प्रेम के है कितनी भाषाएं क्या तुमने महसूस किया
तीजे पहरतक जागे हो क्या?क्या कभी तुमने प्रेम किया
कितनी रातें जागी तुमने,कितने तारे गिन डाले
उस मनोहरी शाममें तुमने,कितने स्वप्न सजा डालें
कितनी वादें किए है तुमने,कितने शर्त निभाएं है
कितनी उम्मीदें तोड़ी है,बची कितनी आशाएं हैं
चांद निहारा कितना तुमने,कितने पानी में झांका
प्रेममें सात सुरों को लिखकर,क्या कभी खुद को है आंका
कितनी नदियां झिलमिल करती,उठा लहर और शांत हुआ
कितनी बार है झांका उसको,तेरा मन नितांत हुआ
कल्पनाओं की स्याही तोड़ा,कितनी बार बता जाना
प्रेमके उस मधुरिम बेला में,न कभी फिर से घबराना
शुष्कधरा पर रोपें कितने,प्रेमपुष्प के पौंधे तुम
कितने ख्वाब संजोए तुमने,कितने ख्वाब हो रौंदे तुम
पुष्प वाटिका में जा-जाकर,कितने पुष्प चुराए हो
कितनी बाहें थामी तुमने औ कितनी बांह छुड़ाएं हो
प्रेममें कितनी गांठे खोली,कितनी गाठें मौन रखी
कितने मनके चित्र उकेरे,कितने अबतक गौण रखी
~~~~ सुनिल #शांडिल्य