मैं अमलतास, तू गुलमोहर,
दोनों का रूप निराला है!
मैं कुन्दन सा चमकता हूँ,
तो तू अग्नि की ज्वाला है!!
सूरज की जितनी तपिस होगी,
उतना ही रूप निखरेगा!
जब भी ग्रीष्म का आगमन होगा,
रूप दोनों का बिखरेगा!!
ज्येष्ठ की तपती दोहपरी में,
हम शीतलता के प्रतीक होंगे!!
~~~~ सुनिल #शांडिल्य