सोए हुए कुछ शब्दों को,झिंझोड़ कर
अपने बचे खुचे हृदय को,निचोड़ कर
शीत लहर ओढ़े,नदी किनारे बिसुरती हुई
मैंने इक कविता लिखी है,ठिठुरती हुई
रखना होगा तापमान को,शून्य से नीचे
कहीं पिघल ना जाएं,दर्द के बगीचे
तुम्हारी सुधि के अलाव,कहां तक जलाएं
विरह के सागर से उठती हैं,सर्द हवाएं
~~~~ सुनिल #शांडिल्य