इक अधूरा सा जो
गजल मैं लिख रहा हूं ,
तुम्हें जो देखूं मैं तो
हो जाए मुकम्मल यूं ही ।।
कभी संग छत पे
चलना चांदनी रात में ,
कभी गालों पे मेरे
रख देना बोसा यूं ही ।।
लो एक ख्याल को
नज्म में बदल दिया ,
तुम आगोश में बिखरो
गजल लिख दूं यूं ही ।।
---- सुनिल #शांडिल्य