Saturday, October 25, 2014

तुम ज़िदगी ना सही दोस्त बनकर तो ज़िदगी मे आओ
तुम हसी ना सही मुसकान बनकर तो ज़िदगी मे आओ।
तुम हकीकत ना सही खयाल बनकर तो ज़िदगी मे आओ
तुम नज़र ना सही याद बनकर तो ज़िदगी मे आओ।
तुम दिल ना सही धड़कन बनकर तो ज़िदगी मे आओ
तुम गज़ल ना सही सायरी बनकर तो ज़िदगी मे आओ।
तुम खुशिया ना सही गम बनकर तो ज़िदगी मे आओ
तुम पास ना सही एहसस बनकर तो ज़िदगी मे आओ।
तुम कल ना सही आज बनकर तो ज़िदगी मे आओ
तुम ज़िदगी ना सही दोस्त बनकर तो ज़िदगी मे आओ...

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