Saturday, May 31, 2014


महफ़िल बनी रही युही तुम्हारी
चाहे बिखर जाये ये ज़िन्दगी हमारी
दीवानगी इस क़दर बढ़ गयी है
के सह ना पाए एक पल जुदाई तुम्हारी

अपनी बेबसी पर आज रोना आया हैं !
दूसरों को क्या मैंने खुद को आजमाया हैं !!
हर एक की तनहाई दूर की हैं मैंने...!
पर खुद को हर मोड पे तनहा पाया हैं !!

आंसुओं की लिखावट को तुम पढ़ ना सकोगे ,
गीले कागज़ पे तुम कुछ लिख ना सकोगे !
याद आएगी तुमको हमारी ये बातें ,
जब खोकर तुम हमें पा ना सकोगे !!