एक पुरुष हो या वह एक स्त्री सबको

आज की इस दौड़ में सब की एक ही चाहत रहती है
एक ऐसे व्यक्ति की तलाश होती है जो समझे उसे

फर्क इतना है कि सभी का व्यक्तित्व एक सा नहीं
क्योंकि यहां हर कोई मुखौटे में लिपटा मिलता है

दुनिया जितनी दूर से खूबसूरत दिखती है
काश !उतना ही खूबसूरत होती तो क्या बात है?

एक पुरुष को ऐसी साथी की तलाश होती है
जो उसे समझे और स्नेह से सराबोर कर दे।

उसे जीवन में एक मित्र चाहिए फिर मित्र से ज्यादा
फिर यह चाहत उसे आकर्षण की ओर ले जाता है।

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Monday, December 11, 2023

कभी नैन देखता हूँ कभी नक्श देखता हूँ ,
तेरी शोख अदाएं तसल्ली बख़्श देखता हूँ..!

चाँद सी कशिश है ताजमहल सा जिस्म ,
झील सी गहरी आँखों में इश्क़ देखता हूँ...!

अंगारों से होंठ तेरे ज़ुल्फ़ घटा सावन की ,
हर तरफ वादियों मैं तेरी खुशबु देखता हूँ..!

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Friday, December 8, 2023

आंख में कुछ नमी नमी सी है 
तेरी चाहत जगी जगी सी है
तेरे आने की राह तक तक कर 
अब नज़र भी जमी जमी सी है

चोट तेरी ज़फ़ा की जानेमन 
मेरे दिल पर लगी लगी सी है
तेरे बिन महफिलों में मेरे सनम 
मुझको लगती कमी कमी सी है

तेरे दीदार के बिना हमदम 
सांस मेरी थमी थमी सी है
लोग लाखों हैं पर तबीयत यह 
सिर्फ तुममें रमी रमी सी  है

खुशियाँ फैली हैं जान चारों तरफ 
किन्तु दिल में गमी गमी सी है
राज इस बेरुखी से तेरी सुन 
मेरी हसरत ठगी ठगी सी  है 

~~~~ सुनिल #शांडिल्य 
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Wednesday, December 6, 2023

मैं पुरुष हूँ

मैं भी घुटता हूँ, पिसता हूँ टूटता हूँ, बिखरता हूँ
भीतर ही भीतर रो नही पाता कह नही पाता
पत्थर हो चुका तरस जाता हूँ पिघलने को

क्योंकि मैं पुरुष हूँ

मैं भी सताया जाता हूँ जला दिया जाता हूँ
उस दहेज की आग में जो कभी मांगा ही नही था
स्वाह कर दिया जाता हूं मेरे उस मान-सम्मान का
तिनका-तिनका कमाया था जिसे मैंने 
मगर आह नही भरसकता

क्योकि मैं पुरुष हूँ

मैं भी देता हूँ आहुति विवाह की अग्नि में अपने रिश्तों की 
हमेशा धकेल दिया जाता हूं 
रिश्तों का वजन बांध कर जिम्मेदारियों के उस कुँए में
जिसे भरा नही जा सकता मेरे अंत तक कभी

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Tuesday, December 5, 2023

कौन कहता है मर्द को दर्द नहीं होता है,
वो पंछी है जो पंख फैला सकता है उड़ नहीं सकता है। 

सीने में लिए दर्द घुट-घुट कर मरता है,
होंटो पर रख मुस्कान मंद-मंद मुस्कुराता है।

मर्द होने की कीमत चुकाना पड़ता है,
भविष्य में परिवार को चलाना होता है।

इसकी चिंता होश सम्भालते रखना होता है,
हर की पूर्ति को पूर्ति करना होता है।

गर हुई पत्नि-माँ में अन बन,
दो पार्ट के बीच पिस जाना है।

कोई कानून समाज हक में नहीं होता है,
कदम कदम पर मर्द को ही गलत ठहराया जाता है।

पुरुष संतान पैदा करने का दर्द नहीं सहता है,
लेकिन अच्छी परवरिश देने का दर्द जानता है।

अपने परिवार से दूर रहना क्या होता है,
दूर रह कर कमाने का दर्द मर्द ही जानता है।

कौन कहता है मर्द को दर्द नहीं होता है
वो पंछी है जो पंख फैला सकता है उड़ नहीं सकता है।

~~~~ सुनिल #शांडिल्य 

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Saturday, December 2, 2023

चांद सा सुहाना है तेरा चेहरा
उसपे देती है काला तिल पहरा

कजरारे नयन करते जादू
खुद पे नही रहता मेरा काबू

ख्वाब भी तू ख्याल भी तू
सम्मोहित करती तिलिस्म जाल तू

तेरा यौवन हल्दी चन्दन
करता हूं तुझसे प्रणय निवेदन

देखकर तेरा सुंदर चेहरा
बोल दे तू गर तो बांध लूं सर पे सेहरा

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Friday, December 1, 2023

पहली बार इसी छुक-छुक ट्रेन की सवारी की थी.. 
वो भी सीधे चालक के रूप में.. 
मुँह से ही 'पी-पी' का हाॅर्न बजाते 
इससे न जाने कितनी बार घर, दालान, दुआर सब घूमा.. 
कई बार लड़ी-भिंड़ी भी.. 
पर संभल कर दौड़ती रही हमेशा...

ये जब से छूटी.. जिंदगी बेपटरी ही रही हमेशा.. 

~~~~ सुनिल #शांडिल्य