Monday, May 30, 2016

क्या उठाये फिरता है बार-ए-आशिक़ी सर पर,
और देखने में वो धान-पान कितना है.
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जफर इकबाल

शोरिश-ए-आशिक़ी कहाँ,और मेरी सादगी कहाँ,
हुस्न को तेरे क्या कहूँ,अपनी नज़र को क्या कहूँ.
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हसरत मोहनी

आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब,
दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होने तक.
-
मिर्ज़ा ग़ालिब

फूल से आशिक़ी का हुनर सीख ले,
तितलियाँ ख़ुद रुकेंगी सदायें न दे.
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बशीर बद्र

उनको गरूरे-हुस्न है मुझको सरूरे-इश्क,
वह भी नशे में चूर हैं, मैं भी नशे में चूर ।


ये मेरे शेर नहीं ये मेरी तलब है, तेरे प्यार की
तेरी शबनमी आँखें देख मेरी कलम चला करती है।


एक मुस्कान तू मुझे एक बार दे दे;
ख्वाब में ही सही, एक दीदार दे दे!
बस एक बार कर ले तू आने का वादा;
फिर उम्र भर का चाहे इंतज़ार दे दे!


Saturday, May 28, 2016

तेरे इन्तजार में हुई सुबह से शाम;
तेरी चाहत में हुआ ये दिल बे-लगाम;
तुझे पाने की आरजू मेरी जल्द हो पूरी;
कि होंठों पे आता है सिर्फ तेरा ही नाम!

तनहाइयों की शायरी कर लेंगे 
हम तुझ पर ऐतबार कर लेंगे 
तुम यह तो कहो हम तुम्हारे है सनम 
हम ज़िन्दगी भर तेरा इंतज़ार कर लेंगे.

वो करीब ही ना आऐ तो इंतज़ार क्या करते..
खुद बने निशाना तो शिकार क्या करते..
मर गऐ पर खुली रही आँखें..
इससे ज्यादा किसी का इंतज़ार क्या करते.

Thursday, May 26, 2016

तन्हाई किसी का इंतज़ार नहीं करती
किस्मत कभी बेवफाई नहीं करती
उनसे दूर होने का असर है वरना
परछाई कभी जिस्म पर वार नहीं करती

आंखों को इंतज़ार की आदत सी हो गई
यही ख्याल ऐ यार की आदत सी हो गई
अब कोई दूसरा मिले भी तो दिल चाहता नही,
क्यूँ की हमको तेरी दोस्ती की आदत सी हो गई

जानवर ही होते तो ग़म कैसा
हुए आदम गर तो करें फक्र कैसे !
ज़मीन बांटी, आसमाँ बांटा
ना कर ख़ुदा को अब दूर तुझसे !!

Tuesday, May 24, 2016

शिकन न डाल जबीं पर शराब देते हुए,
यह मुस्कराती हुई चीज मुस्करा के पिला।
सरूर चीज के मिकदार में नहीं मौकूफ,
शराब कम है साकी तो नजर मिला के पिला

ये मज़ा था दिल्लगी का जो बराबर आग लगती
न तुम्हे करार होता, न हमें करार होता
तेरे वादे पे सितमगर अभी और सब्र करता
अगर अपनी ज़िन्दगी का हमें ऐतबार होता

शज़र के हाथ में इक ज़र्द फूल बाकी है
अभी लिबास-ए-मुसाफिर में धूल बाकी है
हवा-ए-शहर-ए-सितम को अभी पता न चले
मेरे दुपट्टे में एक सुर्ख फूल बाकी है



Friday, May 20, 2016

संवारना है अगर तुमको गुलशने-हस्ती,
तो पहले कांटों में उलझाओ जिन्दगानी को।

लहरों पै खेजता हुआ लहरा के पी गया,
साकी की हर निगाह पै बल खा के पी गया।
मैंने तो छोड़ दी थी पर रोने लगी शराब,
मैं उसके आसुंओं पै तरस खा के पी गया

मय छलक जाए तो तंगदिल हैं पीने वाले,
जाम खाली हो तो साकी तेरी रूसवाई है।
देखिए कैसे पहुंचते हैं किनारे हम लोग,
नाव मंझधार में है, मल्लाह को नींद आई है।


Tuesday, May 17, 2016

नज़र में जख्म-ए-तबस्सुम छुपा छुपा के मिला
खफा तो था वो मगर मुझसे मुस्कुरा के मिला
वो हमसफ़र जो मेरे तंज़ पर हँसा था बहुत
सितम-ज़रीफ़ मुझे आईना दिखा के मिला

साकी कि हर निगाह पे बल खाके पी गया
लहरोँ से खेलता हुआ लहरा के पी गया
ऐ रहमत तमाम मेरी हर ख़ता मुआफ
मैँ इंतिहाए शौक मे घबरा के पी गया


जामे मीना क्योँ उछालेँ तेरी महफिल मे
साकी हम तेरी निगाहोँ से ही पी लेँगे
फूल, खुशबू सब ले जा सितमगर अब तू
जीने की अदा तो हम काँटोँ से ले लेँगे

Friday, May 13, 2016

अब फूल भी देने लगे हेँ मुझको जख्म
अब खिजाओँ को बुला लो चुपचाप!
जानता हूँ वक्त अच्छा भी आएगा कभी
मैँ काँटो भरी डगर पे चलता हूँ चुपचाप!

तुम्हेँ ही ख्यालोँ मे हम याद करते हैँ अब भी
हम गमोँ कि दुनिया मे जी लेँते हैँ ए दोस्त
फूल ही फूल खिलते रहेँ जिन्दगी मे तेरी 
हम तो काँटो से ही सहारा ले लेँते हैँ ए दोस्त


इस दिल का कोई कद्रदान नहीं मिला जमाने में,
यह शीशा टूट गया, सिर्फ देखने ओर दिखाने में
हमने बना लिया है नया फिर से आशियाना,
जाओ ये बात किसी तूफ़ान से कह दो

Tuesday, May 10, 2016

मिसल-ए-ख़याल आये थे आ कर चले गए
दुनिया हमारी गम की बसा कर चले गए
फूलों की आस दिल से लगाए हुए थे हम
कांटे वो रास्ते में बिछा कर चले गए

अब ये भी नहीं है बस में कि हम फूलों की डगर पर लौट चलें
जिस राहगुजर पर चलना है वह राहगुजर तलवार हुई
छूती है ज़रा जब तन को हवा चुभते हैं रगों में कांटे से
सौ बार खिजां आयी होगी, महसूस मगर इस बार हुई

मैं शहर-ए-गुल में ज़ख्म का चेहरा किसे दिखाऊँ
शबनम बदस्त लोग तो कांटे चुभो गए
आँचल में फूल लेकर कहाँ जा रही हूँ मैं
जो आने वाले लोग थे वे लोग तो गए

Thursday, May 5, 2016

हमें कोई ग़म नहीं था,ग़म-ए-आशिक़ी से पहले,
न थी दुश्मनी किसी से,तेरी दोस्ती से पहले.
-
शकील बदायुनी

अब क्यों न ज़िंदगी पे मुहब्बत को वार दें,
इस आशिक़ी में जान से जाना बहुत हुआ.
-
अहमद फ़राज़

जो ये दौर बेवफा है,तेरा ग़म तो मुस्तकिल हो,
वो हयात-ए-आशिक़ी क्या,जो दवाम तक न पहुंचे.
-
याह्या जस्दंवाल्ला

मुस्तकिल = permanent
दवाम = infinity

ग़म-ए-आशिक़ी से कह दो, राह-ए-आम तक न पहुंचे,
मुझे खौफ है,ये तोहमत मेरे नाम तक न पहुंचे.
-
शकील बदायुनी 

राह-ए -आशिक़ी के मारे राह-ए -आम तक न पहुंचे,
कभी सुबह तक न पहुंचे, कभी शाम तक न पहुंचे.
बर्बाद-ए-आशिकी मे तेरी, हम इस अंजाम तक पहुंचे।
कैसी सुबह-क्या शाम, कदम जब मीना-ओ-जाम तक पहुंचे॥
- शकील बदायुनी 

तेरा अंदाज़-ए-दुश्मनी ऐ दोस्त, हू-ब-हू तेरी दोस्ती सी लगे
मौत से क्या डराओगे उसे, जिसको मरना भी ज़िन्दगी सा लगे
-
सरदार अंजुम
दौर-ए-हाज़िर की दोस्ती 'अहसान'
किस कदर जल्द रंग बदलती है
-
अहसान दानिश

लोग इसे जो चाहे कह ले , अपना तो ये हाल रहा है
सिर्फ उन्ही से जख्म मिले हैं, जिनसे अपनी दोस्ती थी
-
इमदाद निजामी
कुछ इलाज़ उनका भी सोचा तुमने ऐ चारागरो
वो जो दिल तोड़ गए हैं दिलबरी के नाम पर
कोई पूछे मेरे गमख्वारों से तुमने क्या किया?
खैर उसने दुश्मनी की दोस्ती के नाम पर
-
अख्तर सईद

यूं तो हम ज़माने से कब किसी से डरते हैं
आदमी के मारे हैं, आदमी से डरते हैं
जब न होश था हमको, तब दुश्मनी से डरते थे
अब होश आया है तो, दोस्ती से डरते हैं
-
खुमार बाराबंकवी
दोस्ती का जो किया करते हैं दावा अहबाब
वक्त पड़ता है तो सब आँख चुरा लेते हैं
-
अकबर इलाहाबादी

यह सिखाया है दोस्ती ने हमें
दोस्त बनकर कभी वादा न करो
-
सुदर्शन फाकिर
हम भी दुश्मन से हो गए अपने
आपने जबसे दोस्ती कम की है
-
फिराक

Wednesday, May 4, 2016

न गुल अपना न खार अपना, न जालिम बागबाँ अपना,
बनाया आह किस गुलशन में हमने आशियाँ अपना।


ऐ दोस्त मिट गया हूँ फना हो गया हूँ मैं
इस दौर ऐ दोस्ती की दवा हो गया हूँ मैं |


इसे ख़ुलूस कहो, या फिर मेरी नादानी
जो भी मुस्कुरा के मिला, उससे दोस्ती करली.

Monday, May 2, 2016

तुम्हारी दोस्ती को देख कर सब हमसे रश्क करते हैं
जो बस चलता तो दुनिया छीन लेती ज़िन्दगी मेरी

ऐ दोस्त तेरी दोस्ती के लिए दुनिया छोड़ देंगे हम ,
तेरी तरफ आये हर तूफ़ान को मोड़ देंगे हम ,
लेकीन तुने जो साथ छोड़ा हमारा ,
कसम से तेरे बिना मर जायेगे हम .

ये और बात है मजबूरियों ने निभाने ना दी दोस्ती
वरना शामिल सच्चाई मेरी वफाओं में आज भी है
दोस्ती और वफा सिर्फ मजबूरियां थी तुम्हारे लिए
तुम क्या जानो, क्या-क्या ख्वाब थे दिल मे हमारे॥