Saturday, April 25, 2015

ख़ामोशी में पड़ी है अपनी ये जिंदगी हारी हुई 
अपनी ही नजर से आप ही हमने यु उतारी हुई 
ना अज्म-ए-सफ़र है ना वजूद किसी मंजिल का
शौक-ए-तबाही में अब तक जो है गुजारी हुई 

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