Wednesday, April 29, 2015

मंज़िलों से अपनी दर ना जाना,
रास्ते की परेशानियों से टूट ना जाना,
जब भी ज़रूरत हो ज़िंदगी में किसी अपने की
हम आपके अपने हैं ये भूल ना जाना…

चुपके से बज्म-ए-ख्वाब,दिल में सज़ा गये वो
रंग किसी नशे के,मेरी हस्ती पे जमा गये वो
धडकनों से सजाके रखी है मैंने,हर राह उनकी
संग मेरी ख्वाहिशो के,मेरे घर तक आ गये वो

वो ख्वाब क्या हुवे,जो हकीकत की राह चले थे
वो चराग क्यों बुझे,जो अपनी दुनिया में जले थे
क्या आ के लौट ही जाना था,चमन से बहारो को
क्या दूर ही जाने को हम से,आखिर वो मिले थे

Tuesday, April 28, 2015

हकीकत मैं अपनी जो तुम्हे सुना देता
इक बार अपने दर्द से तुम्हे रुला देता
मोती उन अश्को के सीने से लगा के
अपनी ख्वाहिशो को ता-उम्र भुला देता

होश के पैमाने टूट गये,तेरे हुस्न के जाम से
अब कही भी गिरे हम,गिरेंगे तेरे ही नाम से
आना है जो होश कही,तो आये तेरी जुल्फ तले
के बीत जाये ये जिंदगी बाकी,यु ही आराम से

आज भी खडे हैं उस चाँद के दीदार में !
जो खोई हैं हजारों सितारों के प्यार में !!
कब नज़र आएगा उसे जमीन का ये पत्थर !
जिसने खाई हैं ठोकर उसके प्यार में....!!

Monday, April 27, 2015

कुछ तुम कहो खुद की,कुछ हम अपनी सुनाये
बिन तेरे किस तरह बीती,ये भी तुमको बताये
गम-ओ-खुशिया मेरी बाट सको तो बाट लो तुम
चलो एक बार फिर से हम वोही दोस्ती निभाये

मोहब्बत नहीं तो इंसानियत की खातिर आ जाओ
अपने इस दीवाने की राहत की खातिर आ जाओ
किस दर पे ना सजदे किये है मैंने तेरी आरजू में
दिल ने मांगी हुवी मन्नत की खातिर आ जाओ

रातभर छुपाते है वो मुझको,जुल्फ ओ दामन में
मैं भी खुद को भूल रहा,महकी हुवी चिलमन में
ऐ वक़्त ठहर जा या बढ़ा कदम आहिस्ता अपने
के पहली बार आयी है ये शब-ए-शाद मेरे जीवन में

यु झूठी खुशियों के सहारे मुस्कुराये कब तक
यु अश्को के सैलाब पलकों से टकराए कब तक
रख दू हाथ जो सीने पे तो दिल ये पूछता है
यु काटों पे ये जिंदगी आखिर बिछाए कब तक

पल भर देख के उनको,नजरे झुका लेते है हम
अक्स उन जलवो का,दिल में छुपा लेते है हम
बेताब धडकनों से फिर,कुछ रंग-ए-आरजू लेके
अपनी तस्वीर-ए-रूह में उनको,सज़ा लेते है हम

Saturday, April 25, 2015

सरकने दो आँचल थोडा,धडकनों का दीदार हो जाने दो
प्यासी निगाहों को सम्हालना,और भी दुश्वार हो जाने दो
ताबीर मेरे ख्वाब ए हयात की,जो आज मुझसे है रूबरू
इस क़ैद ए बेखुदी में मुझको तुम,गिरफ्तार हो जाने दो

दिल ये कुछ ऐसा है अपना,के टूटने से डरता है
साथ अपनों का किसी मोड़ पे छूटने से डरता है
दिल के एक कोने में,कुछ खुशिया है भरी हुवी
छोटा सा अपना ये जहाँ अब लूटने से डरता है

ख़ामोशी में पड़ी है अपनी ये जिंदगी हारी हुई 
अपनी ही नजर से आप ही हमने यु उतारी हुई 
ना अज्म-ए-सफ़र है ना वजूद किसी मंजिल का
शौक-ए-तबाही में अब तक जो है गुजारी हुई 

इन सुखी निगाहों से क्या सबूत मांगते हो
ये अश्क तो आखिर अपने दिल से बह रहे है
मेरे मुस्कुराने पे ना जाओ तुम दुनिया वालो
परदे में तबस्सुम के हम ये दर्द सह रहे है

Friday, April 24, 2015

शम्मा-ए-इश्क ने आखिर,दिल को ही जला डाला
राख जो मिली खाक में,वजूद अपना मिटा डाला
क्या किमत रही बाकी,दुनिया में दिल लगाने की
बेच के मेरी वफाओ को,आशियाँ उसने बना डाला

छोड़ के जाना चाहते हो तुम,तो मैं रोकूंगा नहीं
तुम बिन किसी और को मगर,कभी चाहूँगा नहीं
पल पल तेरी याद में,जलाता रहूँगा मैं खुद को
और तेरे लौटने की आस कभी,मैं बुझाऊंगा नहीं

हर गुनाह का इल्जाम,आखिर मुझपे आये क्यों 
ना-खतावार हो के भी हम,ऐसी सजा पाए क्यों 
उनकी बेवफाई का ताज्जुब,होता नहीं किसे भी
और मेरी वफ़ा को जमाना,सवालो में लाये क्यों

तेरा अहसास ही तो है सनम,ये जाँ मेरे जिस्म की
सुकू पाती है ये रूह मेरी,खुशबु लेकर तेरे हुस्न की
होती है तेरे एक तबस्सुम से,कायनात ये शब-नमी 
रहती है मेरी बेचैनीयो को अक्सर,आरजू तेरे वस्ल की

Wednesday, April 22, 2015

बात क्या बताये हम इस दिल-ए-बेजार की
बिताये ना बितती है अब घडी इन्तेजार की

हसरते सीने में और तस्वीर वो निगाहों में
हाय!रह गयी है अब ये बाते सब बेकार की

गर एक खता है इश्क तो खतावार है हम
फिर कोई फरमाए सजा इस गुनाहगार की

करके दफन अरमा,जाये तो कहाँ जाये हम 
बुझाये ना बुझती है शम्मा ये मजार की 

जिंदगी बीती गम ना बाटा तेरा किसीने 
अब भी आस है तुम्हे किसी गमगुसार की

तेरी बाहों के दायरे,अब मेरी जिंदगी के है
इन से आगे अब मेरी,कोई दुनिया नहीं
तेरी जुल्फों के साये,मुहाफ़िज है ख्वाबो के 
इन के सिवा अब मेरा,कोई आशियाँ नहीं

शरमा के इस तरह मेरी बाहों में आने की अदा ख़ूब है 
बेताब धडकनों को जुल्फों तले मिलाने की अदा ख़ूब है 
थर-थराते लबो से कुछ कहने की वो ना-काम कोशीशे
और गर्म सासों से हाल-ए-दिल सुनाने की अदा ख़ूब है

Monday, April 20, 2015

गरज परस्ती एक ही सच है,फकत इस जहाँ का
साथ निभाता नहीं कोई,शिकस्ता दिल-ए-तनहा का
क्या खरीदने चला है दीवाने,तू बाजार-ए-मसर्रत में
दामन-ए-मुफलिस को जला देना,दस्तूर है यहाँ का

हम भी हस लेते,गर ना रूठा अपना मुक़द्दर होता
दो पल गुजारना चैन के,हम को भी मयस्सर होता
शम्स-ए-मसर्रत ने आजकल,मुह फेरा है हम से वर्ना
छोटासा आशियाँ ये अपना भी,कुछ तो मुनव्वर होता

क्यों तलाश है दिल को,खोई हुवी खुशियों की
मंजर जो है बिता हुवा,लौट के फिर आता नहीं
दर्द बन जाता है जब,हमसफ़र इस जिंदगी का
लाख बुला लो किसीको,कोई साथ निभाता नहीं

जाने क्यों लगता है मुझे,के तू है वही
तलाश जिसकी मुझको,सदियों से रही
वर्ना और भी है यहाँ दिल लुभाने वाले
जो बात तुझमे है,वो किसी और में नही

याद उनके तबस्सुम आये,तो अश्क बहने लगे
तड़प के इस दिल के जर्रे कुछ और दर्द सहने लगे
भुलाने से भूल जाये ये फलसफा-ऐ-इश्क कहाँ?
नही सिवा उनके ये जिंदगी,दिल के तार कहने लगे

Friday, April 17, 2015

तेरे गम के पियाले होठो से लगाऊ कैसे?
शम्मा अपने इश्क की ख़ुद बुझाऊ कैसे?
कितनी हसरत से सजाये थे ख्वाब मैंने 
बसाके तुम्हे अपने दिल में भुलाऊ कैसे?

होश में आ गए हम होश गवाने के बाद
एक कतरा भी पी न सके जाम उठाने के बाद
कुछ भी याद नही मुझे बस एक तेरे सिवा
तुझको पा लिया है मैंने खुदको भुलाने के बाद

फ़िर वोही ये दास्ताँ,फ़िर टूट जाना दिल का
दर्या के पास हो के प्यासा रह जाना साहिल का
कब तक चलेंगे यु ही सीतम अपनी किस्मत के
करीब आते आते हर पल दूर जाना मंजिल का

हम जो चलते रहे,तो ये रात साथ चलती रही
हर बढ़ते कदम पर,सुबह की आस ढलती रही
दुनिया ने तो देख लिए सूरज के चढ़ते नज़ारे
खुशिया मेरी लेकिन अपनी आँख मलती रही

Thursday, April 16, 2015

न बुझेगी वो शम्मा,जो तेरे इन्तेजार में जली है
है उतनी ही उम्र इसकी,जितनी मेरी जिंदगी है
हर सास में दबी है अपने,चिंगारियां हसरतो की
इस आग से ही तो फैली,अपनी राह में रौशनी है

तू नही तो तेरे खयालो से बज्म सज़ा लेता हूँ
दिल के खाली पैमाने होठो से लगा लेता हूँ
अब तो तेरे ना आने पे यकीन हो चला है
तेरे गम में बहे अश्को से प्यास बुझा लेता हूँ

जजबातों का है इस दिल पे जोर,अब तो चली आ
तड़प का आलम है चारो और,अब तो चली आ
सहा नही जाता धडकनों का शोर,अब तो चली आ
टूटने को है ये सासों की डोर,अब तो चली आ

ना मौत मिली हमें,ना हम जिंदगी के रहे
ना आसमाँ पे पोहचे,ना हम जमी के रहे
ना उनको पाया और ना ही उन्हें भूल सके
मोहब्बत में आख़िर,ना हम कही के रहे

तेरे ख्वाब में रात गुजरी,सुबह आयी तो हसरत हु
दिल के बदले में दिल गया,क्या खूब ये तिजारत हु
एक दर्द मीठा सा कैद हो चला है दिल के आगोश में
करवट बदली हालात ने,जो मुझे उनसे मोहब्बत हु

Monday, April 13, 2015

नाम-ऐ-मोहब्बत पे दिल आज भी फरमा-ऐ-सजदा है
दिल-ऐ-शिकस्ता में आज भी और टूटने का जज्बा है
कौन कहता है अंधेरे होते है चिराग के टूट जाने से
बुझके भी शमा-ऐ-इश्क मेरी,आज भी नूर अफ्शां है

जलवों की धुप है लेकिन,वो उल्फत के साये कहा है
थाम सके जो जिंदगी मेरी,वो नाजुक सी बाहे कहा है
अपनी नजरो ने तो देखे है,दुनिया के रंगीन नज़ारे
अक्स अपना देख सकू जिसमे,वो निगाहे कहा है

खाके कसम उन्हें भूलने की,चल दिये फ़िर जिंदगी की और
हर मोड़ पे आती याद उनकी,ले चली है फ़िर उन्ही की और
एक वोही नाम वोही आरजू वोही खलिश,और कुछ भी नही
निकल पड़ा है दिल-ऐ-नादाँ मेरा,फ़िर उसी नादानी की और

Sunday, April 12, 2015

शीशे ने मुझको अक्स मेरे दिखाए झूठे
काश तेरी निगाह में देख लेता ख़ुद को
तुम भी तो लेकिन आखे चुराए बैठे हो
पाउ कैसे अब मेरे खोये हुवे वजूद को

उनके ख़याल में खोती थी सुबह शाम अपनी
कोई भी याद न बची लेकिन आज भुलाने को
बेवफाई के तुफाँ ने उडा दिया मयखाना मेरा
एक बूंद भी अब मिलती नही पिने पिलाने को

गमो का साथ भी हमने निभाके देख लिया
अपनी हसरतो को कुछ बुझाके देख लिया
सुकू कही भी हासिल होता नही हमे यहाँ पर
जिंदगी को हर मुमकिन आजमाके देख लिया

ऐ शम्मा! तुझसे लिपट के मरे तो भी क्या
आख़िर तेरे कदमो में ही मुझे गिर जाना है
जीते जी ना सही,तो मरने के बाद ही सही
सामने तेरे सर झुकाने का ये एक बहाना है

Saturday, April 11, 2015

गुलिस्ता है ये जहाँ,मगर कोई गुल मेरे नाम का नही
मुझसे है दुनिया को वास्ता,पर कोई मेरे काम का नही

लम्हा लम्हा मिलके बनती है जंजीर-ऐ-वक्त यहाँ
एक लम्हा भी अपनी जिंदगी में आराम का नही

चढ़ते आफताब को सलाम करना जाने ये जमाना
मगर मैं जानू इतना के कोई ढलती शाम का नही

नजर आया दूर से ही,कोई चराग-ऐ-नूर अफ़्शा वहाँ
पोहचे नजदीक तो जाना ये नूर मेरे मकाम का नही

मैखाने होकर आए फ़िर भी गमगीन ही रहे
क्या जाने अब वो पहलेसा असर किसी जाम का नही

फूल तुझसा न होगा कोई,जन्नत के गुलजारो में भी
उधर झलकती होगी परेशानी,खुदा के इशारो में भी

सितारे शक करते है,ये चाँद फलक पे कौन सा है
कोई और चाँद नजर आता है,जमी के नजारों में भी

कुछ पल रुक के सीखी है,शोखी तेरी अंगडाईयो से
जाके तब आई है रवानी,नदी की उदास धारों में भी

पयाम पंहुचा रहा है भवरा,इस कली से उस कली
बस चर्चे है आजकल,तेरे नाम के बहारो में भी

क्यों न समझे खुशनसीब,आख़िर ख़ुद को
नाम अपना आया है अब तो,इश्क के मारो में भी

कम होता मुझे उनका इन्तेजार नजर नही आता
इस जिंदगी में कही मुझको करार नजर नही आता

खूब वाकिफ है ये जमाना मेरी तड़पती जिंदगानी से
उन्हें ही सिर्फ़ मेरा दिल-ऐ-बेकरार नजर नही आता

मर्ज कैसा ये लगा दिया खुदा इस खामोश जिंदगी को
मुझे अब मुझसे बढ़के कोई बीमार नजर नही आता

क्या मालूम कबूल हो पायेगी दुवा कभी इस दिल की
खुदा तेरी आँखों में रहम का आसार नजर नही आता

गम-ऐ-दिल को बनाके हमसफ़र कही चल दे ऐ
राह-ऐ-जिंदगी में और कोई दिलदार नजर नही आता

Thursday, April 9, 2015

वो तबस्सुम वो हया,इन अदाओ ने मारा मुझको
छुपके से उनको देखा,इन गुनाहों ने मारा मुझको

लहराते आचल ने लाये सामने,कई राज उस हुस्न के
करके शरारत जो बह गई,उन हवाओ ने मारा मुझको

देख के ख़ुद को आईने में,वो सजते रहे सवरते रहे
दिल थामके जो भरी शीशे ने,उन आहो ने मारा मुझको

जुल्फ जो खुली तो रुक गई,गर्दिश जमी आसमानों की
खाके रश्क जो चली गई,उन घटाओ ने मारा मुझको

शरमाके के करते है वो परदा,और देखते है चुपके से भी
सम्हाल दिल ऐ नादान इन शोख वफाओ ने मारा मुझको



ये शक ये शुबा ये बदगुमानी किस लिए
तेरे चेहरे पे ऐ यार ये परेशानी किस लिए

कर दिये है जो तुने दर्द सारे मेरे नाम पर
फ़िर पसीने से तर ये पेशानी किस लिए

और भी कुछ हो सकती है बाते दिल्लगी की
जुबा पे तेरे शिकवो की कहानी किस लिए

जाते है जो रूठ के,लौट आना होता ही है उनको
है इल्म इस बात का,तो ये नादानी किस लिए

तुम को मनाके थक चुके है अब इतना
तेरे बगैर समझेंगे के ये जिंदगानी किस लिए

कुछ और न कही जाये,कुछ और न सुनी जाये
जो बात है जहा,बस अब वही तक रखी जाये
न हो अदावत किसी से,न दोस्ती की उम्मीद
कहा जाती है फ़िर जिंदगी,ये बस देखी जाये

Wednesday, April 8, 2015

न हटाइयें चिल्मन,दिल पे इख्तियार नही है
अब और कोई आपसा,यहाँ पे सरकार नही है

कबसे जलाये बैठे हो शम्मा,तुम सनमखाने की
कहोगे कैसे तुम्हे भी किसीका,इंतजार नही है

लिपटी है जुल्फ से कलिया,गर्म रुखसारो की
उन्हें भी शायद मुझपे,इतना ऐतबार नही है

शोर क्यों उठ रहा है यहाँ,तुम्हारी धडकनों का
अब न कहना के दिल तुम्हारा बेकरार नही है

हर अदा को तुम्हारी देख चुके है यहाँ
परदा तो आख़िर परदा है,कोई दीवार नही है