अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की
तुम क्या समझो तुम
क्या जानो बात मेरी तन्हाई की
कौन सियाही घोल रहा
था वक़्त के बहते दरिया में
मैंने आँख झुकी
देखी है आज किसी हरजाई की
उड़ते-उड़ते आस का
पंछी दूर उफ़क़ में डूब गया
रोते-रोते बैठ गई
आवाज़ किसी सौदाई की
No comments:
Post a Comment