Friday, January 15, 2016
शम्मा ए तमन्ना जवाँ आज भी है
हर हसरत है लेकिन बेज़ुबां आज भी है
मंजिलों को नहीं नसीब मेरे काफिले
,
तो क्या
राहों पे मेरे क़दमों के निशाँ आज भी हैं
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