Thursday, June 30, 2016

अच्छा यक़ीं नहीं है तो कश्ती डुबो के देख,
एक तू ही नाख़ुदा नहीं ज़ालिम, ख़ुदा भी है |

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क़तील शिफ़ाई
सितारों जैसी ये आँखें ये चाँद सा चेहरा,
तुम्हारा सिलसिला कुछ आसमाँ से मिलता है |

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वज्जिदा तबस्सुम
वो उस का अक्स-ए-बदन था कि चांदनी का कँवल,
वो नीली झील थी या आसमाँ का टुकड़ा था |

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शकेब जलाली
हर सुबह मेरे सर पर इक हादिसा नया है,
पैवंद हो ज़मीन का,शेवा इस आसमाँ का |

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मीर तकी मीर
कामरान यूँ था मेरा बख्त-ए-जवाँ कल रात को,
झुक रहा था मेरे दर पे आसमाँ कल रात को |

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जगन्नाथ अज़ाद

कामरान = सफल , बख्त = भाग्य
कभी तो आसमाँ से चांद उतरे जाम हो जाये
तुम्हारे नाम की इक ख़ूबसूरत शाम हो जाये
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बशीर बद्र
कोई नई ज़मीन हो नया आसमाँ भी हो,
ऐ दिल अब उस के पास चलें वो जहाँ भी हो |

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फ़िराक गोरखपुरी |
मेरे होंठों का तबस्सुम दे गया धोखा तुझे,
तूने मुझको बाग़ जाना देख ले सेहरा हूँ मैं |

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अथर नफीस
इश्क़ में ऐसे भी हम डूबे हुए हैं आप के,
अपने चेहरे पे सदा होता है धोखा आप का |

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वाजिदा तबस्सुम

सितम की कामयाबी पर मुबारकबाद देता हूँ,
यह उनकी बदगुमानी है कि फरियादी समझते हैं।
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अकबर इलाहाबादी

Wednesday, June 29, 2016

खुदा जाने यह दुनिया जल्वागाहे-नाज है किसकी,
हजारों उठ गये लेकिन वही रौनक है महफिल की।


मेरे हाल पे ये हैरत कैसी, दर्द का तनहा मौसम मैं,
पत्थर भी रो पड़ते हैं, इंसान तो फिर इंसान हुआ

मयकशोँ तुम्हेँ मयकशी पर नाहक हि जोश है
यह तो साकी जानती है किसको कितना होश है


Saturday, June 25, 2016

आदतन धोखा दिया उसने, मगर मैं चुप रहा
मेरी आदत है, बस तमाशा देखता रहता हूँ मैं।
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तिलक राज कपूर
तुम ने दिल की बात कह दी आज ये अच्छा हुआ,
हम तुम्हें अपना समझते थे बड़ा धोखा हुआ |

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इकबाल अज़ीम
जफा जो इश्क में होती है वह जफा ही नहीं,
सितम न हो तो मुहब्बत में कुछ मजा ही नहीं।
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मोहम्मद इकबाल

जफा - जुल्म, अत्याचार
हम आह भी भरते हैं, तो हो जाते हैं बदनाम,
वह कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता।
-'
अकबर' इलाहाबादी
ऐ निगहे-दिलफरेब, यह क्या सितम कर दिया,
हौसले जब बढ़ गये, रब्त को कम कर दिया।
-'
आर्जू' लखनवी

निगाहे-दिलफरेब - निगाहों को फरेब देने वाली माशूक
रब्त - लगाव, तअल्लुक, मेल-जोल
फैला है हुस्ने-आरिजे-रौशन नकाब में,
क्या-क्या तड़प रही है तजल्ली हिजाब में।
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साकिब लखनवी
हुस्ने-आरिजे-रौशन - उज्जवल गाल का सौन्दर्य
नकाब - घूँघट, मुखावरण, मुखपट, बुर्का
तजल्ली - प्रकाश, आभा, नूर
पहलू-ए-गुल में खार भी हैं कुछ छुपे हुए,
हुस्ने-बहार देख तो दामन बचा के देख।
-'
दिल' शाहजहाँपुरी
साकी मेरे खुलूश की शिद्दत तो देखना,
फिर आ गया हूँ गर्दिशे-दौरां को टालकर।
अब्दुल हमीद 'अदम'
1.
खुलूश - मुहब्बत, प्यार 2.शिद्दत - प्रगाढ़ता
3.
गर्दिशे-दौरां - रोज-रोज के गम
साकी-ए-महफिल यहां सरशार हर रिन्द है।
तेरी महफिल में मेरा ही जाम भर सकता नहीं॥
:-
सुधा अंजुम
बहुत हसीन सही सोहबतें फूलों की मगर
वो ज़िन्दगी है जो काँटों के दरमियां गुजरे
-
जिगर मुरादाबादी

Friday, June 24, 2016

तेरे हुस्न की तारीफ में कोई एक शेर क्या कहेगा?
तेरे खातिर आसमां भी क्या कागज़ का पुर्जा बनेगा?


ऐ दिल, तुझे शोभा नहीं देता साकी की खुशामद ,
मैखाना खिंचा आयेगा , किस्मत में अगर है ।


आशियाँ फूंका है बिजली ने जहाँ सौ मर्तबा,
फिर उन्हीं शाखों पै, तरहे-आशियाँना रखता हूँ मैं

Wednesday, June 22, 2016

तुम्हारा हुस्न आराइश, तुम्हारी सादगी जेवर,
तुम्हें कोई जरूरत ही नहीं बनने-संवरने की।
-'
असर' लखनवी

आराइश - शृंगार, सजावट, आभूषण
क्या हुस्न ने समझा है, क्या हुस्न ने जाना है,
हम खाकनशीनों के ठोकर में जमाना है।
-
जिगर मुरादाबादी
मेरी निगाह में वह रिन्द रिन्द नहीं साकी,
जो होशियारी और मस्ती में इम्तियाज करे।
-'
इकबाल'
1.
रिन्द शराबी 2.इम्तियाज - फर्क, अन्तर
पिला दे औक से साकी जो मुझसे नफरत है,
पियाला गर नहीं देता न दे, शराब तो दे।
-
मिर्जा 'गालिब'
औक - अंजुली
गो मय है तुन्दो-तल्ख पै साकी है दिलरूबा,
ऐ शैख बन पड़ेगी न कुछ हां कहे बगैर।
-'
ख्वाजा' हाली
मय - शराब
तुन्दो-तल्ख - तेज और कड़वी
शैख - पीर, गुरू, धर्माचार्य
कुछ और मेरे बाद भी आयेंगे काफिले
काँटे ये रास्ते से हटा लूँ तो चैन लूँ
-
तसव्वुर कीरतपुरी
गुलशन-परस्त हूं मुझे गुल ही नहीं अज़ीज़,
कांटों से भी निबाह किए जा रहा हूं मैं ।
:-
जिगर मुरादाबादी
गुल भी अजीज हैं हमें, कांटे भी हैं अजीज,
वाकिफ नहीं तमीजे-बहारो-खिजां से हम।
-'
असीर' बीकानेरी


कितने कांटों की बद्दुआ ली है
चन्द कलियों की जिन्दगी के लिए।
-
शहीद फातिमी
क्यों जल गया न ताब-ए-रुख-ए-यार देखकर,
जलता हूँ अपनी ताकत-ए-दीदार देखकर |
मिर्जा ग़ालिब

Tuesday, June 21, 2016

"हमारी जिंदगी का कुछ ऐसा फ़लसफा है,
हमारे लबों की तबस्सुम हम ही से ख़फा है|
फिर भी चहरे पे शिकन के निशां नहीं,
कम्बख्त ग़म भी हंसी की तरह हम से बेवफ़ा है|"

क्या सरोकार अब किसी से मुझे
वास्ता था तो था तुझी से मुझे
मौत की आरज़ू भी कर के देखूँ,
क्या उम्मीदें थी ज़िन्दगी से मुझे

ऐ मौत! उन्हें भुलाए ज़माने गुज़र गए
आ जा कि जहर खाए ज़माने गुज़र गए
ग़म है, न अब खुशी है, न उम्मीद है, न आस
सबसे निजात पाए ज़माने गुजर गए

Saturday, June 18, 2016

इश्क का जौके-नजारा मुफ्त को बदनाम है,
हुस्न खुद बेताब है जलवा दिखाने के लिए।
-
मजाज लखनवी
जौके-नजारा - देखने की ख्वाहिश
बती सांस को उभारा है, नब्ज गिरती हुई संभाली है,
मय को सागर में डालकर साकी,जान में तूने जान डाली है।
-
नरेश कुमार 'शाद'
मय शराब
सागर - प्याला
काँटों की जुबाने-तिश्ना से गुलशन की हकीकत को पूछो,
याराने-चमन इन फूलों को तो हंसना, हंसाना आता है।
-'
अलम' मुफ्फरनगरी

वह एक तुम, तुम्हें फूलों पै भी न आई नींद,
वह एक मैं, मुझे कांटों पै भी इज्तिराब न था ।
-
नैयर अकबराबाजदी
फूल चुनना भी अबस, सैरे-बहारां भी अबस,
दिल का दामन ही जो कांटों से बचाया न गया।
-
मुईन अहसन 'जज्बी'
कफस से छूटकर पहुँचे न हम दीवारे-गुलशन तक,
रसाई आशियाँ तक किस तरह बेबालोपर होती।
-
जलील मानिकपुरी
कफस - पिंजड़ा
रसाई - पहुँच
बेबालोपर - जिसके पास जीविका का कोई साधन न हो
वो उठा शोर-ए-मातम आख़री दीदार-ए-मय्यत पर,
अब उठा चाहते हैं नाश-ए-फनी देखते जाओ |
-
फनी बदायुनी

Friday, June 17, 2016

यूँ दोस्ती के नाम को रुसवा ना कीजिये
तर्क-ए-तआल्लुक का चर्चा न कीजिये
ऐसा न हो उम्मीद से रिश्ता ही टूट जाए
हर रोज़ मुझसे वादा-ए-फ़र्दा न कीजिये

आँखों को हो सके तो ज़रा अश्कबार रख
पेवस्ता रह शजर से उम्मीद-ए-बहार रख
काबा अगर नहीं तो इसे बुतकदा बना
दिल में खुदा की याद या तस्वीर-ए-यार रख

चारागर आज सितारों की कसम खा के बता       
किस ने इंसान को तबस्सुम के लिए तड़पाया
लोग हँसते हैं तो इस सोच में खो जाती हूँ
मौज-ए-सैलाब ने फिर किसका घरौंदा ढहाया

Thursday, June 16, 2016

एक-सी शोखी खुदा ने दी है हुस्नो -इश्क को,
फर्क बस इतना है कि वो आंखों में है, ये दिल में हैं।
-'
जलाल' लखनवी
उफ वह संगमरमर-सा तराशा हुआ शफ्फाफ बदन,
देखने वाले उसे ताजमहल कहते हैं।
-'
कतील' शिफाई
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शफ्फाफ - (i) स्वच्छ, उज्जवल, चमकदार (ii) निर्मल, साफ, शुद्ध
खाली है मेरा सागर तो सही, साकी को इशारा कौन करे,
खुद्दारिये-साइल भी कुछ है, हर बार तकाजा कौन करे।
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आनन्द नारायण मुल्ला
सागर - शराब का पिलाया, पानपात्र
साइल - (i) मांगने वाला, भिक्षुक (ii) प्रार्थी, दरख्वास्त करने वाला
तकाजा - माँग, दिए हुए रूपए या वस्तु की मांग, किसी काम के लिए किसी से बराबर कहना
इश्क का सर-ए-निहां जां-तपन है जिस से
आज इकरार करें और तपिस मिट जाए
हर्फ़-ए-हक़ दिल में खटकता है जो कांटे की तरह
आज इज़हार करें और खलिश मिट जाए
-
फैज़ अहमद फैज़
काटी तमाम उम्र फरेब-ए-बहार में
कांटे समेटते रहे फूलों के नाम से
ये और बात है कि 'अली' हम ना सुन सके
आवाज़ उसने दी है हमें हर मुकाम से
-
अली अहमद ज़लीली
जिस शक्ल में जिन्दगी को तुम चाहो ढाल लो,
फूलों का सेज है, यही कांटों का तख्त है।
जीस्त - 
आज कांटें हैं अगर तेरे मुकद्दर में तो क्या,
कल तेरा भर जाएगा फूलों से दामन गम न कर।
-'
निहाल' सेहरारवी
तुम्हारी तहज़ीब अपने ख़ंजर से आप ही खुदकशी करेगी
जो शाख़े नाजुक पै आशियाना बनेगा, ना पाएदार होगा
-
इक़बाल
आँखों में जी मेरा है इधर यार देखना,
आशिक़ का अपने आख़री दीदार देखना |
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मीर तक़ी मीर

दिल को नियाजे-हसरते-दीदार कर चुके,
देखा तो हममें ताकते-दीदार ही नहीं ।
-
मिर्जा गालिब
नियाजे-हसरते-दीदार - दर्शन की इच्छा को भेंट

Wednesday, June 15, 2016

मुझे सुकूं मयस्सर नहीं तो क्या गम है
गुलों की उम्र तो काँटों के दरमियाँ गुज़री
तमाम उम्र जलाते रहे चिराग-ए-उम्मीद
तमाम उम्र उम्मीदों के दरमियान गुज़री

मत पूछ मेरी मोहब्बत की इन्तेहा कहाँ तक है
तू कर ले सितम तेरा ताकत जहाँ तक है
वफ़ा की उम्मीद जिन्हें होगी उन्हें होगी
देखूँ तो ज़रा तू बेवफा कहाँ तक है

कुछ सवालो के जवाब चाहिए इस "शायर दिल" को आज।
बस खत्म कर दो झरनों का इंतज़ार,
आख़िर कब तक गिरता रहेगा ये जवाबो के इंतजार मे।

Tuesday, June 14, 2016

इश्क का सर-ए-निहां जां-तपन है जिस से
आज इकरार करें और तपिस मिट जाए
हर्फ़-ए-हक़ दिल में खटकता है जो कांटे की तरह
आज इज़हार करें और खलिश मिट जाए
-
फैज़ अहमद फैज़
बनायें क्या समझकर शाख़ेगुल पर आशियाँ अपना ?
चमन में आह ! क्या रहना, जो हो बे-आबरू रहना ?
-
इक़बाल
चाहता हूँ तेरा दीदार मयस्सर हो जाये,
सोचता हूँ मुझे ताबे-नजर भी होगी ?
-
तालिब देहलवी
1.
दीदार - दर्शन
2.
मयस्सर - प्राप्त
3.
ताबे-नजर - देखने की शक्ति
उम्मीदवार वादा-ए-दीदार मर चले,
आते ही आते यारों क़यामत को क्या हुआ.
-
मीर तकि मीर
दीदार, वादा, हौसला, साक़ी, निगाह-ए-मस्त,
बज़्म-ए-ख़याल मैकदा-ए-बेख़रोश है.
-
मिर्ज़ा ग़ालिब
दीदार = दिखाई देना
बेख़रोश = quite/dead

Wednesday, June 8, 2016

मैं लडखडा रहा हूँ तुझे देख देख कर
तूने तो मेरे सामने एक जाम रख दिया
कितना सितम-ज़रीफ़ है वो साहिब-ए-ज़माल
उसने दिया जला के लब-ए-बाम रख दिया

''हुस्न वालों के चेहरे पर क्या लगती हे आँखे
सीधा रास्ता बना देती हे दिल के आँगन का ''

आंखों को बचाये थे हम अश्के-शिकायत से,
साकी के तबस्सुम ने छलका दिया पैमाना ।



Saturday, June 4, 2016

पत्थर के खुदा, पत्थर के सनम पत्थर ही के इंसान पाए हैं
तुम शहर-ए-मुहब्बत कहते हो, हम जान बचा के आये हैं
हम सोच रहे थे मुद्दत से, अब उमर गुजारें भी तो कहाँ,
सहरा में खुशी के फूल नहीं, शहरों में ग़मों के साए हैं।

फिर आज कोई गजल तेरे नाम न हो जाए
कहीं लिखते लिखते शाम न हो जाए !
कर रहे हैं इंतज़ार तेरी मुहब्बत का
!!
इस इंतज़ार में जिंदगी तमाम न हो जाए !

प्यार है हमको आपसे इस कद्र!
जागते है इंतज़ार में अब तो हर पहर!
आपके दीदार से होती है हर सहर!
और आपके खुमार में उठती है प्यार की लहर!

Thursday, June 2, 2016

फासले मिटा कर आपस में प्यार रखना;
दोस्ती का ये रिश्ता हमेशा बरकरार रखना;
बिछड़ जाए कभी आपसे हम;
आँखों में हमेशा हमारा इंतज़ार रखना!

मेरी नज़रों में जो खुमार है उसका ही है;
मेरे तस्सवुर में जो हिसार है उसका ही है;
वो मेरे पास आये, साथ चले रहे न रहे;
मुझे तो बस अब इंतज़ार उसका ही है!

तड़प के देखो किसी की चाहत में;
तो पता चले कि इंतज़ार क्या होता है;
यूँ ही मिल जाये अगर कोई बिना तड़पे;
तो कैसे पता चले के प्यार क्या होता है!