Friday, October 17, 2014
अपने जज्बात को
,
नाहक ही सजा देता हूँ...
होते ही शाम
,
चरागों को बुझा देता हूँ...
जब राहत का
,
मिलता ना बहाना कोई...
लिखता हूँ हथेली पे नाम तेरा
,
लिख के मिटा देता हूँ...........
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