स्वयं से थे जो तुम्है अति प्रिय
जिन्हे पङकर गीत गुन-गुनाया कोई
रच दिया तुमने उन में संगीत प्रिय
वो तुम्हारे हृदय के शब्द थे या स्वयं तुम
उन में से कल-कल मधुर ध्वनि आ रही प्रिय
मुझे लगा मेरा ही मीत है
कोई बिराम नही चल रहे थे शब्द लेकर प्रिय
थोड़ा तो ठहरो में पङू वो शब्द प्रिय
छोङ दो यह पवन गति तुम शुभ रचित हो
मेरे जिवन के पुलक प्राण प्रिय
देखो तुम्हारे हर पग पर जिवन रेखा है प्रिय
तुमने कितना प्रेम स्नेह पिरोया है
अपने मन मन्दिरके उभरते गीत गितिका में
उन पर मेरी कलपनाऔ का रंग भरा है
इन हाथो की कोमल अंगुलियो ने प्रिय
~~~~ सुनिल #शांडिल्य