Monday, May 11, 2015

किसको चिन्ता किस हालत में कैसी है अब माँ
सूनी आँखों में पलती हैं धुंधली आशाएँ
हावी होती गईं फ़र्ज़ पर नित्य व्यस्तताएँ
जैसे खालीपन काग़ज़ का वैसी है अब माँ

नाप-नापकर अंगुल-अंगुल जिनको बड़ा किया
डूब गए वे सुविधाओं में सब कुछ छोड़ दिया
ओढ़े-पहने बस सन्नाटा ऐसी है अब माँ

फ़र्ज़ निभाती रही उम्र-भर बस पीड़ा भोगी
हाथ-पैर जब शिथिल हुए तो हुई अनुपयोगी
धूल चढ़ी सरकारी फाइल जैसी है अब माँ

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