Wednesday, April 6, 2016

इक वो कि आरज़ूओं पे जीते हैं उम्र भर,
इक हम कि हैं अभी से पशेमान-ए-आरज़ू,
आँखों से जू-ए- खूँ है रवाँ दिल है दाग़ दाग़,
देखे कोई बहार-ए-गुलिस्तान-ए-आरज़ू.
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अख्तर शिरानी

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