Wednesday, October 22, 2014
ये आईने से अकेले में गुफ्तगू क्या है
,
जो मैं नहीं तो फिर यह तेरे रूबरू क्या है
,
इसी उम्मीद पे काटी है ज़िन्दगी मैंने
,
वो काश पूछते मुझसे के आरज़ू क्या है.
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