Saturday, April 30, 2016

लाख रोशन हों, अंधेरों से गुज़रना भी तो है
चढ़ते सूरज को समंदर में उतरना भी तो है
तुम जो खुश हो मेरी राहों में बिछा के कांटे
इन्ही राहों से कभी तुमको गुज़रना भी तो है

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