मेरी रूह के रहनुमा रहगुजर
दिल की दौलत, सांसों के स्वर
भटके मुसाफिर की मुकम्मल डगर
मेरी धडकनो की जरूरत हो तुम
संगतराशो की फनकारी के फन से निकल कर
नक्काशी की जद-हद से बाहर निकलकर
करिश्मों के जलवे से आगे निकल कर
खुद से तराशी हुई अजंता की मूरत हो तुम।
चाँदनी में नहाई बदन की रंगावट लिए
केसर की क्यारीयों सी सजावट लिए
किसी अप्सरा सी मचलती बनावट लिए
मेरे जिंदा सफर की मुहूर्त हो तुम
महकते गुलाबी बगीचों की खुशबू समेटे हुए
खिलखिलाती सुबह की लिखावट लपेटे हुए
सुरमई सांझ का मौसम सुहाना सहेजे हुए
कल्पनाओं के सागर की सूरत हो तुम
~~~~ सुनिल #शांडिल्य