Wednesday, August 10, 2016

चार दिन की ये रफ़ाक़त जो रफ़ाक़त भी नहीं,
उम्र भर के लिए आज़ार हुई जाती है,
ज़िन्दगी यूं तो हमेशा से परेशान-सी थी,
अब तो हर साँस गिराँबार हुई जाती है |

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साहिर लुधियानवी


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