Friday, February 19, 2016
मन्ज़िल-ए-जानाँ को जब ये दिल रवाँ था दोस्तों
,
तुम को मैं कैसे बताऊँ क्या समाँ था दोस्तों.
-जगन्नाथ आज़ाद
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