Wednesday, February 24, 2016
भटकती रही यूँ ही हर बंदगी
,
मिली न कहीं से कोई रौशनी
,
छुपा था कहीं भीड़ में आदमी
,
हुआ मुझ में रौशन ख़ुदा देर से.
-
निदा फ़ाज़ली
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