Monday, May 30, 2022

 कहीं फ़ीरोज़ी,कहीं-कहीं पीले

लाल,गुलाबी,काले,नीले


किस्म किस्म की तस्वीरों में

रंग भरे हैं सूखे-गीले


सबके चेहरे अलग-अलग हैं

मोह का घूँघट एक है


सब जायेंगे आगे-पीछे

हाथ पसारे,आँखें मींचे


स्वर्ग-नरक,सब झूठी बातें

ना कोई ऊपर,ना कोई नीचे


सबकी वही एक डगरिया

मौत की करवट एक है!


---- सुनिल #शांडिल्य

Sunday, May 29, 2022

 टूटा हुआ इक साज हूं मैं

खुद से ही नाराज हूं मैं 🎵

...

आंखें बंद करता हूं मैं

तुझको पलको पे पाता हूं मैं


कितना याद आती हो

कैसे तुझको बतलाऊँ मैं


कहां गुम हो गई हो

कहां तुझको खोजूँ मैं


अपने गम भुलाने को

लिखता हूं प्रेम के गीत मैं


आ भी जाओ अब की

तेरे बिना हूं कितना तन्हा मैं ।।


---- सुनिल #शांडिल्य

Saturday, May 28, 2022

 मेरे पास से जो तुम गुजरती

कलम मेरी है मचलने लगती


लचक कर  जो तुम  चलती

स्याही में कलम डूबने लगती


उंगलियां बदन के पोर पोर पे

आहिस्ता  आहिस्ता सरकती


कलम मेरी राफ्ता राफ्ता सरकती

मिलन की कविताएं उकेरती जाती


पन्नों पे मेरी कविताएं नृत्य करती

प्रेम से होकर सराबोर गीत रचती


---- सुनिल #शांडिल्य

Friday, May 27, 2022

 क्यूं मेरे नजदीक इतनी आ रही हो

क्यूं लबों को लबों से टकरा रही हो


महक रही है उफ्फ तेरी गरम सांसें

मेरी  रूह  को  क्यूं  महका रही हो


होंठो से मेरे होंठों पे गुनगुना रही हो

धडकनों की रफ्तार को बढ़ा रही हो


जाल जुल्फों  का  बिखेर  रही हो

गिरफ्त ए इश्क में मुझे ले रही हो


---- सुनिल #शांडिल्य

Wednesday, May 25, 2022

 वो बरसात

वो मुलाकात

छत से टपकती बूंदें

उन बूंदों के पीछे

खिड़की की चौखट से

झांकती दो जोड़ी आंखे..


जो निहारती रहती यदा कदा मुझे

कभी नजरें चुराती

कभी पलकें झुकाती

जो नजरें मिलती

हया से ..

गाल हो जाते गुलाबी

उफ्फ वो बरसात शराबी..


होता मैं मदहोश,

उन नजरों का जाम चख कर..


---- सुनिल #शांडिल्य

Monday, May 23, 2022

 आंखों की भाषा क्या कहती है

आंखों में झांक समझ आया है


देखके तुमको मेरी से धड़कन

लय मे गीत गाने लगती है


वो मनमीत मुझे तुम लगती हो

बड़े भाग्य से जो मिलता है


मुस्काते अधरों पर अमृत की

बूँदों को देख समझ आया है


चल चले मिलन की ओर हमतुम

की आज मिलन की रुत आई है ।


---- सुनिल #शांडिल्य

Saturday, May 21, 2022

 सिसकती रात सी

मुझमें काला दाग क्यूं है


दिखता सर्द हूँ पर

दिल में आग ही आग क्यूं है


मैं रात से बोला

ओ काली रात तू है निराली


तू हसीन तू मनचली

तेरे दिल में खलबली क्यूं है


छोड़ दे सारे गिले शिकवे

मत तोड़ इश्क के सिलसिले


लगी मुझे किसकी बददुआ

अब वो मेरे साथ नही क्यूं है


---- सुनिल #शांडिल्य

Thursday, May 19, 2022

 कुछ अच्छा है

कुछ सच्चा है

कुछ प्यारा भी है

थोड़ा अल्हड़ भी है


पर जो भी है बड़ा

कमबख्त है ये इश्क


सिसकता है 

दर्द देता है

कभी खुशी भी देता है


पर जो भी है

अजीब है ..

ये अहसास ..

क्या नाम दूं इस अहसास को ?


कुछ समझ न आता 

आखिर ये चाहता क्या है ..


कमबख्त इश्क ..


---- सुनिल #शांडिल्य

Wednesday, May 18, 2022

 आज तुझपे मैं इक गजल लिखता हूं

तेरे साथ बिता हुआ मैं वक्त लिखता हूं

 

हमारे इश्क का फसाना लिखता हूं

तेरा मुझको गले लगाना लिखता हूं 


खुद को तेरा आशिक मैं लिखता हूं

तेरा बनाया झूठा बहाना लिखता हूं


तेरा मुझको छोड़ जाना लिखता हूं

अंत में मैं खुद को बेवफा लिखता हूं !


---- सुनिल #शांडिल्य

Tuesday, May 17, 2022

 तेरी इक छुअन की

तमन्ना कबसे पाल रखी


पास आओ की

जज्बात मेरी मचली है


अब मुझको दूर से

यूं न तड़पाओ तुम


रात है शमां है

बहके बहके अरमान हैं


चली पुरवाई 

हुआ बदन सर्द


सीने से लगकर

सांसो से सुलगा दो तुम


शर्म लाज की घुंघट

का परदा हटा अब


की आखिरी सांस तक

तू मुझे जरूरी है !


---- सुनिल #शांडिल्य

Monday, May 16, 2022

 करूं मैं तुझसे इश्क बेइंतेहा

करूं मैं इबादत तेरी


तेरी खुशबू बसी जहन मे मेरी

मेरी धड़कन में रवानगी तेरी


आई मिलन की अद्भुत बेला

बांहों में हो तुम और शमा अलबेला


लबों की लबों से हो रही है गुस्ताखियां

उंगलियो के पोर बदन पे थिरक रहे


आगोश मे बिखर रहे

हौले हौले से सुलग रहे


---- सुनिल #शांडिल्य

Sunday, May 15, 2022

 तेरे सुर्ख गुलाबी

होठों की अब

परिभाषा क्या

कहती है


मनोनीत मन-मानस

की मेरी अब आशा

क्या कहती है


तुम अधजल गगरी

छलको ना यूं

तुम हो बसन्त

की शाख प्रिये


हो शब्द रहित

तुम चिर अनन्त

तुम हो यौवन की

मधुमास प्रिये

देख तुम्हारी

कंचन-काया


तुमको अदभुत

मेरी जिज्ञासा

ये कहती है!


---- सुनिल #शांडिल्य

Tuesday, May 10, 2022

 जो तेरी पायल की मैं

खनकती रून झुन सुन लूं


कसम से मैं संगीत को

सुनना ही छोड़ दूं


जो तेरा चांद सा चेहरा 

मेरे  हाथों में आ  जाए


कसम से मैं आसमां के

चांद को देखना ही छोड़ दूं


मेरी मोहब्बत की सारी

आरजू पूरी हो जाए


जो तेरे सीने पे मैं सर 

रखकर धड़कन सुन लूं


---- सुनिल #शांडिल्य

Wednesday, May 4, 2022

 मैं लिखूं  जब भी कोई नज़्म

तुम उन  नज्मों में बस जाना


मैं लिखूं जब भी कोई कविता

तुम उनमें अहसास बन जाना


नजरों  में  इतना  नेह रखना

पलकों  पे  महसूस  तुम होना


राह  मेरी  तेरी ओर  ही जाए

ऐसी डोर  में  तुम बांध  लेना


रहना भले ही तुम दूर मुझसे

जब सोचूं तो पास चली आना !


---- सुनिल #शांडिल्य

Tuesday, May 3, 2022

 कुछ शब्द मैं मेरी

यादों से चुराता हूं


उस हसीं मन्ज़र को

कागज पर उतारता हूं


तेरी आँखो को पढता हूं

प्रेम की परिभाषा लिखता हूं


अल्फाज़ो मे बयां कर दूं

मैं तुझे कितना चाहता हूँ


पास जब आती हो तुम

शब्द मेरे नि:शब्द हो जाते हैं


चाहता हूं अपनी सारी

कविताएं तेरे नाम कर दूँ


---- सुनिल #शांडिल्य

Sunday, May 1, 2022

 ओढ़ जो लेती हो

तुम मुझे ..


बिखर जाता हूं मैं

तेरी आगोश में ..


सांसों की हरारत 

पिघलाती मुझे


उंगलियों की शरारत 

से सिहर उठता हूं


कानों में मिश्री घोलती

तेरी फुसफुसाहट ..


जाने किस लोक में

सैर को निकल जाता हूं


तुम बन जाती हो चांद

और मैं तुम्हें निहारता रहता हूं !


---- सुनिल #शांडिल्य