Friday, May 3, 2019

मंजर भी बेनूर थे और फिजायें भी बेरंग थी..
बस तुम याद आए और मौसम सुहाना हो गया।
ज़मीं पर बैठ आसमां को क्या देखता है..
अपने परों को खोल..ज़माना उड़ान देखता है..!!
निकल पड़ा हु आज फिर से उसॆ अपना बनाने। …
नहीं पता है रासते का पर मंजिल वो ही है। …


माना कि, ना देखा है, ना छुआ है ना पाया है तुझको, 
लेकिन तेरे इश्क में इबादत सा सुकूं आया है मुझको।
मैं ने दिल से कहा ,उसे थोड़ा कम याद किया कर ;
दिल ने कहा वो सांस है तेरी ,तु सांस ही मत लिया कर
आखों को इंतजार के लम्हात सौप कर
नींदे भी कोई ले गया अपने सफर के साथ
सुना है जन्नत में हुर्रे होती है किसने देखा है..??
में कैसे यकीन कर लूं मेने तो तुमको को जमी पे देखा है....।।
याद आयेगी हर रोज, मगर तुझे आवाज न दूंगा .
लिखुंगा तेरे ही लिये हर लब्ज़ मगर तेरा नाम ना लिखुंगा
लिखके तुमको खुद को रोज सुनाते हैं,
तुम्हे याद नहीं करते,पर इश्क जरुर निभाते हैं !!
क्यूँ रोक दूं.यह नये मौसम की बारिश को
आज याद आ रहे हैं मुझे भूल जाने वालें
करार मिलता ही नही , अब तेरे बगैर...! 
हम सज संवर कर भी उदास रहते है...!!
दिल भी तेरा हम भी तेरे एक आस ज़रूर लगती है, 
अब बिन तेरे मेरे दिल की हर साँस अधूरी सी लगती हैं।
चाँद उतार के दे तो दूँ कटोरे में उसको ,
डरता हूँ कहीं वो सूरज भी ना माँग बैठे।
मीठे बोल बोलिये क्योंकि अल्फाजों में जान होती है,
ये समुंदर के वह मोती हैं जिनसे इंसानों की पहचान होती है।।
तेरी आंखो मे ख्वाबो की रही रौशनी 
मेरी पलको पर तेरी यादों का नीर है
तेरे लिए प्यार मुहब्बत खेल ही सही 
मेरे लिए इबादत ही ईश्क का ज़मीर है
अंदाज़-ए- सितम उनका निहायत ही ज़ुल्म ढा गया
आंखो मे नीर दिल मे पीर बन कर उफ्फ क्या दर्द दे गया.....
तेरी_ज़रूरत मेरी जिन्दगी का आधार ,
तुमसे मिलता रहता मुझे शब्दों का प्यार !
अब तुमसे और ज्यादा क्या कहूँ मैं ,
बिना तुम्हारे जिन्दगी नीरस, निराधार ..!!
तुमसे शिकायत भी है और प्यार भी है
तेरे आने की उम्मीद भी नहीं और इंतजार भी है
बिकती है ना ख़ुशी कहीं, ना कहीं गम बिकता है. 
लोग गलतफहमी में हैं, कि शायद कहीं मरहम बिकता है..
इस से बढकर तुमको और कितना करीब लाँऊ मैं …
कि तुमको दिल में रखकर भी मेरा दिल नहीं लगता ……!!
दो हिस्सो में बँट गये मेरे तमाम अरमान
कुछ तुझे पाने निकले कुछ मुझे समझाने निकले!
बहुत साल रह लिए तुम बनके अपने, 
अब तुम बस, मेरे और मेरे बन के रहो..
ग़ज़ब की "दीवानगी" है तुम्हारी "मोहब्बत" में...!!
तुम "हमारे" नहीं फिर भी हम "तुम्हारे" हो गए...!
हँसते हुए फ़ूलों पे नज़र है मगर इनमें,
हम तेरे तबस्सुम की अदा ढूँढ़ रहे हैं...!!
शाम ढले अपनी जुल्फें न खोलाकरो
तुम आसमाँ का भी रंग बदल देती हो
पढ़ लिया करो हमारे अल्फाज़ो को दिल की गहराई से
हम शायरी नही दिल से दिल्लगी लिखते है।
हमें लिख कर किसी कागज पे महफूज कर लो
लगता है हम तुम्हारी याददाश्त से निकलते जा रहे हैं
वही हसरतें...वही रंजिशें...,ना ही दर्द-ए-दिल में कोई कमी हुई,
अजीब सी है तेरी मोहब्बत...ना मिल सकी...ना ख़त्म हुई..!!
बूँद बूँद करके तूँ, समा रही है यूँ मुझमे
जैसे अरसे बाद धरती को, बारिस नसीब हुई हो
ख्वाबों से बाहर आते ही, तमन्नाएं भी बिखर गई...
और ये बेबस जिंदगी तेरे दिए घावों से निखर गई..
बातें तो बहुत करते हो इश्क औ खुलूस की 
कभी अपने दिल में भी तो देखो हम हैं भी या नहीं!!
अल्फ़ाज़ तो बहुत हैं मुझे मेरी मुहब्बत को बयाँ करने को 
वो मेरी खामोशी नही समझता मेरे अल्फ़ाज़ क्या समझेगा...
रहने दो अब के तुम भी मुझे पढ़ न सकोगे,
बरसात मैं कागज की तरह भीग गया हूँ मैं...
सलामत है जब तक है पनाह में तेरी
बंद हैं नजरों में तब ही तो चल रही है साँसें हमारी
मैं ख्वाहिश बन जाऊँ और तू रूह की तलब
बस यूँ ही जी लेंगे दोनों मोहब्बत बनकर..!!
कितना वाकिफ थी वो मेरी कमजोरी से यारो,
वो रो देती थी, और मैं हार जाता था जिंदगी अपनी!!
अब तो शायद ही मुझसे मोहब्बत करें कोई!
मेरी आंखों में तुम साफ़ नज़र आते हो!!
जब भी वो उदास हो उसे मेरी कहानी सुना देना,
मेरे हालात पे हंसना उसकी पुरानी आदत जो है !