Saturday, December 31, 2016

जब मिटा के शहर गया होगा
एक लम्हा ठहर गया होगा

है, वो हैवान ये माना लेकिन
उसकी जानिब भी डर गया होगा

तेरे कुचे से खाली हाथ लिए
वो मुसाफिर किधर गया होगा

ज़रा सी छाँव को वो जलता बदन
शाम होते ही घर गया होगा

नयी कलियाँ जो खिल रही फिर से
ज़ख़्म ए दिल कोई भर गया होगा

साथ रोती थी मेरे,साथ हँसा करती थी
वो लड़की जो मेरे दिल में बसा करती थी,

मेरी चाहत की तलबगार इस दर्जे की थी
मुसल्ले पे नमाज़ों में दुआ करती थी,

एक लम्हे का बिछड़ना भी गवारा नहीं
रोते हुए मुझको खुद से जुदा करती थी,

मेरे दिल में रहा करती थी धड़कन की तरह
और साये की तरह साथ वो चला करती थी,

रोग दिल को लगा बैठी अनजाने में
मेरी आगोश में मरने की दुआ करती थी,

बात किसमत की है जुदा हो गए हम
वरना वो मुझे तकदीर कहा करती थी..

ये ख्वाब है, खुश्बू है, के झोंका है के तुम हो....
ये धुंध है, बादल है, के साया है, के तुम हो...

एक दर्द का फैला हुआ सेहरा है के में हूँ..
एक मौज में आया हुआ दरिया है के तुम हो...

जिस तरफ भी देखूं नज़र आता है के तुम हो
ऐ जान-ए-जहां ये कोई तुम सा है के तुम हो...

Thursday, December 29, 2016

शायद यह ज़िंदगी की भूल हो
मुझे यह ज़ोख़िम उठाना होगा
लाए हम पने घर कातिल को
देना है मंज़िल-ए-अंजाम इश्क़ को

तू आज मुझसे एक वादा कर दे
छोड़ना न मुझे तू कभी
तू मेरा हाथ आज थम ले
संभाल लेना गर ज़िंदगी मुझे धोखा दे

हमदर्दी का नाम न दे यह तो है मोहब्बत मेरी
अहसान का मुझे करार न दे चाहा है तुझे दिल से

Tuesday, December 27, 2016

तेरा दीवाना हुआ मैं ए हमनशीन
तेरी मोहब्बत लाखों मे है एक हसीन
तेरे जैसा देखा नही मैने कोई
दिल मे एक तूफान मन मे है एक सनसनी

यह जोश-ए-जुनून देख के तेरा
हमारे दिल की धड़कन रुक सी गयी
देख के ऐसी मोहब्बत आँखों मे तेरी
हमारे दिल मे भी चिंगारी सुलग गई

Monday, December 26, 2016

फिर वही आलम फिर वही तन्हाई है,
तुम खयालों मे तो चले आओ के रात तो कटे।

Friday, December 23, 2016

शिकायत है उन्हें कि,हमें मोहब्बत करना नही आता,
शिकवा तो इस दिल को भी है,पर इसे शिकायत करना नहीं आता.

बड़ी आसानी से दिल लगाये जाते हैं,
पर बड़ी मुश्किल से वादे निभाए जाते हैं,
ले जाती है मोहब्बत उन राहो पर,
जहा दिए नही दिल जलाए जाते हैं.

लौट जाती है दुनिया गम हमारा देखकर,
जैसे लौट जाती हैं लेहरें किनारा देखकर,
तू कान्धा न देना मेरे जानाज़े को ऐ दोस्त,
कही फ़िर जिंदा न हो जाऊं तेरा सहारा देख कर.

Thursday, December 22, 2016

उससे भूलना अब आसान न होगा
यह बंधन हो गया है पुराना
मुझे उन बाहों में जाना होगा


उस दिल में घर अपना बनाना होगा

जिंदगी इतनी दर्द भरी क्यों है,
दर्द आपको है तो तकलीफ हमें क्यों है.
मेरी हर खबर रखने वाले दोस्त,
तू आज मुझसे बेखबर क्यों है..!

Wednesday, December 21, 2016

इसे मेरी बदनसीबी कहो या नासमझी यारोँ
हम तो अपने उसूलोँ के आगे झुक गये।

Friday, December 16, 2016

हम यूं तमाम उम्र रहे ज़िन्दगी के साथ,
जैसे हर गम को गवारा हर खुशी के साथ ।

इस दिल ने एक बार फिर तुम्हे पूकारा है
मेरे साँसों मैं तुम समा जाओ
की तिनका भी दीवार न बेन सके
इस दिल के इतने करीब आजाओ

जहां के मेले में हाथ छोड़ दिया तूने
बात जुबां की थी, किस्मत की नहीं

Wednesday, December 14, 2016

आपके आने से जिंदगी कितनी खुबसूरत हैं !
दिल में बसाई हैं जो वो आपकी ही सूरत हैं !!
दूर जाना नहीं कभी हमसे भूल कर भी.....!
हमें हर कदम पर आपकी जरुरत हैं......!!

दिया बन के चला आया है वोह मेरी अँधेरी दुनिया में,
मेरे हर ग़म के दरवाज़े पे उसने हौले से आहट की है,
चाँद-सूरज की रौशनी भी फीकी है उसकी चमक के आगे,
अरसे से उदास पड़े चेहरे पे ऐसी खिलती मुस्कराहट दी है !!

हमे भी याद रखे जब लिखें तारीफ गुलशन की,
हमने भी लुटाया है चमन मे आशिया अपना ।

Saturday, December 10, 2016

सज़ाएं खूब मिली उनसे दिल लगाने की,
वो क्या बदल गए बदली नज़र जमाने की।

ख़त लिखा हमने उन्हें बस यही खता हो गयी !
जवाब आया उनका ऐसा की
लगता है अब जिन्दगी भी बेवफा हो गई !!

लबों की ये कलियाँ खिली-अधखिली सी
ये मख़मूर आँखें गुलाबी-गुलाबी
बदन का ये कुंदन सुनहरा-सुनहरा
ये कद है कि छूटी हुई माहताबी
हमेशा सलामत रहे या जवानी।

Friday, December 9, 2016

दिल से शिकवा साज़ से नगमें निकल पडे,
पूछा किसी ने हाल तो आंसू निकल पडे।

क्या फला मुझको परखने का नतीजा निकला,
ज़ख्मे दिल आपकी नज़रों से भी गहरा निकला।

तू ना आयेगा ये मुझे मालूम नहीं था
शायद मेरी उम्मीदों का ये अंजाम लिखा था

Wednesday, December 7, 2016

कभी ये सोचता हूँ, ओ कातिबे किस्मत!
क्या कहीं सुकून भी लिक्खा है तूने मेरी किस्मत में??

कातिब- लेखक

यह अदाए - बेनिवाजी, तुझे बेवफा मुबारक,
मगर ऐसी बेरूखी क्या कि सलाम तक न पहुंचे

फकत इक बेकार का काम है अब शराब पीना अपनी,
वो महफिल उठ गई कायम थी जिससे सरखुशी अपनी।


Monday, December 5, 2016

ये दुरियॉ अजीब सी लगती है
अपनी बात हुये मुददत सी लगती है
तुम्हारी दोस्ती अब जरूरत सी लगती है

दोस्ती से आज प्यार शरमाया है
तेरी चाहत ने कुछ ऐसा गजब ढाया है
खुदा से क्या तुझे मांगे, वो तो आ खुद
मुझ से मुझ जैसा मांगने आया है



अब नजर नहीं उठती बज़्म में उस की हम पर ..
हम कदर खो बैठे है रोज आने जाने से..

Saturday, December 3, 2016

क्या जाने लिख दिया क्या उसे इज्तेराब में,
क़ासिद की लाश आई है ख़त के जवाब में.
-
मोमिन

मेरे दिले-मायूस में क्यों कर न हो उम्मीद,
मुरझाए हुए फूलों में क्या बू नहीं होती।
-'
अख्तर' अंसारी
अपने ख्वाबों में तुझे जिसने भी देखा होगा
आंख खुलते ही तुझे ढूंढ़ने निकला होगा
-
अब्बास दाना
आग है, पानी है, मिट्टी है, हवा है मुझ में
और फिर मानना पड़ता है कि खुदा है मुझ में
-
कृष्णबिहारी नूर
बेवफ़ा लिखते हैं वो अपनी कलम से मुझ को,
ये वो क़िस्मत का लिखा है जो मिटा भी न सकूँ.
-
अमीर मिनी

अश्कों के निशाँ पर्चा-ए-सादा पे हैं क़ासिद,
अब कुछ न बयाँ कर ये इबारत ही बहुत है.
-
एहसान अली खान

Friday, December 2, 2016

औरों की सुबह तो सूरज की रौशनी के साथ सुरु होती है
मेरा तो दिन उसका चेहरा देखने से निकलता है .....!

खोल कर किताब मै कितनी देर और पढता रहता,
उसका अक्स हर लफ्ज़ के मायनें बदल के बाहर आया है ......!

मेरी सांसों में वो रहती है वो खुशबु सी बनके
कोई मेरे कमरे में आईना देख के संवारता है .....!

Wednesday, November 30, 2016

आप ही के नाम पर पाई है हमने ज़िन्दगी,
खत्म होगा ये किस्सा आप ही के नाम पे ।

जो के जुनुन का आज मुझे मिल गया सिला,
अच्छा हुआ जो तुमने भी दिवाना कह दिया ।

अरे हम तो ऐसे बदनसीब है मेरे दोस्त,
बेचे अगर कफ़न तो लोग मरना छोड़ देँ...

Monday, November 28, 2016

कौनसा ज़ख्म था जो ताज़ा ना था
इतना गम मिलेगा अंदाज़ा ना था
आपकी झील सी आँखों का क्या कसूर
डूबने वाले को ही गहराई का अंदाज़ा ना था

आज तेरे प्यार में एक शमा जलाए है
तेरे आने की उम्मीद मे आँगन सजाया है
तेरा राह देखती है यह तरसती आँखें
तेरी मोहब्बत से मैने ख्वाबो का किला बनाया है

अब तो इस राह से वह शख्स गुजरता भी नहीँ।
अब किस उम्मीद पे दरवाजे से झाँके कोई॥

Friday, November 25, 2016

वो लिखते हैं हमारा नाम मिटटी में,और मिटा देते हैं ,

उनके लिए तो ये खेल होगा मगर,
हमें तो वो मिटटी में मिला देते हैं

नोटबंधी

हमें भी आ पड़ा है दोस्तों से काम कुछ यानी
हमारे दोस्तों के बेवफा होने का वक्त आया।

मैं समझता हूँ तेरी इशवागिरी को साकी,
काम करती है नजर, नाम पैमाने का है

Saturday, November 19, 2016

ए दोस्त तेरी दोस्ती पे नाज करते है
हर बकत मिलने की फरियाद करते है
हमें नही पता घरवाले बताते है
के हम नीदं में भी आपसे बात करते हैं

आसुओं के चलनेकी आवाज नहीं होती
दिल के टुटने की आहट नहीं होती
अगर होता खुदा को हर दर्द का अहसास
तो उसे दर्द की आदत ना होती

वो समझते हैं के हर शख्स बदल जाता है
उन्हें यह लगता है ज़माना उन के जैसा है

Thursday, November 17, 2016

दिल के हर ज़ख्म से आती है वफा की खुश्बु,
ज़ख्म छुप जाऐगे खुश्बु को छुपाऊ कैसे ।

देखा था उसने चाँद सा चेहरा ज़रा सी देर
बहुत देर तक आईने में बड़ी रोशनी रही