Sunday, July 10, 2016

कभी तो आसमाँ से चांद उतरे जाम हो जाये
तुम्हारे नाम की इक ख़ूबसूरत शाम हो जाये
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बशीर बद्र

मुझे मालूम है उस का ठिकाना फिर कहाँ होगा
परिंदा आसमाँ छूने में जब नाक़ाम हो जाये
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बशीर बद्र

सर-ए-शाम ठहरी हुई ज़मीं आसमाँ है झुका हुआ,
उसी मोड़ पर मेरे वास्ते वो चराग़ लेके खड़ा न हों |

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बशीर बद्र

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