Tuesday, July 29, 2014

कैसे मुमकिन है ख़ामोशी से फ़ना हो जाऊँ
कोई पत्थर तो नहीं हूँ कि ख़ुदा हो जाऊँ
गर इजाज़त दे ज़माना तो मैं जी लूँ इक ख़्वाब
बेड़ियाँ तोड़ के आवारा हवा हो जाऊँ


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