Saturday, April 27, 2024

पलक झपकते हुआ करिश्मा ख़ुशबू जागी आंखों में 
साथ हमारे महक उठी है आज बहुत पुरवाई भी 

ये रिश्ता है नाज़ुक रिश्ता इसके हैं आदाब अलग 
ख़्वाब उसी के देख रहा हूँ जिसने नींद उड़ाई भी 

छलनी दिल को जैसे तैसे हमने आख़िर रफ़ू किया 
मगर अभी तक कुछ ज़ख़्मों की बाक़ी है तुरपाई भी 

प्यार-मुहब्बत की राहों पर चलकर ये महसूस हुआ 
परछाईं बनकर चलती है साथ-साथ रुसवाई भी 

उसकी यादों की ख़ुशबू से दिल कुछ यूं आबाद रहा 
मैं भी ख़ुश हूं मेरे घर में और मेरी तनहाई भी

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Monday, April 22, 2024

जाने क्यूँ पागल यहाँ बदनाम है 
इश्क का शायद यही इक’आम है ।
          
सैकड़ों दर्द इक ख़ुशी को भूल कर 
रोते रहना बस यही अन्जाम है ।

खो गयी है आदमी से इन्सानियत
बेवजह तो लगता नहीं इल्जाम है ।

एक घर में एक हम रहते नही
और कहते हैं के देश में एकता है ।

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Thursday, April 18, 2024

मिलो जब भी,मुस्कुरा दिया करो
हम तुम्हारे हैं,ये जता दिया करो

ग़म से लड़ना ही तो जिंदगी है
हाथ पकड़ हमें, जिता दिया करो

आईना सा लगता है,चेहरा तेरा
सहर के आते ही,दिखा दिया करो

ख्वाब मेरे जग जाते हैं,नींद आते ही
आंचल में अपने,सुला दिया करो

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Tuesday, April 16, 2024

आकाश से ज़्यादा खाली केवल मन हो सकता है
सागर से ज़्यादा भरा हुआ भी केवल मन ही हो सकता है।
प्रकाश से तेज़ केवल मन ही चल सकता है
और पर्वतों से ज़्यादा स्थिर भी केवल मन हो सकता है।
आज मन की गति को पीछे छोड़ चांद पर हम आ गए 
चलो चांद पर मिल एक आसियां बनाते हैं

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Sunday, April 14, 2024

इक चेहरा मुस्काता सा ।
खिली-खिली सी आभा मुख पर,
बहारोँ का रूप चुराता सा ।

चंचल चंचल नैन कँटीले,
गहरे-गहरे नीले-नीले,
समन्दर सा लहराता सा ।

होटोँ पे खिला गुलाब ज्योँ,
छोड़ गया हो अपना आँचल,
गुलाबी रंग बिखराता सा ।

जुल्फेँ हैं ज्योँ श्याम घटायेँ,
उड़-उड़ कर ढँक लेते मुख को,
बदली मेँ चाँद छुपाता सा ।

कोयल के से बोल सुरीले,
बाँध लेती है ऐसे मन को,
झरनोँ के गीत सुनाता सा ।

मन सुन्दर यूँ जैसे पानी,
बादल के चेहरे पर जैसे,
चाँद के भाव जगाता सा ।

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Wednesday, April 10, 2024

प्रेम के रंग में तुम गुलाल 
और हम अबीर हो गये,

कहाँ कुछ पता ही चला 
कब राँझा-हीर हो गये! 

प्रेम का ढाई अक्षर ही 
शाश्वत सत्य है, शांडिल्य 

यही पढ़-पढ़कर तो आज 
हम भी कबीर हो गये!! 

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Tuesday, April 2, 2024

प्रेम अमृत है पिलाने कौन आयेगा।
रास मोहन बिन रचाने कौन आयेगा।

प्रेम की ये बात उद्धव तू क्या जानो,
बात दिल की ये बताने कौन आयेगा

प्रेम में ही डूब कोई ज्ञान पाता है,
बुद्ध बिन यह ज्ञान पाने कौन आयेगा।

प्रेम राधा कृष्ण का संसार क्या जाने,
दीप भीतर का जलाने कौन आयेगा।

ढाई अक्षर प्रेम का पढ़ प्रेम को जानो,
छोड़ मोहन यह पढ़ाने कौन आयेगा।

फूल खिलकर टूटकर जग को हँसाता है,
टूट खुद जग को हँसाने कौन आयेगा।

प्रेम अमृत खान है बस खोदकर देखो,
मत कहे ऐसा कराने कौन आयेगा।

~~~~ सुनिल #शांडिल्य