Wednesday, November 30, 2022

मन गगन उपवन
चित चपल चंचल
सहयोग भी निस्वार्थ है
हां मित्रता विश्वास है ।

निज मित्र के उत्थान में
अपना भी गौरव गान है ।
हों तन भले ही दो
मन एक विद्यमान है ।
संबंध के अनुबंध में
संबंध यह कुछ खास है
हां मित्रता विश्वास है ।

निज मित्र के कल्याण को
श्री कृष्ण ने प्रण तोड़कर
बलिदान हो गया कर्ण भी
सर्वस्व अपना छोड़कर
इस प्रेममय संबंध का
बस त्याग ही विज्ञान है
हां मित्रता विश्वास है

हो हर तरफ आनंद या
फिर जिंदगी की धूप हो
दुःख की घिरी हो बदलियां
या कुछ और समय का रूप हो 
मित्रता एक आस है !

~~~ सुनिल #शांडिल्य

Thursday, November 24, 2022

तुम्हारा रिश्ता 
रूद्राक्ष जैसा है मेरे जीवन में 
धारण हो गया है ह्रदय में 
जोग की तरह....l

ध्यान की दर्शना में 
दिए की लौ और धूप के धुएं जैसा 
एकसार हुआ दिखता है

तुम्हे जानने की उत्कंठा 
तुम्हारी गहराई को पाने की खवाइश 
इन सबने , 
मेरे अंदर के सफर को बढ़ा दिया है..

~~~ सुनिल #शांडिल्य

Wednesday, November 23, 2022

तुम सुबह की चाय की तलब से हुये
इलायची की खुशबू अदरक के जायके से हुये 

पानी और दूध एक हो जाता है जैसे 
इक दूजे में हम यूँ हीं घुले मिले से हुये

रंग गहरा हो जैसे पत्ती का
हम अपनी चाहत के रंग से गहरे हुये

यूँ आ गयी शक्कर की मिठास जिंदगी में
जैसे इश्क की चाशनी में हम डूबे हुये

~~~ सुनिल #शांडिल्य

Monday, November 21, 2022

याद है तुम्हें?
एक दिन पूछा था तुमने मुझे 
तुम मुझे कितना प्यार करते हो?
तब मैं चुप था और 
तुम्हारा गुस्सा फूट पड़ा था |

प्यार कौन किसीसे कितना करता है 
यह सवाल ही असमंजस में डाल देता है 
मगर जिद्द भी तो थी तुम्हारी.... 

सुनो, मैं तुमसे इतना प्यार करता हूँ कि-
माँ की गोद में जब बच्चा सोता है तब 
वो नहीं पूछता; 
'माँ, मुझे कितना प्यार करती हो?"

और 
माँ के मन में सवाल पैदा ही नहीं होता कि-
उनके बेटे को कितना प्यार है...?

~~~ सुनिल #शांडिल्य

Sunday, November 20, 2022

है प्यार में यह मुस्कुराती जिन्दगी 
है साथ तेरे खिलखिलाती जिन्दगी ।

शामो सहर सोचा तुझे कर याद जो 
है ख़्वाब में भी झिलमिलाती जिन्दगी ।

रहमत रहे एहसास में तेरी खुदा 
कुर्बत रहे तो गुनगुनाती जिन्दगी ।

एहसान तेरा है मुझे हरपल घड़ी 
है बन्दगी की शाम अपनी जिन्दगी ।

~~~ सुनिल #शांडिल्य

Saturday, November 19, 2022

रातें गमगीन हैं दिन बिना रौशनी
इल्तिजा आखिरी बस तेरा साथ हो! 

यूँ तो जीने को है जिंदगी भी बहुत
ख्वाहिशें कह रहीं हाथ में हाथ हो

बनके आसीर सा मैं पड़ा अन्ज पर
भर लो आगोश में साँस भी साथ हो

एक फरमान है दिल में अरमान है
मैं जहाँ भी रहूँ तू मेरे साथ हो

---- सुनिल #शांडिल्य

Friday, November 18, 2022

चांदनी

चांदनी झिलमिलाती रही रात भर।
आपकी याद आती रही रात भर।।

एक तस्वीर दिल में संभाले रखी,
ख़्वाब में आती जाती रही रात भर।।

शब कटे अब नहीं बिन तुम्हारे सनम,
चांदनी ये सताती रही रात भर।।

रूबरू हो कभी आरज़ू थी मेरी,
ख़्वाब बन कर सताती रही रात भर।।

---- सुनिल #शांडिल्य

Thursday, November 17, 2022

श्वास श्वास तुमको अर्पण है 
तुम जीवन आधार  प्रिये
तुम्हे नयन की शोभा कर लूं 
तुमको यदि स्वीकार  प्रिये

अरुणोदय मे मुझे तुम्ही 
दृष्टित होती हो कलियों मे 
प्रेम गीत का मधुर राग तुम  
तुम मधुकर गुंजार  प्रिये

अवचेतन सा अन्तर्मन था
सोई थी अनुभूति हमारी
मन मे तेरे नूपुर छनके
हुई मृदुल झंकार  प्रिये

मेरा हर स्पन्दन क्षण-क्षण
सिर्फ  तुम्हारी  चाह  करे
मेरे मन  के प्रेम  पुंज  पर
प्रथम  तेरा अधिकार  प्रिये

प्रेम  यज्ञ  मे  अर्पित  कर  दूं
निज  को  आहुति  सम स्नेह
है अनुरक्ति  तुम्हारी  मन  मे
तुम प्रेम पुष्प  का  हार  प्रिये

~~~ सुनिल #शांडिल्य

Wednesday, November 16, 2022

रास न आयी वफ़ा हमारी
क्या थी बोलो ख़ता हमारी

साथ मिला तो हमसफ़र बने
फ़िर क्यूं हूई रज़ा हमारी

यादें पिछ़ा न छ़ोड़ती है
तनहाई है कज़ा हमारी

चैन गया जिंदगी विरानी
जीना जैसे सज़ा हमारी

फेर लिया मुंह बहार ने भी
दर्दभरी दास्तां हमारी

सोच सुमा का दिल भर आया
बेजूबां सी जुबां हमारी

---- सुनिल #शांडिल्य

Tuesday, November 15, 2022

प्रेम क्या है
महज एक रिश्ता
स्त्री और पुरूष का
या सिर्फ़ आकर्षण!!!

एक अभिव्यक्ति
जो एक स्त्री या पुरूष
करतें हैं एक दूसरे से
और थाम लेते हैं हाथ
एक दूसरे का ताउम्र के लिए!!!

नहीं,
प्रेम_समर्पण है
सच्चा प्रेम केवल
स्त्री के देह से प्रेम
नहीं करता!!!

स्त्री के प्रेम की तृप्ति
यूँही शांत नहीं होती
आसान नहीं होता स्त्री के
प्रेम स्वरूप को समझना!!!

स्त्री के प्रेम की
तृप्ति होती है
तुम्हारे दिये मान
और सम्मान से
तुम्हारे उस आलिंगन से 
जिसमें स्त्री स्वयं को
सुरक्षित महसूस करती है!!!

---- सुनिल #शांडिल्य

Saturday, November 12, 2022

मौन है स्त्री निः शब्द नहीं
आवाज़ है बस बोलती नहीं

जज्बात है मुँह खोलती नहीं
चाहत है पर किसी से उम्मीद नहीं

पहल ना करती पर किसी से डरती नहीं
जीत की चाह नहीं हार मानती नहीं

आईना है पर बिखरती नहीं
दर्द से भरी है पर जीना छोड़ती नहीं....

---- सुनिल #शांडिल्य

Friday, November 11, 2022

बस इक लम्हा तेरी ख़ुशबू का गुज़ारा हमने
ज़िन्दगी भर उसे फिर दिल में संवारा हमने

जब भी यादों ने ख़्वाबों से जगाया है हमें 
ले के होंठों पे हँसी तुमको पुकारा हमने

कोई कहता हमें पागल तो दीवाना भी कोई
किया दुनिया का यूँ हँसना भी, गंवारा हमने

---- सुनिल #शांडिल्य

Wednesday, November 9, 2022

आज भीगो दो तन मन मेरा
फिर कोपले उग आने दो,

प्रेम बिखर जाने दो ह्रदय में,
कमल पुष्प ये खिल जाने दो,

ये पतझड़ अब तो बीत गया,
नव अंकुर खिल जाने दो,

दे दो ना फिर शब्द मुझे तुम
तोडूं मैं ये मौन गजल बन जाओ 

रीत रहा है नेह तुम्हारा,
प्रेमसुधा अब बरसा जाओ,

---- सुनिल #शांडिल्य

Tuesday, November 8, 2022

सुख दुख बादल जैसे हैं
आते हैं और जाते हैं
ढंग भी कैसे कैसे हैं
सुख दुख बादल जैसे हैं

बैठे बैठे रात कट गई
रोते सोते दिन बीता
दुख का पहरा है घर में
तो रस घट लगता है रीता

आँसू भरे नयन सागर के
रंग भी कैसे कैसे हैं
अपनों की पहचान हुई कि
संग भी कैसे कैसे हैं

करुण हृदय में दर्द भरा है
अश्रु नीर छल छल बहते
अनहोनी के साये में वे
मन की व्यथा कहाँ कहते

ग़म की कट जाती हैं रातें
सुख का सूरज भी आता
नए उजालों के सपनों में
सुख दुख बादल जैसे हैं

---- सुनिल #शांडिल्य

Monday, November 7, 2022

ढ़ूंढते हॆं रेत में हम नदी के गीत
तोड़ कर पहाड़ जो धरा पे धार धार थे

धार धार थे समय के ऒर आर- पार थे 
आर ऒर पार की सर्जना के गीत

युग की प्यास के लिये जो नीर क्षीर थे हुये
व्यास कालिदास ऒर फिर कबीर थे हुये

रीतियों के बंधनों से मुक्त जिनकी रीत 
गीत फिर से राह एक प्यार की बनायेंगे

सृष्टि के हजार रंग एक रंग नहायेगे 
गीत वे कि सिद्धि- साध्य ज़िन्दगी के मीत 

---- सुनिल #शांडिल्य

Saturday, November 5, 2022

बाहों के घेरे में नेह को न बांधना
मीत मेरे प्यार को बंधन मत मानना

भावना के द्वारे से तुम को निहारा है
बिना किसी कामना के तुम को पुकारा है

निष्छल अभिलाषा से प्रीत जो संजोयी तो
मीत मेरे इस पल को एक नमन मानना

बहती बयारों संग फूल फूल बहके हैं
मधुरिम सुगंधें ये पल पल में महके हैं

---- सुनिल #शांडिल्य

Thursday, November 3, 2022

धरा तुम कितनी मनोहर
प्रकृति की अनुपम धरोहर
हृदय में अपने समेटे
हिमशिखर,मरूधर,सरोवर।

तुम कभी श्रंगार करतीं
इन्द्रधनुषी बन गगन में
फिर कभी मनुहार करतीं
तितली बन उड़ती गगन में।

वन कहीं,उपवन कहीं
है चंचला सा मन तेरा
ताप भी है,शीत भी है
उघरा कहीं है तन तेरा।

---- सुनिल #शांडिल्य

Tuesday, November 1, 2022

ज़िंदगी के कैनवास पर
उकेरो सुनहरे,रुपहले पल

ज़िंदगी के कोरे पन्ने पर
लिखो स्नेह के मंत्र और आयतें

ज़िंदगी के साज़ से
ध्वनित कर लो अन्तर्मन

ज़िंदगी संगीत है
गुनगुना लो मधुर तानों को

और

जीवन घट भरलो अनमोल यादों से
यादें हाँ यादें साथी तन्हाई का
देती हैं हौसला जीवन जीने का

---- सुनिल #शांडिल्य