Monday, April 13, 2015
नाम-ऐ-मोहब्बत पे दिल आज भी फरमा-ऐ-सजदा है
दिल-ऐ-शिकस्ता में आज भी और टूटने का जज्बा है
कौन कहता है अंधेरे होते है चिराग के टूट जाने से
बुझके भी शमा-ऐ-इश्क मेरी
,
आज भी नूर अफ्शां है
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