Saturday, January 3, 2015
आया ही नहीं हमको आहिस्ता गुज़र जाना
शीशे का मुक़द्दर है टकरा के बिखर जाना
तारों की तरह शब के सीने में उतर जाना
आहट न हो क़दमों की इस तरह गुज़र जाना
नश्शे में सँभलने का फ़न यूँ ही नहीं आता
इन ज़ुल्फ़ों से सीखा है लहरा के सँवर जाना
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