Saturday, April 30, 2022

 तुम आई !

जैसे पतझड़ के बाद बसंत

और संग

लाई बहार


मैं कोई माटी का टुकड़ा

और तुम जैसे कोई कुम्हार


हौले हौले थपक थपक कर

तुमने मुझे तराशा चाक पे


प्रेम से 

तकरार से 

मनुहार से


तुमने मुझे समझा इतना

जितना मैं भी खुद को नही समझ सका


लग जाओ सीने से

सुनो इस दिल की धड़कन

पुकारती नाम तेरा 


---- सुनिल #शांडिल्य

Friday, April 29, 2022

 उस तपिश में पिघलते है

दो मन दो तन ..

बीजारोपण होता है

मिलन का ..

अंकुरित होती है

फलती है ..

प्रेम का वटवृक्ष ..


प्रेम के वटवृक्ष के छांव में,

सुकूँ पाती हैं

वह प्रेमी और प्रेमिकाएं नही,

होती हैं दो रूहें


---- सुनिल #शांडिल्य

Thursday, April 28, 2022

 अधर बाबरे जिव्हा पागल

कहने को कुछ भी कह जाएं


किस मुंह से मैं कह दूं बोलो

तुमसे मुझको प्यार नहीं है।


एक नहीं है अनगिन बातें

जबकि तुम्हारा प्यार दिखा है


मान मनव्बल पाया तुमसे

मनचाहा मनुहार दिखा है


रुठा हुआ मनाया तुमने

अपने हृदय लगाया तुमने


किस मुंह से मैं कह दूं बोलो

तुमसे मुझको प्यार नही है। 


---- सुनिल #शांडिल्य

Wednesday, April 27, 2022

 खुशी सबमें लुटाकर के बड़ी अपनी खुशी कर लें

भला जिसमें सभी का हो चलो बातें वही कर लें


सुखों ने दूरियां हमसे हमेशा ही बनाई हैं।

रहे दुख पास में अपने उन्हीं से दोस्ती कर लें।


गुजारी हैं कई रातें निपट गहरे अंधेरे में ।

तुम्हारी याद से रोशन चलो कुछ जिन्दगी कर लें।


---- सुनिल #शांडिल्य

Monday, April 25, 2022

 अति व्याकुल मन

तरस रहा पर्तिक्षण

वेदना के तप्त अग्नि में

जलता मन

ऋतू पावस की घनघोर घटा

बन

कब बरसोगे मेरे मिर्दुल तन.?

अल्ल्हड़ सरिता -सी

वेगवती जलधारा

पुलकित प्रवाहमान

चूमती चली थी किनारा

पथिक प्यासा

अतृप्त कंठ याचना भरी आशा

अमृतमय रसपान

आतुर-सी भाषा

बाबरी-सी बन


---- सुनिल #शांडिल्य

Sunday, April 24, 2022

 हर ह्रदय के

अनंत विस्तार में हर घड़ी 

चलायमान रहता है

एक कुरुक्षेत्र 

जहां सदैव से ही विद्यमान है 

असंख्य दैवी व असुरी शक्तियाँ 

जो युद्ध के शंखनाद 

और भीषण रणभेरी के 

अभेद्य उद्घोष के बीच

हमारे मन पर

अपनी अपनी सत्ता

अपने आधिपत्य की स्थापना हेतु 

हैं निरंतर संघर्षरत


---- सुनिल #शांडिल्य

Friday, April 22, 2022

 नर-नारी की तुलना 

बेमतलब बेहिसाब है ।


जीवन रथ में दोनों 

एक दूजे का साथ है।


एक श्रद्धा विश्वास तो

दूजा तप पुरुषार्थ है।


नारी ममता की मूरत

तो नर पालन हार है।


इक आँचल की छाया

दूजा लुटाए प्यार है ।


जीवन के कुरु समर में

एक कृष्ण है देखो 

दूजा आर्य महान है।


---- सुनिल #शांडिल्य

Thursday, April 21, 2022

 मैं इश्क करता ही रहूंगा

तेरी यादों में खोता रहूंगा


मिलती है दिल को राहत

तेरे ख्वाब मैं बुनता रहूंगा


पलकों को अपने बंद करकर

तेरा अक्स उसपे मैं सजाऊंगा


आधे अधूरे एहसासों संग

यूं ही मैं तुम्हें चाहता रहूंगा


तेरे बिन मेरा है वजूद शून्य

चाहते हुए तुम्हें मैं मर जाऊंगा ।


---- सुनिल #शांडिल्य

Friday, April 15, 2022

 बेवजह  मुस्कुराना  सीख लिया है ,

ग़म-ए-दिल छुपाना सीख लिया है ।


ऐ  चाँद  तू भी दे  अब तपिस मुझे ,

आग पर चल जाना सीख लिया है ।


राहों  मे  फ़क़त  कांटे  हैं  तो  क्या ,

ज़ख्मी पांव चलाना  सीख लिया है ।


किसी का भी नही असली चेहरा यहां ,

"शांडिल्य"नक़ाब लगाना सीख लिया है ।


---- सुनिल #शांडिल्य

Thursday, April 14, 2022

 है सारा बदन छलनी और दिल जख्मी है ;

थी कैसी मसीहा तू,क्या शिफ़ा तूने बख्शी है ।।


कुरेद कुरेद कर यादों का अलाव जगाता हूं ;

ऊपर से ठंडी हुई है, अंदर आग सुलगती है ।।


बहुत रोका है अश्कों को फिरभी छलक जाता

जैसे पत्थर का सीना चीरकर दरिया बहता है ।।


---- सुनिल #शांडिल्य

Wednesday, April 13, 2022

 नैनों के जलज

अश्रु सरोवर मध्य खिलेंगे


रो ले तू जी भर सुकून से लग मेरे गले

फिर न जाने कब कहां मिलूं मैं


बातो बातो में तुम यूं

नैनो के रास्ते दिल में उतरे


लहू की रवानी में तुम

हृदय की धड़कन में तुम


सीने से लग मेरे तु कुछ यूं गले

जब तक रहे जीवन अहसास रहे कायम ..


---- सुनिल #शांडिल्य

Monday, April 11, 2022

 आंगन में लगी बेला की

खुशबू से महके हवाएं


जहां के पर्दों से सूरज बेशक

छना हुआ और किश्तों में आए


पर हर शाम जिंदगी से भरी हो

मुरझाया सा ना बुझे कोई शाम


जहां की खिड़की से चांद की

चांदनी छन छन कर रिसे


तुम्हारा गोद और मेरा सिरहाना

दो जहानों की इतनी सी परिभाषा . 


---- सुनिल #शांडिल्य

Saturday, April 9, 2022

 सम्हालो आंचल जरा तुम

की बूंदें आज जरा मदहोश है


भींगा यौवन इठलाता बदन तेरा

की बहके बहके से कदम हैं 


भींगी बरसात फिज़ा खुशगवार

की पायल करे तेरी शोर है 


गिरती बूंदें आज बेहोश है

की चूमा इसने तेरे रुखसार को है


बहक जानें दो रात काली घटाटोप है

की मदहोश आज हम हैं


---- सुनिल #शांडिल्य

Friday, April 8, 2022

 शरमाई तेरी नजरें जज्बात छलक गये

लफ्ज बेलफ्ज हुए जुबां बेजुबां हो गये


आग था मैं नजरे तुझसे मिलने से पहले

देखो आज़ हम अब धुंआ-धुआं हो गये


फ़ासले हमारे दरम्यान वक्त ने यूं बढ़ाया

हम धरती हुए,और तुम आसमां हो गये


उम्र नही थी इश्क करने की अभी हमारी

बस नजरें मिली ,और हम जवां हो गये। 


---- सुनिल #शांडिल्य

Thursday, April 7, 2022

 गोरा बदन,तेरा चेहरा हिजाबी

निगाह शराबी,रुखसार गुलाबी


बना कर झुलफें,करती इशारे

दिखाए कितने ख़्वाब ख़याली


मुमकिन कहाँ की हो नज़्म बयाँ

ग़ज़ल सी तू,या मुकम्मल शायरी


मौसम बेवफ़ा,और क़ातिल अदा

क्यों बहाती है मेरा ख़ून शहाबी


लिख दिया तुझे इन अ'सआर में

हुआ शेर फिर"अल्फ़ाज़"इंतिख़ाबी 


---- सुनिल #शांडिल्य

Tuesday, April 5, 2022

 मैं आग हूं न खेलो तुम यूं मुझसे ..

पास आते ही तुम जल जाओगी ..


जहर सी है देखो मुस्कुराहट मेरी ..

पीते ही तुम मुझे पिघल जाओगी ..


कैद कर लूं गर , तुम्हें रौशनी में मैं ..

फिर भी शाम में तुम ढल जाओगी ..


गर आँखों में बसा लूं ज़ाम की तरह ..

तो आँसू बनकर , तुम बह जाओगी ..


---- सुनिल #शांडिल्य

Sunday, April 3, 2022

 मुझको तेरा अक्स दिखे

बादलों के झुरमुट में


परिजात के पुष्प हो बिखरे

कोमलांगी पग जहां तेरे पड़े


तेरे आने से मेरी प्रेयसी

लगे धरा पे नवांकुर फूटे


मनभावन प्रेम से ओतप्रोत

मधुर चांद के आगोश में


मन मेरा हो कामातुर

जो तोसे मोरा नैन भिड़े


मधुरमिलन की हो व्युहरचना

जो अंग से अंग लड़े। 


---- सुनिल #शांडिल्य

Saturday, April 2, 2022

 मैं बहता हूं दरिया सा

तू इश्क की नदी सी


मैं कल कल करता शोर सही

तू बहती प्रेम सरिता सी


मैं बरसता बादल सा

तू नाचती मोरनी सी


मैं राग छेड़ता सावन सा

तू मस्तमगन कुन्हु करती कोयल सी


आ छेड़ दे कोई तराना प्रेम का

गीत गजल नज्म जो भी हो वो


सरगम हो वो बस

तेरे मेरे ❤️प्रेम का


---- सुनिल #शांडिल्य

Friday, April 1, 2022

 चकित हिरनी सी चली 

बनकर बांवरी मेरी सजनी


हिय हिलोर बाँक चितवन

पिया मिलन को प्रफुल्लित तन


मन में ढेरों उठे तरंग

चंचल नैना सकुचाते पग


घूँघट ओट निहारे मुझको

लाज का गहना ओढ़े सजनी


जानकर हाल सजनी का

बढ़ाया हाथ थामी कलाई


सकुचाई मुस्काई आई आगोश मे

अनावृत हुए लाज के पर्दे


---- सुनिल #शांडिल्य