Saturday, March 16, 2024

अविरल स्रोतस्विनि-सी तुम
मृदुल-मृदुल,उज्जवल निर्झर
तुम्हारे उर के पावन तट पर
वर नये मिल जाते सत्वर ।।

फैला रही तुम तेज कितना
आज मेरे उर अंतर में
अनुभूत तुमको करने लगा हूं
अब अंतर्मन के गह्वर में ।।

खोल दो तुम मन के पट
मुझे और गहरा उतरने दो
अपने सौंदर्य की छाया में
मुझे भी कुछ निखरने दो।।

जीवन क्या है,मुझे इसका
और सौंदर्य बोध करा दो तुम
मुझे कोई शाश्वत चीज बनाकर
अपने हृदय से लगा लो तुम।।

बनकर अमर प्रेरणा मुझमें 
मेरी आकांक्षाओं को बलवान करो 
मेरी श्रद्धा,भक्ति,प्रीति बनकर
मुझे जग में शक्तिमान करो।।

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Thursday, March 14, 2024

निकली वन से कलिका मृदुला,
जग देख रही मन भाव भरे।

चकि जात रही सकुचात रही,
बहु रूप अनूप  लगाव करे।

कुछ लोग भले कुछ लोग बुरे,
किस भांति  दुराव प्रभाव करे।

दृग काम भरे मन श्याम धरे,
बन लोलुप दृष्टि रिसाव रहे।।

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Tuesday, March 12, 2024

अंतस का अंधेरा अमावस की रात से भी गहरा था
निकल न पाए चित्त, उस पर खूंखार यादों का पहरा था

खुले आसमान के नीचे कैद मैं अपनी ही उलझनों में
खुशियों का शोर था बाहर ,पर मैं खुद के अंदर ही ठहरा था।

न जाने ये रात कब शुरू हुई और कब खत्म होगी
बदलते पहर संग आदि मध्य ओर अंत होगी

अपने चांद का इंतज़ार भी नही है मुझको
जल जाऊंगा अगर चांदनी की बरसात होगी।

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Sunday, March 10, 2024

हिम्मतसे बढ़ती है ताकत
एकजुटता से बढ़ती एकता

प्यार बढ़ता साझा करनेसे
परवाह से बढ़ती एकरूपता

छू ना पायेगा कोमल हृदय
किसीके भी कठोर शब्द

छू जाएंगे कठोर हृदयभी
हँसमुख तेरे कोमल शब्द

पढ़ सकते हो तो दर्द पढ़ना
किसीके भी दिलके भीतर

शान्त सा दिखने वाला लगे
कितने दर्द समेट रखे सागर

~~~~~ #$h@πd!£y@

Friday, March 8, 2024

पावस में जब पयस्विनी का रूप निखरता है 
नभ में वह आवारा चन्दा आहें! भरता है ।।

कभी बादलो में छुपता मायूस मलिन सा चेहरा 
कभी निकल कर श्याम घटा से सलिला पर आ ठहरा

कृष्ण-पक्ष में हो विलुप्त मन ऐसे भी तरसाये 
ज्यों भामिन का कंत अचानक परदेशी हो जाये 

शुक्ल पक्ष में नयी कलासंग दिनदिन बढ़ता है
पावस में जब पयस्विनी का रूप निखरता है 
नभमें वह आवारा चन्दा आहें! भरता है

नीरवता में मौन यामिनी युगयुग प्रणय लखी है 
नभ अटखेली देख इंदु की नदिया भी हरषी है 

एक धरापर एकगगन में साथ मचलते हैं 
कलकल करती सरित और शशि दोनों चलते हैं

शुभ्र चाँदनी सी बाहों में सिंधुगामिनी निखरे
जैसे रमणी की मुख आभा साथ पिया के बिखरे 

निर्जन वीरानों में हिमकर साथ गुजरता है। 
पावस में जब पयस्विनी का रूप निखरता है 
नभ में वह आवारा चन्दा आहें! भरता है।।

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Monday, March 4, 2024

तुम्हारेे याद की आहट कोई किस्सा बताती है
ये घुलकर साँस में मेरी नई दुनिया सजाती है

तुम्हारी याद ही शायद है वो दीवार, सूनी सी
जहाँ कुछ अक्स दिखते हैं जहाँ परियाँ नहाती हैं

तुम्हारी याद की ख़ुशबू से मेरी आरज़ू महके
महकती है मेरी धड़कन, ये धड़कन भी सुनाती है

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

Saturday, March 2, 2024

दीपक जले भवन में, रहे पतंगा बन में
प्रीत खिच कर लायी उसे जलाया क्षण मैं

जलन का उसे कहाँ था होश
प्यार का चढ़ा हुआ था जोश

गा रही दुनियाँ जिसके गीत
बाँवरे यही प्रीत की रीत

~~~~ सुनिल #शांडिल्य