Wednesday, May 31, 2017

दिल की तनहाइयों में हम उनको ढूंढते रहते हैं .
दूर होकर भी जालिम आँखों के सामने घुमते रहते हैं

ना सवाल बन के मिला करो ना जवाब बन के मिला करो
मेरी जिंदगी मेरा ख्वाब है मुझे ख्वाब बन के मिला करो

काश बनाने वाले ने दिल कांच के बनाये होते,
तोड़ने वाले के हाथ में ज़ख्म तो आये होते

Tuesday, May 30, 2017

गरमी हसरत-ए -नाकाम से जल जाते हैँ
हम चिरागोँ की तरह शाम से जल जाते हैँ
शमा जिस आग मे जलती है नुमाइश के लिए
हम उसी आग मे गुमनाम से जल जाते हैँ
खुद नुमाई तो नही शबव - ए -अश्बाब वफा
जिनको जलना हो वो आराम से जल जाते हैँ
रब्त बहम ये नही क्या ना कहेँगे दुश्मन
आशना जब तेरे पैगाम से जल जाते हैँ
जब भी आता है मेरा नाम तेरे नाम के साथ
जाने क्योँ लोग मेरे नाम से जल जाते हैँ....
दिन कट रहे हैं कशमकश-ए-रोज़गार में
दम घुट रहा है साया-ए-अब्र-ए-बहार में
आती है अपने जिस्म से जलने की बू मुझे
लुटते हैं नकहतों के सबू जब भी बहार में
गुजरा इधर से जब कोई झोंका, तो चौंककर
दिल ने कहा, ये आ गए हम किस दियार में
मैं एक पल को रंज-ए-फुरावाँ में खो गया
मुरझा गए हैं जमाने मिरे इन्तिज़ार में
है कुञ्ज-ए-आफियत, तुझे पाकर पता चला
क्या हुमहुमे थे गर-ए-सरे-रहगुज़ार में

Wednesday, May 24, 2017

ख़्वाब आंखों में पाल कर रखना
ये असासां संभाल कर रखना

आज मुमकिन है वो इधर आंए
दीप चौखट पे बाल कर रखना

ये हुनर बस तुझी को आता है
हर बशर को निहाल कर रखना

किस क़दम पर हो हादसा जाने
हर क़दम देख-भाल कर रखना

तुझको चक्कर मे डाल देगा ये
सबको चक्कर में डाल कर रखना
करोडो चेहरे और उनके पीछे करोडो चेहरे
ये रास्ते है की भीड़ है छते जमीं जिस्मो से ढक गई है
कदम तो क्या तिल भी धरने की अब जगह नहीं है
ये देखता हूँ तो सोचता हूँ की अब जहाँ हूँ वहीँ सिमट के खड़ा रहूँ मै
मगर करूँ क्या की जानता हूँ की रुक गया तो
जो भीड़ पीछे से आ रही है वो मुझको पेरों तले कुचल देगी, पीस देगी
तो अब चलता हूँ मै तो खुद मेरे पेरों मे आ रहा है
किसी का सीना किसी का बाजू किसी का चेहरा
चलूँ तो ओरों पे जुल्म ढाऊ रुकूँ तो ओरों के जुल्म झेलूं
जमीर तुझको तो नाज है अपनी मुंसिफी पर
जरा सुनु तो की आज क्या तेरा फेसला है
प्यार कोई खेल नहीं इसे ना मजाक बनाओ
प्यार कोई लड़ाई की मैदान नहीं इसे ना आग़ाज़ बनाओ
प्यार कोई रेल नहीं इसे पटरियो पर ना नचाओ
प्यार दो दिलो का मिलना है इसे दुश्मनों से बचाओ
प्यार दिलो का इज़हार है इसे फूल से सजाओ
प्यार दिलो का रंग है इसे खून का रंग मत बनाओ
प्यार दोस्तों का दोस्त है इसे ना मिटाओ
भुलाना भी चाहें भुला न सकेंगे
किसी और को दिल में ला न सकेंगे.....

भरोसा अगर वो न चाहें तो उन को
कभी प्यार का हम दिला न सकेंगे.......

वादा निभायेंगे, वो जानते हैं
कसम हम को झूठी खिला न सकेंगे......

क्यों आते नहीं वो है मालूम हम को
नज़र हम से अब वो मिला न सकेंगे......

ज़ोर-ए-नशा-ए-निगाह अब नहीं है
मय वो नज़र से पिला न सकेंगे............

हकीकत से अपनी वो वाकिफ़ हैं खुद ही
कर हम से अब वो गिला न सकेंगे........
है दिल में ख़वाईश की तुझसे इक मुलाक़ात तो हो,
मुलाक़ात ना हो तो फिर मिलने की कुछ बात तो करो,
मोती की तरह समेट लिया है जिन्हे दिल-ए-सागर मे,
ख़वाब सज़ा के, उन ख्वाबों को रुस्वा ना करो

बहुत अरमान है की फिर से खिले कोई बहार यहाँ,
ये मालूम भी है की जा कर वक़्त आया है कहाँ,
हवा चलती है तो टूट जाते है ह्रे पत्ते भी तो कई,
तो सूखे फूलों से खिलने की तुम इलत्ज़ा ना करो

ना ग़म करना तुम, ना उदास होना कभी जुदाई से,
वक़्त क्ट ही जाएगा तुम्हारा मेरी याद-ए-तन्हाई से,
ये दुनिया रूठ जाए हमसे तो भले ही रूठी रहे,
सच मर जाएँगे हम, तुम सनम रूठा ना करो

लम्हा दर लम्हा बसे रहते हो मेरे ख़यालों मे,
ज़िक्र तुम्हारा ही होता है मेरे दिल के हर सवालों मे,
लो लग गयी ना हिचकियाँ तुम्हे अब तो कुछ समझो,
कह दो की मेरे बारे मे इतना सोचा ना करो
मेरे घर में आग लगाकर, पानी डाला करते है...
खुदा खैर करे, इन दिवानों से, मुझे मार मरते है॥

प्यार दिखाने का इनका, अंदाज़ गजब निराला है,
दो पल को मिलते है, और रुलाकर हँसते है॥

दिल में दर्द है कितना, आंखों में कितने आँसू है,
दिल को मेरे छलनी करके, दर्द-ए-दवा करते है॥

हमसफ़र है ऐसे भी, अंधेरों में पहचान न थी,
मैं सूनी राहों पर चला, ये महफिलों में मिलते है॥

सफ़ेद गुलाब काटों वाला, दे नुमाइश कर गए,
रक्त-ए-लाल गुलाब की, हसरतें पाला करते है॥

तूफां में दीपक जब, अंधेरों से लड़ता है,
पुर्वाई घर लाने, खिड़कियाँ खोला करते है॥

दिवाने है मेरे ये, दीवानों से लगते हैं,
जुर्रत देखो कैसी इनकी, और...मुझसे मुहब्बत करते हैं॥
तेरे शिकवों में कुछ, कमी सी है,
सूखी बर्फ चश्मों में, जमी सी है॥

किस मायने बताऊ, जो सच लगे,
हिम्मत की तुझमे, कमी सी है॥

देख ही पाती तू, तो देख ना लेती,
क्यूँ एक लम्हे में, थमी सी है॥

अरसे हुए घर में, शमा जले हुए,
शमा लिए आज भी, नमी सी है॥

तेरे अश्क लगते है, समंदर मुझे,
मुहब्बत फैली हुई, सरजमीं सी है॥

क़ैद हूँ आज भी, जुल्फों में तेरी,
जिंदगी तुझसे आज़ादी, लाजिमी सी है॥
ज़िन्दगी में प्यार का वादा निभाया ही कहां है
नाम लेकर प्यार से मुझ को बुलाया ही कहां है?

टूट कर मेरा बिखरना, दर्द की हद से गुज़रना
दिल के आईने में ये मंज़र दिखाया ही कहां है?

शीशा-ए-दिल तोड़ना है तेरे संगे-आसतां पर
तेरे दामन पे लहू दिल का गिराया ही कहां है?

ख़त लिखे थे ख़ून से जो आंसुओं से मिट गये वो
जो लिखा दिल के सफ़े पर, वो मिटाया ही कहां है?

जो बनाई है तिरे काजल से तस्वीरे-मुहब्बत
पर अभी तो प्यार के रंग से सजाया ही कहां है?

देखता है वो मुझे, पर दुश्मनों की ही नज़र से
दुश्मनी में भी मगर दिल से भुलाया ही कहां है?

ग़ैर की बाहें गले में, उफ़ न थी मेरी ज़ुबां पर
संग दिल तू ने अभी तो आज़माया ही कहां है?

जाम टूटेंगे अभी तो, सर कटेंगे सैंकड़ों ही
उसके चेहरे से अभी पर्दा हटाया ही कहां है?

उन के आने की ख़ुशी में दिल की धड़कन थम ना जाये
रुक ज़रा, उनका अभी पैग़ाम आया ही कहां है?
ये ख़ास दिन है प्रेमियों का, प्यार की बातें करो
कुछ तुम कहो कुछ वो कहें, इज़हार की बातें करो

जब दो दिलों की धड़कनें इक गीत-सा गाने लगें
आँखों में आँखें डाल कर इक़रार की बातें करो

ये कीमती-सा हार जो लाए हो वो रख दो कहीं
बाहें गले में डाल कर, इस हार की बातें करो

लबों की मुस्कुराहट ने बदल दी ज़िंदगी
उस गुलबदन के होंट औ रुखसार की बातें करो

अब भूल जाओ हर जफ़ा, ये प्यार का दस्तूर है
राहे-मुहब्बत में वफ़ा-ए- यार की बातें करो
ज़मीन भी जाती रही और आसमान भी ना रहा
पर कटे परिंदे में उड़ने का अरमान भी ना रहा

पहले तो अपने होने का वहम होता था उसे
अब तो ये सूरत है उसका ये गुमान भी ना रहा

महलों में रहने की मैने ख्वाहिश क्या करी
हाय! वो पुरखों का कच्चा मकान भी ना रहा

दैर-ओ-हरम तो कभी वाइज़-ओ-रिंद मिलते रहे
इन सब में ऐसा उलझा अब वो इन्सान भी ना रहा

पायल क्या ये इल्म नहीं, झंकार की दरकार है
कोई उन्हे समझाये इश्क़ इतना आसान भी ना रहा

उसको भुलाते भुलाते खुद की पहचान खो गई
तीर छूटा ये कुछ ऐसा के कमान भी ना रहा
रास्तों पे सब ही पहचाने से लोग हैं
देखो करीब से तो अंजाने से लोग हैं

दिल में झांकोगे तो बस तन्हाईयां ही हैं
महफ़िल सजी है फिर भी वीराने से लोग हैं

करते हैं इश्क़ जानकर अंजाम इश्क़ का
नासमझ से लोग दीवाने से लोग हैं

जिसका वजूद ही नहीं, है उस से मोहब्बत
शम्मा नहीं है फिर भी परवाने से लोग हैं


हैं अश्क़ आह दर्द ही तन्ख्वाह इश्क़ की
छलके गिरे टूटे से पैमाने से लोग हैं

दिखता हो चाहे जो, है कुछ और मुख़्तसर
अपनी हक़ीक़तों के अफ़साने से लोग हैं

हर एक बिक रहा है ज़रूरत के भाव से
अस्ल में देखो तो चाराने से लोग हैं

टूटे हुए छूटे हुए लम्हों का जोड़ हैं
टुकड़ों में जोड़े बिखरे काशाने से लोग हैं

हर एक शय नशा है हर एक शय जुनूं
ज़िदगी साक़ी है मैख़ाने से लोग हैं

आज भी रोते हैं इक छोटी सी बात पर
बदले से ज़माने में पुराने से लोग हैं

छूते हैं आसमां और मिट्टी में पाँव हैं
महल की दीवारों में तहखाने से लोग हैं

अब आप ही समझाइये ये राज़-ए-ज़िंदगी
बाकी जहां में सब ही बचकाने से लोग हैं
मैंने देखा है करवट बदलते हुए बादलों को..........
बारिश मै भीगते हुए आसमा को...
मैंने देखा है हवा के झोके से पेड़ों की डॉलियो को आपस मै सिमटते हुए....
मैंने देखा है पंछीयों को अपनी दिशा बदलते हुए.....
मैंने देखा है इस रिम् झिम मै भिग्ते हुए खुद के बदन को.....
मैंने देखा है बाद्लो के पीछे से झाकते हुए चांद को.......
मैंने महसूस की है तेरी खुश्बो इस बहती हुई हवा में......
मैंने एह्सास किया है तुझे हर पल इस बदलते हुए मौसम मै...
ए रात ठहर जा , मुझे जी भर के रो लेने दे,      
अपनी बदनशीबी पर मुझे कुछ आँसू बहा लेने दे।
वर्ना उजाले मे रोता देख दुनिया वाले कहेंगे ,
अगर बेवफा है तेरी दिलरुबा तो उसे भुला दे ,
इस तरह घुट-घुट कर , खुद को यू न सजा दे।
मान ले इस हक़ीक़त को और जा पूँछ उस से
क्यू की दिल्लगी , मुहब्बत का ढोंग क्यू रचाया।
जब ठुकराना ही था तो मुझे क्यू अपनाया
उस वक़्त मेरा ज़मीर मुझ से सवाल करेगा ,
क्या हुआ अगर उसने बेवफ़ाई की
उसकी अपनी जिंदगी है , चैन से उसे जीने दे ,
जो चाहती है वो तुझसे दूर रहना ,
उसे खुश रहने दे।
इस जहां में कब किसी का दर्द अपनाते हैं लोग ,
रुख हवा का देख कर अक्सर बदल जाते हैं लोग

वो मेरी चाहत को यूँ आजमाते रहे
गैरों से मिल के दिल को जलाते रहे
मेरी मौत के बाद भी जालिम को न आया रहम
ला कर फूल मेरे बाजू वाली कब्र पर चढ़ाते रहे

Saturday, May 20, 2017

उदास होने की वजह तो हजारों भरे पड़े हैं,इस ज़ालिम ज़िन्दगी में,
मग़र खुश होने के लिए आपकी इक झलक काफी है...!

तेरा_पता_नहीं पर मेरा_दिल_कभी_तैयार नहीं ❎ होगा मुझे तेरे अलावा_कभी_किसी और से प्यार_नहीं_होगा..।।

Tuesday, May 16, 2017

बहुत सोचा था अपनी चाहत उसे बता दूँ ....
आज दिया मैंने फूल तो उसने लिया ही नहीं .....!

Monday, May 15, 2017

तमन्ना रखने से हांसिल होता भी क्या
आरजू अपनों की थी गैरों से बात करता भी क्या ....?

कोई कहे उसे ज़रा अल्फाज के नाख़ून तराश ले..
बहुत चुभते है जब नाराजगी से बात करती है...

Friday, May 12, 2017

सामने जब कोई गमनाक फसाना आया
याद हमें भी अपना गुजरा जमाना आया ॥
आखो में वसति थी जो नूर जिन्दगी की
होके बेनूर वह गमें क़यामत देने आया ॥
सुनते थे मुहब्बतों में रहमते पाक बसती है
पर हकीकत ने तो यहाँ कुछ और ही देखाया है ॥
बेलौस जिन्दगी में वफा तरसती है
तन्हाई ने कंधो पे लाशे वेवफाई की उठाया है ॥
धोखे को किस्मत कह लो एसी अपनी तकदीर कहाँ है
कदम-कदम पर चलने वाले का याद ही तो आया है ॥
दिल को हम कप्रगाह कहें एसी अब तदबीर कहाँ है
जिगर में बसने बाले ने ही नफरते खंजर चुभाया है ॥
मेरे ज़िन्दगी के सफर में तुम
मेरी चाह है हमसफ़र बनो
यही ख्वाब है मेरा एक
हर नजारा तुम हर नजर बनो |

जहाँ हो वफ़ा हर शाम में ,
जहाँ ज़िन्दगी हर जाम में ,
जहाँ चाँदनी हर रात हो ,
उम्मीद की हर सहर बनो |

मैं नहीं काबिल तेरे बना ,
तू फलक मैं गर्दिश भला !
तू पूनम , मैं मावस की रात ,
नही बने मेरे वास्ते मगर बनो |

नही मेरे लिखने में वजन कोई
नही साज पर कोई गीत चढा |
ना लिख सका कोई ग़ज़ल ,
गुनगुना सकूँ तुम वो बहर बनो |

मेरी नही पतवार कोई
मेरा नही माझी कोई
मैं हूँ तन्हा मंझधार में ,
कश्ती को दे किनारा वो लहर बनो |

Wednesday, May 10, 2017

दर्द तुझको भी है, दर्द मुझको भी है,
बनके कोई हमदर्द, दिए है इस दिल में जो घाव ,
अब तो उम्र भर रिसते रहेंगे,
दिखे न दिखे दर्द के आंसू युही बहते रहेंगे |
किये थे जो वादे हमने ,
वो वादे निभाते जाऊंगा

दर्द जीता भी हो फिरभी मई मुस्कुराउंगा |
मैं जानता हूँ की तुम मुझे मिल नही सकती,
फ़िर भी मैं पल-दो-पल की खुशी के लिए,
तुम से मिलता जाता हूँ!!

जानता हूँ की ये राह नही पहुँचती तुम तक,
फ़िर भी ना जाने किस आस मैं मैं,
इस राह पर चलता जाता हूँ!!!

तुम्हारे चेहरे पर हसीं देखने का इतना आदि हो गया हूँ मैं,
की तुम्हे हँसाने और खुस देखने के लिए मैं,
ख़ुद को भी भूलता जाता हूँ!!!!

आज तलक हुई हर खवाहिश पुरी मेरी,
मेरा परवरदिगार ही बना रहनुमा मेरा,
पर आज मेरी न सुन कर तुम्हारी सुने,
मैं ये फरियाद करता जाता हूँ!!!!

कितना खुबसूरत हैं देखो ये मंजर,
जब तुम सो रही हो मेरे सिने पर रख के सर!
और मैं तुम्हारे बालों को सहला रहा हूँ,
चाँद से हसीं चेहरे को देखता जा रहा हूँ,

ऐ खुदा ये रात ना बीते, ना आई कभी कल,
कितना खुबसूरत हैं देखो ये मंजर!!!
सोते हुए चेहरे पर मुस्कराहट हैं छाई,
लगता हैं मानो सरे जहाँ की खुशियाँ सिमट आई,

तुम यु ही खुश रहो सदा, चाहे आई जो भी पल,
कितना खुबसूरत हैं देखो ये मंजर,
जब तुम सो रही हो मेरे सिने पर रख के सर.
खोया - खोया रहता हूँ तुम्हारे खयालो मैं,
डूब - डूब जाता हम तुम्हारी यादों मैं!!!
तुम ही तोह हो हर शु,
तुम से और मैं क्या कहूँ!!!!
तुम ही हो मेरे सवालों-जवाबो मैं!!!!
खोया खोया रहता हूँ तुम्हारे खायलो मैं!!
खिड़की पे खडा
रोशनी देख रहा था
कुछ परवाने उसके आसपास
मंडरा रहे थे
वो सब नशे में थे ,,,
शायद उन्होंने रौशनी पी रखी थी,,,

मैंने मुढ़कर अपने
कमरे में देखा ,,,
वहा इक कीडा चकमक
घिसता कमरे में घूम रहा था,
कमरे में यही इक रौशनी थी,

मैंने कीडे को रोका और कहा
ये क्या कर रहा हैं तू ,,
वो बोला जो तुम कभी
करते थे वो कर
रहा हूँ ,,
बस तुम किसी और कमरे
में करते थे
मैं तेरे कमरे में कर रहा हूँ ,,,
मुझको है तुमसे प्यार न जाने कब ज़माने से
फिर भी डरता है दिल लफ्जो के लबों पे आने से

ये इश्क ही है कमबख्त जो जीने दे ,न ही मरने दे
होती है क्या इश्क की तड़प पूछो मुझ दिवाने से

आपकी खूबसूरती भी कम नहीं किसी क़यामत से
ऊपर वाले को फुरसत न मिली होगी आपको बनाने से

हम तो अब तक जिन्दा है बस आपके ही इंतजार में
वर्ना कब के मर गए होते इस बेदर्द जहाँ के सताने से

बेरुखी है शाम बुझी बुझी सी है महफिल मेरी
ये चरागाँ होगी बस आप के आ जाने से
सोचता था कर नहीं पाया।
चैन से वह मर नहीं पाया।

जेब खाली उधारी बेइन्तेहा
देनदारी भर नहीं पाया।

महीनों से कुछ उदास उदास था
कुछ दिलासा पर नहीं पाया।

सालोंसाल भटकती उसकी ख्वाहिशें
एक का भी घर नहीं पाया।

पसीने से खून से जिसको गढ़ा
उस सड़क गुजर नहीं पाया।

भूख से रोते हुए कमजोर को
मेहनती नौकर नहीं पाया।

उम्रभर कपड़े फटे पहना रहा
मौत पर चादर नहीं पाया।

तोहमतें झूठी लगाते रहे सब
बेजुबान मुकर नहीं पाया।
ना यहाँ है ना वहाँ है साथियो
आजकल इंसां कहाँ है साथियो

आम जनता डर रही है पुलिस से
चुप यहाँ सब की जबाँ है साथियो

पार्टी में हाथ है हाथी कमल
आदमी का क्या निशां है साथियो

लीडरों का एक्स-रे कर लीजिए
झूठ रग रग में रवाँ है साथियो

ये उठा दें रैंट पर या बेच दें
मुल्क तो इनका मकां है साथियो
बदलता है जिस तरह पहलू ज़माना
यूँ ही भूल जाना, यूँ ही याद आना

अजब सोहबतें हैं मोहब्बतज़दों1 की
न बेगाना कोई, न कोई यगाना2

फुसूँ3 फूँक रक्खा है ऐसा किसी ने
बदलता चला जा रहा है ज़माना

जवानी की रातें, मोहब्बत की बातें
कहानी-कहानी, फ़साना-फ़साना

तुझे याद करता हूँ और सोचता हूँ
मोहब्बत है शायद तुझे भूल जाना
क़ायनात बूँद-बूँद रो रही है
सहाबों का कोई दरिया खा़ली हो रहा है
बदल रहा है सब कुछ
इस दिल में ख़ला की उम्र और बढ़ रही है

जब दो लोग दूर जाते हैं
वक़्त उनके दिलों की दूरियाँ बढ़ा देता है
मैंने मुदाम यही देखा है
वरक़-वरक़ मुझसे ज़िन्दगी यही कह रही है

आज और इक नया सफ़हा खुला
आज फिर उसपे रोशनाई उलट गयी
खो गयी एक पुरानी क़ुर्बत
क़दम-क़दम साथ तन्हाई चल रही है

कब तक साँसों में पिरो-पिरोकर
बदन का चिथड़ा-चिथड़ा सँभालूँ
रग-रग में दर्द को पनाह दूँ
कभी तो लगे ज़िन्दगी की शाम हो रही है

मैं उनके लिए जैसा अपना था
वैसा अपना मेरी ज़िन्दगी में कोई नहीं
मुझे ठोकरें ही सहारा देती हैं
खा़हिश कमज़ोर इमारतों-सी ढह रही है

क़ायनात बूँद-बूँद रो रही है
सहाबों का कोई दरिया खा़ली हो रहा है
कांटों में खिले फूल कुछ समझाने की बात करते हैं
गम के आलम में भी मुस्कुराने की बात करते हैं।

बेसबब ही नहीं बख्शे कुदरत ने रंग फूलों को
ये खुशी के रंगों से ज़िंदगी सजाने की बात करते हैं।

मर जाते है फूल शाख से अलग होकर फिर भी
एक धागे में जुड़कर, जुड़ जाने की बात करते हैं।

जब भी गिरते हैं ये फूल किसी मय्यत पर
इंसा को ज़िंदगी के कीमत बताने की बात करते हैं।

इनकी नाज़ुकी है तस्वीर उन कमज़ोर शख्सों की
जो गम के झोंकों में बिखर जाने की बात करते हैं।

हमें आगाह करते हैं फूल ज़ुल्फ़ों मे उलझकर
कि ये हंसी चेहरे सदा उलझाने की बात करते हैं।

ये फ़कत ग़ज़ल नहीं दोस्तों ज़रा गौर फ़रमाओ
फूलों के जरिये 'बर्बाद' कुछ सिखाने की बात
बेबस बहुत है यह दिल बीमार बहुत है
अब आके मिलो हमसे दिल को यह इसरार बहुत है
एक शख्स जो हर बार खफा रहता है मुझसे
दिल उसकी मोहब्बत में गिरफ्तार बहुत है
माना हमें जीने का करीना नही आता
ऐ जीस्त मगर तुझसे हमें प्यार बहुत है
कुछ हम भी बुलाने का तकाज़ा नही करते
कुछ उनकी तबियत में भी इनकार बहुत है
इस जात के सेहरा की कड़ी धुप में हमको
साथी न सही लेकिन दीवार बहुत है.
बात तब की है जब हुस्न परदे में रहता था,
और इश्क उसे देखने के लिए खुदा से फरियाद किया करता था.
"
ऐ खुदा, हवा का एक झोंका आए और वो बेनकाब हो जाए"
एक दिन इश्क गुज़र गया और हुस्न उसकी कब्र पर फूल चढाने गई
जैसे ही हुस्न झुकी हवा का झोका आया और हुस्न बेनकाब हो गई
तब कब्र से ये आवाज़ आई...


"
ऐ खुदा
यह कैसी तेरी खुदाई है,
आज हम परदे में हैं और वो बेनकाब आई है"
यूँ इश्क़ का हमने दिया है इम्तिहां अक़्सर
मुँह में ज़ुबां होते हुए थे बेज़ुबां अक़्सर
इश्क़ की तासीर ये समझा नहीं कोई
इश्क़ में मिट जाते हैं नाम-ओ-निशां अक़्सर
अश्क़ बिखर जाते हैं बरसात का पानी बनकर
खुशी के पल बन जाते हैं दर्द-ओ-फ़ुगां अक़्सर
इश्क़ की नीली सियाही वक़्त के पीले से कुछ हर्फ़
ज़िंदगी खो जाती है इन ही के दर्मियां अक़्सर
उसने परेशां कर लिया हमको बना के आईना
अपने होने का होता रहा फिर हमको गुमां अक़्सर
सुबह का वक्त ज़ेहन में धुंधला देता है इन्हे
हर शम्मा को यही अंजाम देता है जहां अक़्सर
हम तो जिनको चाहते थे बस नज़र के शौक़ से
वो शख़्स बन जाते हैं हाय दिल-ओ-जां अक़्सर
होंठ वो हिलते नहीं हाल-ए-दिल की बात पर
आँखों से ही होते हैं ये हुस्न-ए-बयां अक़्सर
हक़ीक़त है ही कुछ ऐसी के बयां कर नहीं सकते
तन्हाई को ही करना पड़ता है राज़दां अक़्सर
हूँ चल रहा उस राह पर जिसकी कोई मंज़िल नहीं
है जुस्तजू उस शख़्स की जो कभी हासिल नहीं
वहम जाने ये मेरे इस दिल को क्योंकर हो गया
कुछ भी कर लूं मै मगर मै जीत के काबिल नहीं
मै खड़ा हूँ आज देखो इश्क़ की दहलीज़ पर
पार निकलूं या रुकूं इस से बड़ी मुश्किल नहीं
एक महफ़िल में हज़ारों महफ़िलें हैं हर तरफ़
दिल में तन्हाई की महफ़िल क्या कोई महफ़िल नहीं
ज़िंदगी बेमक़सदी का दूसरा इक नाम है
कह दो किस की ज़िंदगी में दर्द ये शामिल नहीं
चले हैं आज ज़माने को आज़माये हुए
ये देखो खून में अपने ही हम नहाये हुए
न जाने मुझको हुआ कौन सा मक़ाम हासिल
लुटा के घर भी चला हूं मै सर उठाये हुए
ना उसकी ख़ता थी न थी ख़ता मेरी
निकल रहे हैं मगर हम नज़र चुराये हुए
लो आज फिर से उसने मेरे दिल को तोड़ा है
उसे भी वक़्त हुआ है मुझे सताये हुए
ये जो है हुस्न का सदक़ा समझ नहीं आया
मेरी पहलू में भी हैं वो नज़र झुकाये हुए
जहां मुहाल था एक पल भी ठहरना यारों
ज़माने बीते वहां हम को युग बिताये हुए
अपनी तबाहियों का ग़िला नहीं है हम को
हम आज भी हैं उसकी अज़्मतें बचाये हुए
इक जाम-ए-जुनूं को लबों से लगाया है
दिल को इक नये ग़म का नशा कराया है
ये कैसी हलचल मची है महफ़िल में
क्या कोई चाक जिगर महफ़िल में आया है
रो रही है रात चांद से छुपकर देखो
साज़-ए-दिल किस ख़ाकजां ने बजाया है
मत कहो किसी भी बच्चे को तुम यतीम
हर बच्चे के सर पे खुदा का साया है
दिल तारीक से तारीकतर हुआ जाता है
कैसी शम्मा है जिसे आपने जलाया है
आज तक तो कभी आवाज़ नहीं सुनी हमने
अब आपने हमें किस तौर ये बुलाया है
तीर-ए-इश्क़ की तासीर हाय क्या कहें
ज़ख़्म सीने पे उम्र भर सजाया है
मुगालते में रहे मुबालग़े के पीछे
ये समझते रहे नहीं वो पराया है
वो जाने किन हालातों से गुज़रा आने में
तुझे खुदा बना के जो तेरे दर पे आया है
लाल-ओ-जवाहर में उसको ना भुला देना
उस ही की रहमतों से ये घर सजाया है
वो सिर्फ़ महबूब है खुदा हो नहीं सकता
उसकी इबादत से तूने दिल को बहलाया है