अविरल स्रोतस्विनि-सी तुम
मृदुल-मृदुल,उज्जवल निर्झर
तुम्हारे उर के पावन तट पर
वर नये मिल जाते सत्वर ।।
फैला रही तुम तेज कितना
आज मेरे उर अंतर में
अनुभूत तुमको करने लगा हूं
अब अंतर्मन के गह्वर में ।।
खोल दो तुम मन के पट
मुझे और गहरा उतरने दो
अपने सौंदर्य की छाया में
मुझे भी कुछ निखरने दो।।
जीवन क्या है,मुझे इसका
और सौंदर्य बोध करा दो तुम
मुझे कोई शाश्वत चीज बनाकर
अपने हृदय से लगा लो तुम।।
बनकर अमर प्रेरणा मुझमें
मेरी आकांक्षाओं को बलवान करो
मेरी श्रद्धा,भक्ति,प्रीति बनकर
मुझे जग में शक्तिमान करो।।
~~~~ सुनिल #शांडिल्य